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सुरेश का वेलेंतायन -“valentine contest”

jara sochiye
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मेरा जन्म बीसवी सदी के छठे दशक में हुआ था ,जब हमारा देश गुलामी की जंजीरों से मुक्त हो कर आजादी में साँस लेना प्रारंभ किया था. .हमारा समाज अपने विकास में प्रारंभिक दौर में था.सर्वत्र अशिक्षा का अंधकार था पूरा देश गरीबी , भुखमरी,और , बेरोजगारी जैसी परिस्थितियों में फंसा हुआ था.हमारे समाज में पुरानी मान्यताओं और परम्पराओं में जकड़ा हुआ था. दकियानूसी सोच एवं अनेकों कुरीतियाँ समाज पर हावी थीं.जिनको तोड़ पाना आम व्यक्ति के लिए असंभव था.यदि कोई व्यक्ति सामाजिक रुढियों को तोड़ने की हिम्मत जुटाने साहस कर भी लेता तो समाज से बहिष्कृत हो जाता था. अभावग्रस्त समाज में व्यक्ति की समाज पर निर्भरता कुछ ज्यादा ही होती है.ऐसे वातावरण में विपरीत लिंगी से प्यार करना,प्यार का इजहार करना या प्रेम विवाह करना अपने जीवन को नरक में धकेलने के सामान था.वह व्यक्ति परिवार और समाज का बागी करार दिया जाता था.यद्यपि कुछ मुद्दों पर ऑनर किलिंग का चलन आज भी मोजूद है जैसे सगोत्रीय विवाह, विजातीय विवाह,या तानाशाह परिवार के विरुद्ध जा कर विवाह, आज भी अभिशाप बन जाते हैं.परन्तु ओनर किलिंग का भय होने के बावजूद आज का युवक समाज के विरुद्ध जाने हिम्मत जुटा लेता है.क्योंकि आर्थिक पर निर्भरता बहुत कम हो गयी है.
परन्तु मेरे युवावस्था के समय में समाज के विरुद्ध जाने की हिम्मत जुटा पाना असंभव था.कम से कम मेरे लिय तो संभव नहीं था. .हो सकता है आप कहें,”तुम तो वाकई बुजदिल निकले”या फिर कहोगे “तुम डरपोक थे ,प्यार करने वाले डरा नहीं करते” और तो और आप ये भी कह सकता हैं “तुम क्यों अपनी नाकामयाबी को समाज में मत्थे मढ़ रहे हो समाज तो हमेशा से ही प्यार का दुश्मन रहा है.” एक बात और भी कह सकते हो ” तुम्हे मोका ही नहीं मिला होगा या तुम्हे लड़की पटानी नहीं आती होगी या तुम देखने में ही ————— क्या कह सकते है.”
खैर आप कुछ भी कह सकते हैं, आखिर आप इक्कीसवी सदी के नौजवान जो हैं
मेरे कालेज के सहपाठियों में अनेक मित्र थे परन्तु उनमे से एक मित्र (लड़की नहीं)ऐसा भी था जिसे में प्रेमिका की भांति ही प्यार करता था. अब मुझे समलेंगिक मत समझ लेना . .उसके प्यार ने मुझे अहसास कराया की प्यार क्या होता है.मेरा उसके साथ रहना ही एक मकसद बन गया था. साथ उठना बैठना साथ खाना साथ पढाई करना मेरी दिन चर्या का अंग बन गया था. उसकी एक दिन की जुदाई भी बर्दाश्त नहीं होती थी मेरे अन्य मित्र उसे मेरी मम्मी कह कर पुकारते थे. हमें उसका कोई बुरा नहीं लगता था. आपसी लगाव को देखते हुए हमने अपने भविष्य में कुछ एक साथ ही व्यापार करने का इरादा बनाया था. परन्तु भाग्य को कुछ ही और ही मंजूर था मेरे दोस्त की पारिवारिक आर्थिक स्तिथि ठीक नहीं होने के कारण पढाई पूरी करने के तुरंत बाद जॉब तलाश करनी पड़ी और वह मेरे से जुदा हो गया.कुछ समय पश्चात् खबर मिली उसका विवाह भी होने वाला है.मेरे दिल से अनायास ही निकल पड़ा —–अगर तू लड़की होता……..तो मैं तुझसे ब्याह रचा लेता ( सत्तर के दशक का हिट गीत)
मेरा वेलेंतायन किसी और का हो चुका था .वेलेंतायन डे का अर्थ सिर्फ वासनात्मक प्रेम नहीं है. प्रत्येक सम्बन्ध में ही प्यार होना चाहिए और सब प्रिय लोग हमारे वेलेन्तैन हैं.बल्कि हमें चाहिए पूरी मानवता को हम प्यार दे. उससे इन्सनिअत के दायरे में रह कर व्यव्हार करें .( सुरेश )

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