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परिवार में पिता और पुत्र संबंधों का महत्त्व

jara sochiye
jara sochiye
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एक ओर पिता जहाँ परिवार का अतीत का आर्थिक रीढ़ था ,तो बेटा, परिवार का आर्थिक आर्थिक आधार होता है.आर्थिक स्रोत के बिना परिवार का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है.अतः पिता .पुत्र के संबंधों में सामंजस्य होना अत्यंत आवश्यक है .जो पूरे परिवार के सदस्यों को प्रभावित करते हैं.इसलिए इनके संबंधों में मधुरता बनी रहना भी परिवार के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
कभी कभी पिता अपने पुत्र के व्यस्क हो जाने पर भी बच्चे की भांति व्यव्हार करता है.जैसे बात बात पर डांटना,उपदेश देना, और उसके प्रत्येक कार्य में हस्तक्षेप करना इत्यादि। यदि पुत्र उनकी बातों से असहमति व्यक्त करता है, तो उनके अहम् को ठेस पहुँच जाती है.जिसे पिता को सहन नहीं होती .प्रतिक्रिया स्वरूप अपने पुत्र का अपमान करने नहीं चूकता.कहावत है,की जब बेटे के पैर में बाप का जूता फिट आने लगे तो उससे पुत्रवत नहीं मित्रवत व्यव्हार करना चाहिए। पिता इस उसूल को अपना ले तो निरर्थक विवाद से बच सकता है।
पिता को अपना बद्दप्पन दिखाते हुए पुत्र की कुछ गलत बातों को क्षमा करने की भी आदत बनानी चाहिए ।
और बेटे को अपने पिता का सम्मान करते हुए उसकी भावनाओं की कद्र करनी चाहिए.पिता की बात से असहमत होने पर क्रोध न करते हुए विनम्रता पूर्वक से अपना पक्ष रखना चाहिय। अभद्रता, अशिष्टता एवं उपेक्षित व्यव्हार पुत्र के लिए अशोभनीय है.पुत्र को सोचना होगा आज उसके पिता बुजुर्ग के रूप में उसके समक्ष हैं तो कल वह भी अपनी संतान के समक्ष इसी अवस्था में होगा.पिता को दिया गया सम्मान भविष्य में संतान द्वारा प्रदर्शित होगा।
परिवार के सुखद भविष्य के लिए पिता पुत्र को अपने व्यव्हार में शालीनता लाना आवश्यक है।
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