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कितना फितरती है इन्सान

jara sochiye
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अपने स्वार्थपूर्ति अथवा तथाकथित आत्मसम्मान की संतुष्टि के लिए , हम एक दुसरे का शोषण करते हैं ,रौब ज़माते हैं और अपनी शर्तें मनवाते हैं .इस प्रकार का व्यव्हार कर हम कौन सी सभ्यता और आधुनिकता का परिचय दे रहे हैं ?’जियो और जीने दो ’की धारणा को भूल गए हैं .इन्सान अपने भौतिक विकास को देख कर अभिभूत है .,परन्तु इसी भौतिक विकास ने समाज को नैतिक पतन की खाई में धकेल दिया है .यह कटु सत्य है बिना सामाजिक उत्थान के , बिना नैतिक मूल्यों के ,बिना इंसानियत का परचम लहराए सारी भौतिक उपलब्धियां औचित्यहीन हो जाती हैं . मानव विकास का मुख्य एवं मूल उद्देश्य मानव जीवन को सुविधा जनक एवं शांति दायक बनाना होता है .सामाजिक अशांति ,अत्याचार ,व्यभिचार ,के रहते मानव जाति सुखी नहीं हो सकती .बिना मानसिक शांति के सारी सुख सुविधाएँ अर्थहीन हो जाती हैं .
आज प्रत्येक घर परिवार प्रतिद्वंद्विता एवं युद्ध का अखाडा बनता जा रहा है ,जहाँ अन्याय की पूजा हो रही है .पति पत्नी पर रौब गांठता है ,मर्दानगी दिखता है ,उससे अनेक कार्य बलपूर्वक करवाने का प्रयास करता है ,मौका मिलने पर अपमान करता है .परन्तु यदि किसी परिवार में पति शांति और न्याय का समर्थक है ,सबका सम्मान करने में विश्वास करता है ,तो पत्नी हावी होने लगती है ,बात बात पर ताने मारना एवं पति को लज्जित करने में अपनी शान समझने लगती है .शिक्षा के क्षेत्र में या कार्य क्षेत्र में अधिक सफल भाई बहन अपने से कम सफल या असफल ,कम शिक्षित भाई या बहन की उपेक्षा करने लगता है .उनका अपमान करने लगता है ,मजबूरी में फंसने पर उनका शोषण भी करता है .इसी प्रकार यदि परिवार का मुखिया तानाशाही प्रवृत्ति का है तो सभी परिजनों को अपनी उँगलियों पर नाचने का प्रयास करता है .परन्तु इसके विपरीत यदि मुखिया शांत पृकृति तथा न्याय प्रिय है तो परिवार का बेटा आर्थिक सक्षम होते ही अपने पिता को लज्जित करने से संकोंच नहीं करता ,और सभी परिजनों को अपने प्रभाव में लेना चाहता है . अपनी इच्छानुसार परिवार को चलाना चाहता है , अर्थात अपनी इच्छाएं पूरे परिवार के सदस्यों पर थोपना चाहता है
आईये अब परिवार से निकाल कर गली मोहल्लों में झांक कर देखते हैं .यहाँ पर कुछ दबंग लोग पूरे समाज को मोहल्ले को अपने रौब में रखने की कोशिश में लगें हैं .ऐसे दबंग लोग अपनी गुंडई के बल पर अपने स्वार्थों की पूर्ती करते देखे जा सकते हैं .ये लोग पूरे समाज के लोगों का शोषण करने में लगे रहते हैं .यदि एक बाहुबली किसी कारण वश शांत हो जाता है तो कोई अन्य बाहुबली उसका स्थान ले लेता है .ऐसे दबंग लोग और उनका गिरोह पूरे समाज के लिए सिरदर्द बना रहता है. और तो और सभी देश अपने बर्चस्व के लिए एक दुसरे देश को अपनी धौंस में रखना चाहते हैं किसी पडोसी देश को उन्नति करते हुए नहीं देख सकते . जब कुछ बस नहीं चलता तो छापामार की लडाई शुरू कर दी जाती है जिसे आतंकवाद के रूप में जाना जाता है .और आज पूरा विश्व इस समस्या से प्रभावित है .प्रत्येक देश उन्नत से उन्नत हथियारों से लेस हो कर विश्व को धमका कर रखने को प्रयास रत है .अमेरिका जैसे देश तो पूरी दुनिया को अपने इशारों पर नाचना चाहता है बल्कि नाचता भी है,
एक और अन्य वीभत्स रूप भी हमारे समाज में मौजूद है .
आजादी के पश्चात् हजारों वर्षों से दबे कुचले अर्थात , दलितों को देश की मुख्य धारा में लाने के लिए ,उनके उत्थान के लिए संविधान में अनेकों कानूनी अधिकार प्रदान किये गए , आरक्षण की व्यवस्था कर शिक्षा एवं रोजगार के अवसर दिए गए ताकि आजाद देश में सम्मान पूर्वक जीने के अवसर मिल संकें . परन्तु आज वे दलित लोग ही समाज उच्च वर्ग पर अत्याचार करने लगे हैं . कानून भंग करने को उत्सुक रहते हैं और अपनी मनमानी करते हैं कानून द्वारा मिले संरक्षण का दुरूपयोग करते हैं.अपने मोहल्लों में स्थित व्यापारियों ,व्यवसायियों ,कारोबारियों को अपने शोषण का शिकार बनाते रहते हैं .उनके प्रतिष्ठानों में चोरी ,कर आग लगा कर या रंगदारी वसूल कर उनको परेशान करते हैं ,उनकी आजीविका पर हमला करते हैं .क्या समाज ने ,स्वतंत्र भारत के कानून ने उन्हें शोषण मुक्त इसलिए किया था की अब वे अन्य लोगों का शोषण करने लगें ?और देखिये ,पिछले पचास वर्षों में नारी उत्थान के लिए कानून बना कर उनके कल्याण के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया ,ताकि नारी वर्ग जो हजारों वर्षों से प्रताड़ित ,अपमानित ,शोषित जीवन जी रहा था ,उसे मुक्ति मिल सके .उसे पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हो सकें ,वह सम्मान पूर्वक जी सके .परन्तु नारी ने उसके पक्ष में बने कानूनों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर अपने तुच्छ स्वार्थों की पूर्ती करना शुरू कर दिया .अब वह पति एवं ससुराल पक्ष को शोषित करने लगी . आज वह आत्महत्या की धमकी देकर अपनी असंगत बातों को भी मनवाने का प्रयास करती है .किसी विवाहिता की असामयिक मौत हो जाने पर उसके मैके वाले दहेज़ हत्या के झूंठे आरोप लगाकर पूरे ससुराल पक्ष को जेल जाने को मजबूर कर देते हैं ,जिसके लिए जमानत भी कम से कम छः माह पश्चात् होती है .अक्सर पति को तो छः माह पश्चात् भी जमानत नहीं मिल पाती .और बाद में अदालत द्वारा केस झूंठा साबित होता है.मजबूरन आज ‘पति परिवार कल्याण संस्थानों’ के गठन होने लगे हैं .आज तो महिलाएं नारियां इतनी दबंग हो गयी हैं , की अपनी तुच्छ स्वार्थ पूर्ती के लिए अपने परिजन या ससुराल पक्ष के व्यक्तियों की हत्या भी कर देती हैं .कहने का आशय है उन्होंने भी अपराध की दुनिया में कदम रख दिया है, हजारों वर्षों से घर की दहलीज न लांघने वाली नारी अत्याचार का दामन थमने लगी है ,क्या उन्हें यही सब कुछ करने के लिए कानूनी संरक्षण दिया गया है.
उपरोक्त विश्लेषण संकेत दे रहे हैं की इन्सान ने कितनी भी प्रगति कर ली हो उसकी मानसिकता में अभी भी शोषण, तानाशाही ,अन्याय करने की भावना पाषाण युग के समान बर्बर ही है. यही कारण है आज के उच्च विकसित समाज में हर क्षेत्र हर स्तर पर अन्याय व्याप्त है .जब एक व्यक्ति को ,एक समुदाय को शोषण मुक्त किया जाता है वही वर्ग या समुदाय नए शोषक के रूप में उभरने लगता है ,समाज का तिरस्कार करने लगता है .अतः हम सभी को आत्म मंथन कर इस प्रकार की बुराईयों से उबरना होगा तब हम एक शोषण मुक्त ,सभ्य समाज का निर्माण कर सकेंगे .विकास का सार्थक लाभ पूरे समाज को मिल सकेगा,जो मानव विकास का वास्तविक उद्देश्य है .

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