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बच्चों को प्यार दे पर एक सीमा तक

jara sochiye
jara sochiye
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(अपने बच्चे के संरक्षक बने, निगेहबान बने ,परन्तु छत्र छाया नहीं।उसके व्यक्तित्व विकास एवं आत्मविश्वास बनाने के लिए उसे दौड़ने दें,उसे दौड़ने से पूर्व ही गिर जाने के डर से भयभीत न करें,यदि रास्ते में कोई अड़चन दिखाई दे ,कोई ठोकर लगने की सम्भावना लगे, तो तुरंत उसे बचाने के लिए प्रयास करें।उसके मार्ग को,उसके रास्ते को मखमली न बनायें,बल्कि काँटों पर चलना भी सिखाएं।उसके बचपन में या जीवन के किसी भी मोड़ पर उसके समक्ष कोई समस्या आये तो उसे जूझने का पर्याप्त मौका दें,फिर समाधान भी बताएं। थोडा बरसात में भीगने दें,फिर छत उपलब्ध कराएँ,कुछ गर्मी और सर्दी का अहसास भी होने दें फिर, उससे बचाव के उपाए बताये और बचाव करें)
हम सभी अपनी संतान को बहुत प्यार करते हैं,और अपने बच्चे सबसे अधिक प्यारे लगते हैं।हम उनकी किलकारियों पर वारी वारी जाते हैं,उनके तुतलाहट भरे संबोधन सुन कर अपने को धन्य समझते हैं।बच्चो के सानिध्य में आकर अपने दिन भर की थकान को भूल जाते हैं।उनकी खुशियों के लिए सब कुछ करने को तैयार रहते हैं।वे हमारे जीवन के संघर्ष के लिए प्रेरणा स्रोत बन जाते हैं।कभी कभी तो उनकी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए अनैतिक,या अवैध मार्ग अपना कर भी धन अर्जन में संकोच नहीं करते।
बच्चों को प्यार मिलना ही चाहिए वे इसके हक़दार भी हैं।उनको खुश देखना ही हमारा उद्देश्य होता है।परन्तु यह भी ध्यान रखना आवश्यक है,कहीं आपका असीमित लाड़ प्यार आपके बच्चों के भविष्य को दिशा हीन न कर दे।क्योंकि अधिक लाड प्यार बच्चे को जिद्दी,क्रोधी,तुनुकमिजाज भी बना सकता है।असीमित प्यार उसे हिंसक,अपराधी,या नशेड़ी भी बना सकता है।अतः यह भी आवश्यक है उसकी अनुचित मांगों को स्वीकार न किया जाय।बच्चों को उनकी गलत क्रिया कलापों को बचपन से ही रोकना आवश्यक है।
अपने बच्चों के भविष्य को सवारने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है।बच्चो को अच्छे संस्कार देना,उचित मार्ग दर्शन देकर जीवन की ऊंचाइयों तक पहुंचाना भी आप का ही कर्त्तव्य है।यद्यपि बच्चो को पीटना,धमकाना या डराना उनके हित में नहीं हो सकता।जो माता पिता बच्चो को अधिक अंकुश में रखते हैं या डांटना और पीटने का सिलसिला बनाये रखते है,वे कभी भी बच्चे में व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकते और न ही उन्हें एक सफल जीवन दे पाते हैं। यद्यपि उन्हें एक सफल और सभ्य नागरिक बनाने के लिए आवश्यकतानुसार डांटना और समझाना भी आवश्यक होता है,परन्तु बहुत ही संयम के साथ। कभी कोई प्रलोभन देकर तो कभी कोई दी जा रही सुविधाओं को वापस लेने की चेतावनी देकर, उन्हें अच्छे कार्यों के लिए प्रेरित किया जा सकता है।कभी कभी सख्ती बरतना, उनमे अच्छे आचरणों के लिए प्रेरित करने के लिए,आवश्यक है।
कुछ बातें बच्चों की उनके बचपने में अच्छी लगती हैं,जो बड़े होने पर असभ्यता ,या उद्दंडता समझी जाती हैं।इसलिए छोटेपन से ही गलत हरकतों पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जाय, तो बड़े होने तक वे योग्य युवक बन सकेंगे,जो आपके लिए भी गौरव की बात होगी।यदि उनकी प्रत्येक गतिविधि पर अपने मनोरंजन के साथ साथ सभ्यता के दाएरे में होने वाली अदाओं को ही प्रोत्साहित किया जाय तो बच्चे के भविष्य और आपके लिए प्रसन्नतादायक होगा।
कुछ बच्चे लाड़ प्यार में ,अधिक सुविधाओं के रहते इतने अधिक संवेदन शील हो जाते हैं,की वे किसी की बात, अपनी रूचि के विरुद्ध सुनने को तैयार नहीं होते। किसी भी व्यक्ति का सम्मान करना उनके लिए असहनीय होता है।धूप, गर्मी,सर्दी बरसात से शीघ्र ही व्यथित हो जाते हैं।अर्थात उनके लिए विपरीत वातावरण उनकी सहन शक्ति के बाहर हो जाता है। प्रत्येक अभिभावक का कर्तव्य है की वे अपने बच्चे के सुनहरे भविष्य के लिए उसके अन्दर सहन शक्ति पैदा करें, ताकि जीवन के संघर्ष में .प्रतिद्वंद्विता का सामना करते समय वे विचलित न हो पायें।उनकी संघर्ष करने की क्षमता ही उन्हें जीवन की ऊंचाईयों पर ले सकती है, न की उनका विलासिता पूर्ण जीवन। यदि उन्हें सुख संसाधन उपलब्ध है तो यह उनके लिए भाग्यशाली सिद्ध होना चाहिए,अभिशाप नहीं। उच्च जीवन शैली के चलते जमीनी हकीकत से भी उन्हें अवगत कराना आवश्यक होता है।
प्रत्येक अभिभावक की इच्छा होती है की उसका बच्चा एक योग्य,सफल,चरित्रवान,और सम्मानिये नागरिक बने,इस लक्ष्य को पाने के लिए आपको स्वयं भी कुछ संयम से काम लेना होगा।अपने बच्चे के संरक्षक बने, निगेहबान बने ,परन्तु छत्र छाया नहीं।उसके व्यक्तित्व विकास एवं आत्मविश्वास बनाने के लिए उसे दौड़ने दें,उसे दौड़ने से पूर्व ही गिर जाने के डर से भयभीत न करें,यदि रास्ते में कोई अड़चन दिखाई दे ,कोई ठोकर लगने की सम्भावना लगे, तो तुरंत उसे बचाने के लिए प्रयास करें।उसके मार्ग को,उसके रास्ते को मखमली न बनायें,बल्कि काँटों पर चलना भी सिखाएं।उसके बचपन में या जीवन के किसी भी मोड़ पर उसके समक्ष कोई समस्या आये तो उसे जूझने का पर्याप्त मौका दें,फिर समाधान भी बताएं। थोडा बरसात में भीगने दें,फिर छत उपलब्ध कराएँ,कुछ गर्मी और सर्दी का अहसास भी होने दें फिर, उससे बचाव के उपाए बताये और बचाव करें। क्योंकि जीवन में अनेक प्रकार के संघषों का सामना करना पड़ता है,अनेक बार धूप छाँव आते हैं,भिन्न भिन्न प्रकृति के लोगों से वास्ता पड़ता है,आवश्यक नहीं होता सभी व्यक्ति तुम्हारी इच्छानुसार चल सके। अतः प्रत्येक प्रकार के व्यक्तित्व के व्यक्ति से सामना करने की क्षमता भी विकसित करनी होगी। संघर्ष चाहे वैचारिक हो या शारीरिक या परिस्थितिजन्य बच्चों को संघर्ष से जूझना सीखना चाहिए।कठिन परिस्थितियों में भी पलायन की प्रवृति नहीं होनी चाहिए।विषम परिस्थितियों से संघर्ष करके या उनसे जूझ कर ही उन्नति के मार्ग पर अग्रसर रहा जा सकता है।यही कारण है अभावों में पलने वाले जुझारू बच्चे अधिक ऊंचाइयों तक पहुँचते देखे जा सकते हैं।जबकि सर्वसुविधा संपन्न जूझने के प्रवृति के अभाव में कम बच्चे आगे बढ़ पाते हैं।यदि किसी सुविधा संपन्न परिवार में बच्चा जुझारू प्रकृति का है तो उसके लिए कोई भी मंजिल दूर नहीं होती। किसी ने ठीक ही कहा है,सोने को जितना तपाया जाय वह उतना ही निखर कर चमकदार बनता है।

अपने बच्चों के समय रहते दुनिया की वास्तविकता से परिचित कराना  आवश्यक है,क्योंकि इस दुनिया में एक से एक बड़ा अमीर व्यक्ति है, तो बदहाली में जीने वाले लोग भी बहुतायत में हैं।अतः बच्चों को उच्च स्तरिये जीवन जीने के गुर सिखाते हैं तो उन्हें निम्न स्तरीय जीवन यापन कर रहे लोगो की व्यथा कथा  से भी परिचित कराएँ। साथ ही उसे बताएं की उसकी अपनी सीमायें क्या हैं।अपने स्तर  से अधिक सुविधाओं की अपेक्षा कर के दुखी होना ,परेशांन होना कोई समझदारी नहीं है।अपनी चादर के अनुसार ही पैर पसारें।अपनी सीमाओं को पहचान कर संतुष्ट होना सिखाएं।अपने से निम्न स्तरीय परन्तु महनतकश  व्यक्ति का कभी भी अपमान न करें।उसके प्रति उदारता दिखाएँ।अधिक भौतिक वादी महत्वाकांक्षा भ्रष्टाचार को आमंत्रित करती है।यदि सदा जीवन उच्च विचार को अपनाया जाय तो शांति पूर्ण और सम्माननीय जीवन बिताया जा सकता है।जीवन में सफल होने के लिए शिष्टाचार ,संयम,सहनशीलता ,उदारता जैसे गुणों का विकास होना आवश्यक है।जो बचपन में माता पिता या अभिभावक और शिक्षक  के उचित मार्गनिर्देशन द्वारा ही संभव  हो पाता  है।

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