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प्रधानमंत्री के अगले कांग्रेसी उम्मीदवार राहुल गाँधी ही क्यों?

jara sochiye
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आजादी के पश्चात् कांग्रेस अधिकतम समय तक देश की सत्ता पर काबिज रही है।यद्यपि इस दौरान कांग्रेस ने अपने कई स्वरूप ग्रहण किये,अनेकों बार कांग्रेस विभाजित हुयी,अनेक दिग्गज नेता पार्टी को छोड़ कर चले गये ,उन्होंने पृथक दल निर्मित किये।परन्तु वे कांग्रेस को विकल्प नहीं दे पाए।कोई भी अन्य गैर कांग्रेसी दल भी कांग्रेस का मजबूत विकल्प नहीं बन पाया। प्रश्न यह उठता है आखिर क्या कारण है की कांग्रेस को कोई उल्लेखनीय टक्कर नहीं दे पाया? जबकि स्वास्थ्य लोकतंत्र के लिए विपक्ष का मजबूत होना अति आवश्यक है।क्या अन्य दलों में या कांग्रेस से छिटके किसी नेता में इतनी क्षमता नहीं है की वह देश की सत्ता को प्रभावी ढंग से संभाल सके? क्या कांग्रेस के पास अधिक योग्य एवं क्षमतावान नेता हैं, जो सभी अन्य नेताओं को प्रभावी नहीं होने देते? ऐसे क्या कारण हैं जो बार बार जनता, कांग्रेस को ही बहुमत देकर सत्ता हस्तांरित कर देती है? क्या कांग्रेस में पनप रही परिवारवाद की परंपरा या व्यक्ति पूजा लोकतंत्र के हित में मानी जा सकती है? इसी कड़ी में क्या राहुल गाँधी को प्रधान मंत्री का उम्मीदवार बना देना उचित है? क्या गाँधी परिवार से जुड़ा होना ही उनकी प्रधान मंत्री पद की योग्यता का मापदंड मान लेना उचित है? जिस व्यक्ति को कभी कोई मंत्रालय सँभालने का कोई अनुभव न हो, वह प्रधान मंत्री बनने योग्य हो सकता है? क्या एक अनुभव हीन व्यक्ति के हाथों में देश की बागडोर दे देना, देश हित में हो सकता है? क्या कांग्रेस में अनुभवी नेताओं का अभाव है?
उपरोक्त सभी पर्श्नो के उत्तर जानने और समझने के लिए हमें स्वतंत्रता के पश्चात् देश के राजनैतिक इतिहास पर दृष्टिपात करना होगा,आखिर ऐसी क्या मजबूरी है जो कांग्रेस का वरिष्ठ से वरिष्ठतम नेता गाँधी परिवार से जुड़े किसी भी व्यक्ति को साष्टांग प्रणाम करने लगता है, उसके गुणगान करने लगता है ?
इसके कारणों को समझने के लिए हमें स्वतन्त्र भारत के राजनैतिक इतिहास का विश्लेषण करना होगा।आईये एक नजर डालते है आजादी के पश्चात् के घटनाक्रम पर;–

देश को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात्, क्योंकि आजादी की लडाई लड़ने और उसके कार्य कर्ताओं द्वारा दी गयी आत्माहुति,का मुख्य श्रेय कांग्रेस पार्टी के नाम से संचालित संगठन को दिया गया था।अतःकांग्रेस के अतिरिक्त कोई अन्य पार्टी जनता को स्वीकार्य नहीं हो सकती थी, और कांग्रेस को सत्ता का भार सौंपा जाना निश्चित था।महात्मागाँधी के आशीर्वाद स्वरूप कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्री जवाहरलाल नेहरु को प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।और संविधान लागू होने के पश्चात् जब पहली बार आम चुनाव हुए तो नेहरु के संरक्षण में कांग्रेस को,संगठित विरोधी पक्ष के अभाव में अप्रत्याशित जीत हासिल हुयी।और नेहरु जी निरंतर प्रत्येक चुनाव में जीत प्राप्त करते रहे,और अपने अंतिम क्षणों तक अर्थात मई 1964 तक ,कांग्रेस को सत्ता का सुख देते रहे।इस दौरान कोई अन्य पार्टी कांग्रेस का विकल्प बनने लायक अपने को सक्षम नहीं कर पाई।यद्यपि जनसंघ,कम्युनिस्ट पार्टी,समाजवादी पार्टी इत्यादि अनेक पार्टियाँ अपनी उपस्थिति देश के राजनैतिक पटल पर दर्ज करा चुकी थीं।वे सभी पार्टियाँ अपनी लोकप्रियता में कांग्रेस से बहुत पीछे थी।
नेहरू जी के देहावसान के पश्चात् कांग्रेस ने अपना नेता श्री लाल बहादुर शास्त्री जी को चुना, जो बेहद ईमानदार,कर्मठ, निष्ठावान नेता थे,देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने।परन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर था. मात्र अट्ठारह माह पश्चात् उनकी असामयिक मृत्यु हो गयी।देश एक बार फिर से नेतृत्वहीन हो गया।क्योंकि कांग्रेस में उनके पश्चात् कोई भी सर्वमान्य नेता नहीं था।कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं का ख्याल था, नेहरू जी की पुत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी को प्रधान मंत्री बना दिया जाय ताकि कांग्रेस को जनता का नेहरू के प्रति स्नेह पहले की भांति मिलता रहेगा और सरकार पर हमारा बर्चस्व भी बना रहेगा। क्योंकि उनके आंकलन के अनुसार इंदिरा गाँधी अपरिपक्व एवं प्रशासनिक तौर पर सक्षम नहीं है,अतः उनके कंधे पर रख कर बंदूक चला कर आसानी से अपने स्वार्थ सिद्ध किये जा सकेंगे।परन्तु नेताओं में एक धड़ा मोरारजी देसाई को प्रधान मंत्री के रूप में देखना चाहता था।इस मतभेद के चलते, सांसदों के मध्य मतदान द्वारा सदन का नेता चुनने का निर्णय लिया गया,और उसमे इंदिरा गाँधी का पलड़ा भारी निकला।अतः इंदिरा गाँधी को संसद का कांग्रेसी नेता चुन लिया गया और प्रधान मंत्री बना दिया गया।24,जनवरी 1966 में श्रीमति इंदिरा गाँधी देश की प्रथम महिला प्रधान मंत्री बनीं,पार्टी में एकता बनाये रखने के लिए श्री मोरारजी देसाई को उप प्रधान मंत्री बनाया गया।
परन्तु कांग्रेस पार्टी की आन्तरिक कलह के कारण 1967 के आम चुनावों में कांग्रेस को काफी नुकसान उठाना पड़ा।फलस्वरूप विरोधी पार्टियों ने अपने पैर ज़माने शुरू कर दिए। परन्तु जिसे कांग्रेसियों ने रबर की गुडिया के तौर प्रधान मंत्री बनाना चाहा था,इंदिरा गाँधी ने नेतृत्व सँभालते ही अपने दृढ व्यव्हार,एवं कुशल प्रशासनिक क्षमता के कारण सभी वरिष्ठ कांग्रेसियों के इरादे धराशाही कर दिए।उन्होंने अनेक कड़े फैसले लेकर सबको हिला दिया।कुछ निर्णय ऐसे थे जिन्हें किसी भी कुशलतम नेता के लिए भी आसान नहीं था,जैसे बेंकों का राष्ट्रियकरण करना ,राजाओं के प्रिवीपर्स समाप्त करना, मुद्रा अवमूल्यन जैसे कठोर कदम उठाकर अपने को एक कुशल प्रशासक सिद्ध कर दिया।और उनकी सत्ता पर पकड़ मजबूत हो गयी।जिन कांग्रेसी नेताओं के अरमान धराशाही हो गए थे,उन्होंने मोरारजी देसाई के संरक्षण में पार्टी के संगठन ने इंदिरा गाँधी को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित दिया और अपनी पार्टी को वास्तविक कांग्रेस पार्टी सिद्ध करने का पर्यास किया।जब मामला चुनाव आयोग के पास पहुंचा तो उसने किसी को भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस की मान्यता नहीं दी।सत्तारूढ़ पार्टी को ,कांग्रेस (इंदिरा)और दूसरी पार्टी को संगठन कांग्रेस के नाम सेअलग अलग मान्यता दे दी।और इन्ही नामों से 1971 के चुनावो को लड़ा गया जिसमें इंदिरा के नेत्रित्व वाली पार्टी भारी बहुमत से जीत प्राप्त की।और पूरी दृढ़ता के साथ सत्ता पर काबिज हो गयीं।उनके कुशल नेतृत्व में ही पाकिस्तान के साथ 1971 की लडाई लड़ी गयी और बंगला देश का उदय हुआ।जिसने इंदिरा गाँधी का कद बहुत ऊंचा कर दिया था।परन्तु अति उत्साहित हो जाने के कारण अब इंदिरा गाँधी ने अपना निरंकुश व्यव्हार शुरू कर दिया था।उनके इस व्यव्हार के विरोध में समाजवादी नेता श्री जय प्रकाश नारायण ने अपना आन्दोलन चलाया,जिसका जनता से अप्रत्याशित समर्थन प्राप्त हुआ।जिससे इंदिरा सरकार हिल गयी,इसी बीच हाई कोर्ट का फैसला आया ,जिसमे इंदिरा गाँधी के गत चुनावो में अनुचित साधनों के उपयोग का दोषी पाए जाने के कारण, चुनाव निरस्त कर दिया गया , जिससे इंदिरा गाँधी बौखला गयीं।उन्होंने देश में बढ़ रही अराजकता का बहाना बता कर,देश में शांति बहाली के लिए देश पर आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी और सभी विरोधी पार्टी के नेताओं को जेल में डाल दिया।इस दौरान अनेक तानाशाही फरमान सुनाये गए,जनता के संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों को निरस्त कर दिया गया।मीडिया की सभी ख़बरों पर सेंसर कर दिया गया।आपातकाल के दौरान सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए अपने कर्तव्यों का सख्ती से पालन करने के आदेश दिए गए,कर्तव्य के प्रति लापरवाह कर्मियों को सीधे जेल में डालने के आदेश कर दिए गए।आपातकाल के अन्य फारमानों के अतिरिक्त एक मुख्य आदेश के अंतर्गत पुरुष नसबंदी करने को लेकर सख्ती करना सर्वाधिक कष्टदायक था।जिससे जनता बहुत अधिक आक्रोशित हो गयी,वह कांग्रेस और इंदिरा गाँधी से कुपित हो गयी।जिस कारण 1977 में कराये गए चुनावो में इंदिरा कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा ,इंदिरा गाँधी स्वयं अपनी संसदीय सीट भी नहीं बचा पायीं।जनता ने आपातकाल का विरोध करते हुए नवनिर्मित पार्टी जनता पार्टी को भारी बहुमत से जिता दिया।देश में प्रथम बार 24 मार्च 1977 को गैर कांग्रेसी सरकार ने देश की सत्ता संभाली।पहली बार जनता को गैर कांग्रेसी सरकार के शासन का अनुभव हुआ।
जनता पार्टी अनेक महत्वकांक्षी नेताओं की पार्टी थी,अनेक नेता प्रधान मंत्री बनने के इच्छुक थे। उनकी महत्वाकांक्षा के कारण,मात्र 27 माह के अल्प काल में ही मोरारजी देसाई की सरकार लड़खड़ाने लगी।जनता पार्टी की अंतर्कलह का लाभ उठाते हुए कांग्रेस पार्टी ने चौधरी चरण सिंह को अपना समर्थन देकर,प्रधान मंत्री बना दिया और इस प्रकार 28 जुलाई 1979 को जनता पार्टी को सत्ताविहीन कर दिया,और मध्यावधि चुनावों की घोषणा दी।मध्यावधि चुनावो में पुनः विजय प्राप्त कर इंदिरा गाँधी ने 14 जनवरी 1980 को फिर से सत्ता प्राप्त कर ली।जनता ने एक बार फिर डांवाडोल जनता पार्टी की सरकार के स्थान पर इंदिरा की स्थायी कांग्रेस सरकार को पसंद किया।इस प्रकार से विपक्ष की कमजोरी कांग्रेस की जीत का कारण बन गयी।
शास्त्री जी के निधन के पश्चात् राष्ट्र को एक बा
र फिर से 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या की त्रासदी झेलनी पड़ी,और अस्थायी तौर पर श्रीमती इंदिरा गाँधी के पुत्र
राजीव गाँधी को सत्ता सौंप दी गयी।श्रीमती इंदिरा की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर ने एक बार फिर कांग्रेस को भारी बहुमत से जिता दिया,और राजीव गाँधी देश के प्रधान मंत्री बन गए।इस प्रकार से देश को फिर से कांग्रेस की सत्ता का साथ मिला।1989 में बोफोर्स मामले में तत्कालीन रक्षा मंत्री,एवं वित्त मंत्री श्री वी पी सिंह को तथाकथित घोटाले के लिए आरोपित किया गया,और मंत्रीमंडल से हटा दिया गया।इसके पश्चात् वी पी सिंह ने कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र देकर जनमोर्चा के नाम से नयी पार्टी बना ली।1989 के आम चुनावों में अनेक विरोधी पार्टियों ने मिल कर जनता दल के नाम से गैर कांग्रेसी मोर्चा बनाया और वी पी के नेतृत्व में दूसरी बार गैर कांग्रसी सरकार गठन किया गया।
परन्तु इस बार भी पूर्व की भांति ही गैर कांग्रसी सरकार का हश्र हुआ,नेताओं की रस्साकशी ने वी पी सिंह सरकार का कार्यकाल पूरा नहीं होने दिया,भारतीय जनता पार्टी ने वी पी सिंह सरकार से हाथ खींच लिया। इस बीच अति महत्वाकांक्षी श्री चन्द्र शेखर अपने 64 सांसदों के साथ जनता दल से अलग हो गए और समाजवादी जनता दल के नाम से एक पार्टी का गठन किया,तथा कांग्रेस के समर्थन से सत्ता ग्रहण कर ली।अपने स्वभाव के अनुसार शीघ्र ही कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस लेकर मध्यावधि चुनावों की घोषणा कर दी।1991 में जब चुनाव अनेक चरणों में चल रहे थे, प्रचार के दौरान ही श्री राजीव गाँधी की हत्या कर दी गयी।और सहानुभूति की लहर में जनता ने एक बार फिर से कांग्रेस को भारी समर्थन दिया।सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के कारण अनेक क्षेत्रीय दलों के समर्थन के साथ पी वी नरसिंघा राव के नेतृत्व एक बार फिर से कांग्रेस की सरकार केंद्र की सत्ता पर आसीन हो गयी।
उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा भी किया,परन्तु इस अवधि में देश में क्षेत्रीय दलों ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी दखल देनी शुरू कर दी थी। जो एक तीसरे मोर्चे के रूप में मुखरित हो रहे थे।श्री चन्द्र शेखर के कार्यकाल में आयात के भुगतान के लिए देश के सोने को गिरवी रखना पड़ा था, देश लगभग कंगाल हो चुका था।अतः राव कार्यकाल में एक बहुत बड़ा राष्ट्रिय निति में बदलाव किया गया। तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने उदार आर्थिक निति की घोषणा कर सभी विदेशी कम्पनियों के लिए देश में कारोबार करने के लिए भारत के द्वार खोल दिए,ताकि विदेशी मुद्रा का संकट टाला जा सके,आयात निर्यात संतुलन बनाया जा सके और देश के आर्थिक हालत सुधर सकें,जो देश के विकास के लिए बहुत बड़ा कदम था। परन्तु इस कदम को फलीभूत होने के लिए काफी समय की आवश्यकता थी।अतः जनता में इस निति में बदलाव के कारण कोई उत्साह नजर नहीं आया। 1996 के आम चुनावो में जनता कांग्रेस पर लगे अनेकों घोटालों के आरोपों के कारण कांग्रेस से नाराज थी,गाँधी परिवार का कोई चमत्कारिक व्यक्ति चुनावों में शामिल नहीं था। अतःकांग्रेस समेत कोई भी पार्टी बहुमत नहीं जुटा पाई चुनाव परिणाम में लोकसभा त्रिशंकु स्थिति में उभरी।और क्षेत्रीय पार्टियों(तीसरा मोर्चा) को सत्ता तक पहुँचने का सुनहरी अवसर प्राप्त हुआ। बारी बारी से अनेक खिचड़ी सरकारे आती रहीं और जाती रहीं।अंत में 1998 में फिर से मध्यावधि चुनाव करने पड़े,इस बार भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी उभर कर आयी,और
अन्य पार्टियों से जोड़ तोड़ कर सरकार का गठन किया।परन्तु मात्र तेरह महीने के कार्यकाल में ही अल्प मत में आ गयी और देश को एक बार फिर से मध्यावधि चुनाव झेलना पड़ा।
1999 में हुए चुनावों के फलस्वरूप भारतीय जनता पार्टी अनेक दलों का समर्थन प्राप्त कर फिर से सत्ता में आ गयी और अपने कार्यकाल को पूर्ण भी किया।यह पहली ऐसे गठबंधन सरकार थी जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया।इस बार के चुनावों में कांग्रेस ने राजीव गाँधी की पत्नी श्रीमती सोनिया गाँधी को अपने अध्यक्ष के रूप में स्वीकार कर लिया था अतः यह चुनाव सोनिया के संरक्षण में हुए।अंततः 2004 में सोनिया के नेतृत्व में कांग्रेस को करीब करीब बहुमत मिला गया,कुछ छोटी पार्टियों का समर्थन लेकर देश की बागडोर संभाल ली।इस बार डॉ मनमोहन सिंह सोनिया के आशीर्वाद से प्रधान मंत्री बनाये गए।2009 के आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के कमजोर प्रदर्शन के कारण, दोबारा कांग्रेस को सत्ता मिली और मनमोहन सिंह दोबारा प्रधानमंत्री बने।

उपरोक्त सभी घटना क्रमों से यह स्पष्ट हो जाता है की जब जब गाँधी परिवार का कोई भी व्यक्ति कांग्रेस का नेतृत्व संभालता है जनता का समर्थन मिल ही जाता है।यह भी सिद्ध हो चुका है जब भी गैर कांग्रेसी सरकार बनी देश को स्थायी सरकार नहीं दे पाई।जिस नेता ने भी कांग्रेस छोड़ी उसका राजनैतिक भविष्य अंधकार मय हो गया।हर बार जब भी चौबे जी छक्के बन्ने चले और दूबे रह गए।

उपरोक्त वर्णित गत पैंसठ वर्षों के राष्ट्रीय राजनैतिक सफ़र से निष्कर्ष निकलता है की ;

1,देश की स्वतंत्रता की लडाई से सम्बद्ध होने के कारण जनता के मानस पटल पर एक मात्र कांग्रेस पार्टी ही देश की सच्ची हितैषी बनी हुई है,भले ही आज के नेता भ्रष्टाचार के आकंठ डूबे हुए हैं।विभाजन के समय कांग्रेस द्वारा विस्थापितों के लिए मानवीय आवश्यकताओं की व्यवस्था,एवं संविधान में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की स्थापना के कारण मुस्लिम समुदाय में उसकी पैठ आज भी कही न कहीं बनी हुई है।मुस्लिम तुष्टिकरण का खेल भी सर्वाधिक कांग्रेस ने ही खेला है।

2,लम्बे समय से सत्ता में बनी रही कांग्रेस पार्टी का आज तक कोई मजबूत जनाधार वाला राष्ट्रिय दल, सत्ताधारी दल का विकल्प नहीं बन सका।जो देश और लोकतंत्र के लिए स्वास्थ्यकर नहीं है।मजबूत विपक्ष अच्छे लोकतंत्र का प्रतीक होता है।

3,गाँधी परिवार के साथ होने वाली त्रासद घटनाओं(पहले इंदिरा गाँधी और फिर राजीव गाँधी की दर्दनाक हत्या ) ने गाँधी परिवार को देश की सत्ता के लिए के मात्र विकल्प बना दिया है।

4,अनेकों बार कांग्रेस के असंतुष्ट और महत्वाकांक्षी नेताओं ने कांग्रेस को छोड़ कर अपनी पार्टी बना कर आगे बढ़ने का प्रयास किया,परन्तु सत्ता के शीर्ष तक पहुँचने में असफल रहे या कभी सत्ता तक पहुंचे भी तो शीघ्र ही जनाधार खो बैठे,उनका राजनैतिक भविष्य अंधकारमय हो गया।

5,कांग्रेस पार्टी और गाँधी परिवार एक सिक्के के दो पहलू बन चुके हैं।बिना गाँधी परिवार के नेतृत्व के कांग्रेस पार्टी अपना जनाधार खो देती है।अतः वहां वंशवाद पूरी तरह पनप चुका है जो देश और लोकतंत्र के लिए घातक भी है।

6,यदि कांग्रेस पार्टी में गाँधी परिवार से सम्बद्ध कोई भी व्यक्ति कांग्रेस का नेता बनता है तो कांग्रेस के सत्ता में आने की सम्भावना प्रबल हो जाती है।

यही सब ऐसे कारण बने हुए हैं जो कांग्रेस के वरिष्ठ से वरिष्ठ नेताओं को मजबूर करते हैं की,वे गाँधी परिवार के सदस्यों की चाटुकारिता करें,उनके गुणगान करे और शीर्षस्थ पद पर न सही, सत्ता का सुख तो प्राप्त करते रहें,क्योंकि उन्होंने राजनीती में समाज सेवा की भावना से कदम नहीं रखा, बल्कि एक व्यापारी की नियत लेकर आये हैं। और कांग्रेस पार्टी में सर्वसम्मति से राहुल गाँधी जैसे राजनैतिक अपरिपक्व नेता को अपना नेता चुन लिया गया। उनको 2014 में होने वाले चुनावो के लिए भावी प्रधानमंत्री की हैसियत से प्रदर्शित किये जाने की पूरी सम्भावना है।अब यह तो जनता की सोच पर निर्भर करेगा की वह घोटालों की बरसात करने वाली और महंगाई से जनता को त्रस्त करने वाली पार्टी को ताज पहनती है अथवा किसी अन्य पार्टी को मौका देती है।

  • सत्य शील अग्रवाल

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