Menu
blogid : 855 postid : 577

कैसे हो अपराध मुक्त समाज का निर्माण ?

jara sochiye
jara sochiye
  • 256 Posts
  • 1360 Comments

किसी भी समाज के निरंतर विकास करने के लिए समाज में शांति और सुरक्षा का वातावरण होना अत्यंत आवश्यक है।समाज में शान्ती का वातावरण बनाये रखने के लिए उसे अपराध मुक्त होना परम आवश्यक है।अतः प्रत्येक देश की सरकार का प्रथम कर्तव्य है की वह समाज को और देश को वाह्य एवं आन्तरिक नकारात्मक शक्तियों से मुक्त रखने के लिए समुचित व्यवस्था करे।
समाज को अपराध मुक्त रखने के लिए अपराध और अपराधी के मनोविज्ञान को समझना आवश्यक है,यदि अपराधी की मनोवैज्ञानिक प्रवृति का अध्ययन कर उसको मजबूर करने वाली परस्थितियों को बनने से ही रोक दिया जाय, तो समाज को अपराधमुक्त करना अथवा न्यूनतम अपराध वाले समाज की श्रेणी में लाने में मदद मिल सकती है।यद्यपि प्रशसनिक विशेषज्ञों को अपराध विज्ञानं की पूरी जानकारी होती है,परन्तु हमारे देश के राजनैतिक आकाओं की इच्छा शक्ति के अभाव में वे पर्याप्त उपाय नहीं कर पाते,और देश में अराजकता की स्थिति बन जाती है,और आज भी बनी हुई है।कभी विदेशी,आतंकी गतिविधियाँ चलाकर देश में अशांति और अस्थिरता फ़ैलाने की कोशिश करते हैं ,तो कभी स्थानीय निवासी अपने प्रति हो रहे अन्याय के विरुद्ध आन्दोलनरत हो जाते हैं, जो कभी कभी हिंसा में परिवर्तित हो जाता है,और क्षेत्र विशेष का विकास प्रभावित होने लगता है।
अपने राजनैतिक हितों को साधने के लिए सत्ताधारी नेता स्थानीय समस्याओं को जान बूझ कर उलझा देते हैं और परिणाम स्वरूप धरना प्रर्दशन,हिंसक आन्दोलन या फिर आतंकवाद पनपने लगते हैं।जिससे स्थानीय विकास अवरुद्ध हो जाता है,देश में अलगाव जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं।इस प्रकार स्थानीय जनता निरन्तर शोषण का शिकार होती रहती है,जब जनता में असंतोष बढ़ने लगता है तो अपराधों की बाढ़ आ जाती है,कुछ सक्षम और महत्वाकांक्षी ,ऊर्जावान,मेधावी लोग उस क्षेत्र से पलायन करने लगते हैं।उद्यमी और व्यापारी अपने कारोबार को अन्यत्र स्थानांतरित कर लेते है,और क्षेत्र विशेष पिछड़ने लगता है।जो लोग समाज और क्षेत्र के विकास करने में सक्षम होते है,योग्य होते हैं, वे अपने क्षेत्र के स्थान पर किसी अन्य शहर,प्रदेश,या देश के विकास में योगदान कर रहे होते हैं।
अतः यह जानना आवश्यक है की देश और समाज को विकास की उन्मुक्त धारा से जोड़े रखने के लिए समाज को अपराधमुक्त कैसे रखा जा सकता है,प्रस्तुत लेख के माध्यम से इस विषय को समझने का प्रयास किया गया है।परिस्थितियों एवं कारणों को समझने के पश्चात् ही उचित कदम उठा कर समस्याओं के समाधान किये जा सकते हैं और समाज और देश को अपराध मुक्त करने के प्रयास किये जा सकते हैं;
१, कोई भी व्यक्ति प्राकृतिक रूप से अपराधी के रूप में पै
दा नहीं होता।उसकी वर्तमान एवं भूतपूर्व परिस्थितियां उसे अपराध की ओर ले जाती हैं।यहाँ पर एक मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले अपराधों को संज्ञान में नहीं लिया जा रहा है। मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्तियों द्वारा किये जाने वाले अपराधों की संख्या भी नगण्य होती है,जो समाज को उद्वेलित नहीं कर सकते,तथा विक्षिप्त लोगों की गतिविधियों पर आसानी से अंकुश भी लगाया जा सकता है।जब भी किसी क्षेत्र में आम आदमी अपराधिक् गतिविधियों में संलग्न होने लगता है तो समाज में विकृति आने लगती है।जब स्थानीय निवासियों को अपनी मूल आवश्यकताएं अर्थात रोटी कपडा और मकान,जुटाने में असीमित संघर्ष के पश्चात् भी उपलब्ध नहीं हो पाती तो उसका संघर्ष अपराध की ओर उन्मुख होने लगता है।वह अपनी भूख मिटाने ले लिए अपराधियों से भी हाथ मिला सकता है,वह रोजगार पाने के लिए अनुत्पादक कार्यों में जैसे तस्करी,गैर कानूनी व्यापार,चोरी डकैती हेरा फेरी इत्यादि और वह अपराधी बन जाता है।
२, यदि किसी कार्यरत व्यक्ति से उसका रोजगार छीन लिया जाय ,उसके खेत खलिहान को अधिग्रहण कर उन्हें रोजगार विहीन कर दिया जाय,किसी भवन के मालिक को अन्याय पूर्वक उसका निवास स्थान छीन लिया जाय इत्यादि परिस्थितियों में वह अन्याय के विरुद्ध आवाज उठता है। यदि उसको न्याय नहीं मिलता तो उसका संघर्ष अपराध की और भी मुड़ सकता है। ऐसे पीड़ित लोग अवांछित व्यक्तियों के साथ मिलकर समाज में अशांति पैदा कर सकते हैं।जब किसी क्षेत्र में ऐसे पीड़ितों की संख्या बहुमत में हो जाती है तो समस्त क्षेत्र हिंसा और आतंक की चपेट में आ जाता है।अतः यह आवश्यक है किसी भी क्षेत्र में शासन या प्रशासन को स्थानीय लोगों में बढ़ रहे असंतोष को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए,उसे समय रहते स्थानीय समस्या का समाधान निकल लेना चाहिए।और क्षेत्र विशेष को अराजकता से बचा सकता है।
,अपराधिक गतिविधियों के बढ़ने का बहुत बड़ा कारण होता है,हिंसा की प्रतिक्रिया में हिंसा की उत्पत्ति।यदि किसी परिवार के किसी परिजन के साथ अन्याय होता है, उसके साथ हिंसा होती है,उस हिंसा के फलस्वरूप उसकी मौत हो जाती है,वह विकलांग हो जाता है,तो प्रतिक्रिया स्वरूप पूरा परिवार आक्रोशित हो जाता है।वह अपराधी के विरुद्ध बदले की भावना से जलने लगता है, उसकी यह इर्ष्या हिंसा या अपराध के रूप में परिवर्तित होती है।क्योंकि वह दुश्मन से हिंसा के बदले हिंसा का सहारा लेकर ही आत्म संतोष का अनुभव करता है।अनेक घटनाओं में, विशेष कर देहाती क्षेत्रों में देखा गया है इस प्रतिशोध की ज्वाला में परिवार के परिवार नष्ट हो जाते हैं।कुछ परिवार अपने प्रतिशोध के लिए कानून का वैधानिक तरीका भी अपनाते हैं और अपने दुश्मन को सजा दिलाने के लिए धन दौलत के साथ अपना कार्यकारी समय खर्च कर समस्त जीवन स्वाहा कर देते है, अपनी पुश्तैनी जायदाद और अपना रोजगार भी लुटा देते हैं,और सड़क पर आ जाते हैं।रोजगार विहीन व्यक्ति स्वयं समाज के स्वास्थ्य के लिए घातक होता है।
४, हिंसा और प्रतिहिंसा का साक्षात् उदाहरण हम सबके सामने है,सत्तर और अस्सी के दशक में भारत के अनेक शहरों में,देहातों में बार बार धार्मिक दंगे होते रहते थे।उत्तर प्रदेश के कुछ जिले तो जातीय एवं धार्मिक दंगों के लिए पूरी तरह बदनाम हो चुके थे,जिनमे मेरठ,अलीगढ,मुरादाबाद विशेष दंगा ग्रस्त शहर बन गए थे।इन शहरों का विकास पूरी तरह ठप्प हो गया था।इन हालातों के बनने का मुख्य कारण निरंतर बढती जा रही नफरत एवं प्रतिशोध और इंतकाम की आग ही थी।जिस परिवार का कोई सदस्य धार्मिक दंगों की चपेट में आ जाता था,वह पूरा परिवार दुसरे समुदाय के विरुद्ध बदले में जलने लगता था,उसका नुकसान करके ही अपने परिजन के प्रति श्रद्धांजलि देना ही अपना मकसद बना लेता था और दंगों का न थमने वाला सिलसिला चलता रहता था।परिणाम स्वरूप शहर में बार बार धार्मिक दंगे होते रहते थे। पूरा शहर हिंसा का अखाडा बन गया।बाहर से आने वाले व्यापारियों,पर्यटकों,आगंतुकों ने शहर से लगभग नाता तोड़ लिया,शहर में चल रहे व्यापार ,उद्योग धंधे चौपट होने लगे।शहर में बेरोजगारी ने मुहं खोलना शुरू कर दिया,बेरोजगारी के गुस्से ने दंगो में आग में घी की भांति काम किया।इस प्रकार से निरंतर दंगे भड़कने के कारण बनते रहे।
जब समस्या विकट होने लगी तो प्रशासन की नींद खुली और स्थानीय एवं प्रादेशिक शासन व्यवस्था ने तीव्र इच्छा शक्ति दिखाते हुए दंगो को सख्ती से निपटने के लिए सतर्कता बढाई और यथा संभव अनुकूल प्रयास किये ।चुस्त प्रशासन व्यवस्था के कारण परिणाम भी सार्थक निकले।और अनेको वर्षों तक दंगे नहीं हुए कही किसी ने कोई शरारत की तो उसे वही शीघ्र कुचल दिया गया,कर्फ्यू लगाने की धारणा (जनता में दहशत पैदा करता था) समाप्त कर दी गयी।लगभग बीस वर्षो तक की जाने वाली निगरानी के कारण जनता में बदले की आग ठंडी पड़ने लगी,परिजनों के जख्मों की यादे धुंधली पड़ने लगीं।शहर में शांति बने रहने के कारण सबको रोजगार मिलने लगे कारोबार को फलने फूलने का पर्याप्त समय मिला।जब आम जनता अपने कार्यों में व्यस्त रहने लगी तो वह दंगो के घिनौने विचारों से उबरने लगी, उसमे दहशत ख़त्म होने लगी,सभी को अपनी उन्नति के लिए शांति का महत्त्व समझ में आने लगा।वर्तमान नयी युवा पीढ़ी दंगों की ज्वाला से अनभिज्ञ हो चुकी है,और इस प्रकार एक भयानक आतंकी सिलसिला रुक चुका है।आज यदि कोई अराजक तत्व शहर में आग लगाने का प्रयास भी करता है, तो उसे कामयाबी भी नहीं मिलती।इस प्रकार से सभी दंगों के लिए बदनाम शहर उन्नति की और अग्रसर होने लगे।अब यदि प्रदेश में धार्मिक दंगे होते भी हैं तो किसी नए क्षेत्र में अचानक होते हैं, जिनकी कोई निरंतरता भी नही होती।कहने का तात्पर्य है की जनता में बदले की भावना ख़त्म होते ही दंगों के रूप में हिंसा भी रुक गयी।
५, अपराध बढ़ने के एक और कारण को उदाहरण के रूप में समझने का प्रयास करते हैं,यदि किसी कारण से किसी क्षेत्र की फसल बर्बाद हो जाय,स्थानीय जनता और किसान भूखों मरने लगें,और कर्जदार अपना कर्ज बसूलने के लिए अनुचित दबाव बनाने लगें,ऐसी स्थिति में किसान या कर्जदार या तो आत्महत्या कर लेगा (जो एक अपराध ही है),या फिर लूट मार करेगा, हिंसा करेगा,अर्थात वह अपराधों की ओर रुख कर लेगा।इस प्रकार एक आम व्यक्ति विषम परिस्थितियों में अपराध का सहारा लेने लगता है।अतः शासन और प्रशासन का प्रथम कर्तव्य है की समाज में अराजकता फैलने से रोकने के लिए ,जनता को ऐसी विषम परिस्थियों में जूझने से बचाए।
६, अपने मित्रों रिश्तेदारों या परिचितों में विवाद के तीन मुख्य कारण माने गए हैं,वे हैं जर (धनदौलत ),जोरू(पत्नी या स्त्री),और जमीन(खेत खलिहान,मकान या जायदाद).आज के भौतिकवादी युग में प्रत्येक व्यक्ति धन संग्रह करने के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहता है,दौलत कमाने और इकट्ठी करने के लिए वह किसी भी हद तक चला जाता है,फिर चाहे उसके लिए उसे हिंसा का सहारा लेना पड़े किसी की हत्या करनी पड़े,अर्थात दौलत पाने के लिए अपराध करने से संकोच नहीं करता।और जमीन जायदाद या खेत आदि पर जायज, नाजायज कब्ज़ा करने के लिए अनेक हथकंडे अपनाता है,वर्तमान में समाज के खुलेपन ने पति पत्नी के बीच संदेह पैदा करने वाले अनेक कारण पैदा कर दिए हैं,जो अनेको बार अपराधों(हिंसा,हत्या)में परिवर्तित होते देखे जाते हैं।सदा जीवन उच्च विचार,त्याग की भावना,आपसी भाई चारे,बफादारी जैसे गुणों के विकास उत्तम उपाय सिद्ध हो सकते हैं।
७, यदि किसी क्षेत्र ,देश या प्रदेश में किसी अन्य क्षेत्र या देश के लोग आकर अपना बर्चस्व बनाने लगें, स्थानीय व्यवस्था पर अपना नियंत्रण करने लगें,स्थानीय लोगों को शासित करने लगें,उन पर अत्याचार करने लगें,स्थानीय लोगों की उपेक्षा होने लगे,ऐसी परिस्थितियों में स्थानीय समाज आक्रोशित होने लगता है,वह विरोध व्यक्त करता है। यदि शासन फिर भी उनकी समस्याओं की अनदेखी करता है,तो आक्रोश,बगावत अथवा क्रांति और हिंसक आन्दोलनों में भी परिवर्तित होने लगता है,परदेसी या परप्रांतीय व्यक्तियों से घृणा बढ़ने लगती है और अपराध बढ़ने लगते हैं।इस प्रकार से अन्य प्रान्त या देश से आये हुए व्यक्ति अपराधों के बढ़ने का कारण बन जाते है।
इस प्रकार की समस्याओं की अनदेखी भयंकर परिणाम दे सकती है।
८, किन्ही दो देशों के बीच युद्ध की ज्वाला भी अपराध पोषक है।जब एक देश की कुटिल साम्राज्यवादी निति, दूसरे देश पर आक्रमण कर उस देश की शांतप्रिय जनता को हिंसा के लिए मजबूर करती है, पूरे समाज में असंतोष एवं सुरक्षा का वातावरण बन जाता है।पूरे देश में अपराध बोध उत्पन्न हो जाता है।इतिहास गवाह है युद्ध प्रभावित देश सदियों के लिए अपने विकास में पिछड़ जाते है।उनकी विकास की गति विपरीत दिशा में चलने लगती है और उन्हें विश्व की प्रतिस्पर्द्धा से लोहा लेने के लिए अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है।
९, किसी भी समाज में व्याप्त नशाखोरी,सट्टेबाजी जैसे चारित्रिक पतन के कार्य अपराधों और अपराधियों को जन्म देते हैं।यदि उच्च वर्ग का कोई व्यक्ति इस प्रकार के शौक करता है तो वह इन महंगे शौकों के खर्चे उठाने में सक्षम होता है, परन्तु मध्यम आय वर्ग,या निम्न आय वर्ग के व्यक्ति के लिए इनके खर्चों का बोझ उठाना उनकी क्षमता से बाहर होता है।जब कोई नशे जैसे शौक का आदि हो जाता है,तो उसे उस शौक को पूरा करने के लिए धन तो चाहिए ही,और धनाभाव की स्थिति में वह घर के सामान बेचने को मजबूर होता है। यदि फिर भी पूरा नहीं पड़ता तो धोखाधड़ी,लूटमार,राहजनी या गुंडा गर्दी से धन एकत्र कर अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण करने का प्रयास करता है।जहाँ बाल्मिकी ,हरिजन,या पिछड़ी जातियों के मोहल्ले होते है,उनकी बस्तियों के करीब स्थित दुकानदारों,व्यापारियों या कारोबारियों से उगाही करना, उनके साथ नित्य मारपीट करना इनकी नशे की आदतों का परिणाम होता है।कुल मिला कर निष्कर्ष यह निकलता है की नशाखोरी सट्टेबाजी,या जुए बाजी जैसे चरित्र हनन वाले कार्य समाज में अपराधों के कारण बनते हैं।इस प्रकार के अवांछनीय तत्व क्षेत्र के विकास को अवरुद्ध कर देते हैं।अतः अपराधमुक्त समाज बनाने के लिए जनता के चरित्र निर्माण की भी महती आवश्यकता होती है।
अतः समाज को अपराध मुक्त रखने के लिए आवश्यक है,शिक्षा में चरित्र निर्माण पर विशेष जोर दिया जाय,जनता की मूल समस्याओं का समाधान शीघ्र से शीघ्र किया जाय,समाज में पनपने वाले असंतोष को समय रहते दूर किया जाय,समाज में साधनों की असमानता का अंतर निम्नतम करने के प्रयास हों, अपराधी को शीघ्र से शीघ्र सजा देने की व्यवस्था की जाय,और किसी भी अपराधी को सजा से बच पाने के अवसर न मिल पाए। विदित है इन सभी उपायों के लिए शासन और प्रशासन की इच्छा शक्ति का होना अत्यंत आवश्यक है।

सत्य शील अग्रवाल

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh