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क्यों करते हैं हम पूजा

jara sochiye
jara sochiye
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आज ईश्वर के अस्तित्व को नकारने वालों की संख्या निरंतर बढती जा रही है।ऐसे लोग बिना तर्कपूर्ण तथ्यों के सिर्फ आस्था के आधार पर ईश्वरीय सत्ता को मानने को तैयार नहीं हैं।यदि इश्वर के अस्तित्व को मान भी लिया जाय ,परन्तु ईश्वर को खुश रखने के लिए उसकी पूजा अर्चना करना तर्कसंगत नहीं लगता है। अपने इष्ट देव की पूजा आराधना करने का क्या औचित्य है?यह भी विचार मंथन का विषय है। पूजा के क्या लाभ हैं,क्या पूजा करना आवश्यक है?और क्यों?इश्वर अपनी भक्ति क्यों करवाना चाहता है?क्या वह भी मानव की भांति चापलूस पसंद है?यदि एक सर्वशक्तिमान भी चापलूसी जैसे सांसारिक दोषों का शिकार है तो उसकी सार्वभौमिकता भी अपने आप में प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है। विश्व पटल पर विद्यमान सभी धर्मों की मान्यता है की, अपने आराध्य देव की पूजा करके उसे खुश किया जा सकता है और अपनी इच्छा पूर्ती के लिए इश्वर का सहयोग लिया जा सकता है। क्या सिर्फ इश्वर की पूजा आराधना से मनुष्य अधिक सुख शांति पाने का अधिकारी हो जाता है? क्या उसका परिश्रम,अध्यवसाय,ईमानदारी इत्यादि सुख प्राप्त करने के साधन नहीं हैं?क्या कोई व्यक्ति अनैतिक,हिंसक,अवैध कार्य करने के पश्चात् भी पूजा के माध्यम से अपने गुनाहों से मुक्ति पा सकता है? यदि ऐसा संभव है तो सिर्फ पूजा अर्चना द्वारा खुशियाँ प्राप्त कर लेने की धारणा इन्सान को निष्क्रिय बनाने की प्रेरणा स्रोत नहीं बन जाती?यानि पहले अनैतिक,अवैधानिक,असामाजिक कार्य कर अपने भौतिक उद्देश्य प्राप्त कर लें ,तत्पश्चात इश्वर के दरबार में जाकर सारे पापों,सारे दुष्कर्मों से मुक्ति पा लें, दान जैसे धार्मिक कृत्य द्वारा अपने असंगत कार्यों पर पर्दा डाल दिया जाय।
पूजा, आराधना, प्रेयर,नमाज,धार्मिक मान्यता के अनुसार स्वर्ग,जन्नत या हैविन जाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।क्या ईमानदारी,मेहनत,लगन,अहिंसा,परमार्थ जैसे गुण रखने वाला व्यक्ति(परन्तु पूजा में विश्वास न रखने वाला ) सिर्फ पूजा को अपने जीवनका उद्देश्य मानने वाले व्यक्ति के सामने बौना रह जाता है,परन्तु क्यों? जब एक डकैत को विश्वास है, की काली माँ उसके लूटपाट,हिंसा आदि अपराधों को क्षमा कर देगी,तो उसे अधर्म,अनैतिक,असामाजिक एवं हिंसक कार्यों को करने से कैसे रोक जा सकता है?क्या उसकी अराध्य देवी पूजा के माध्यम से उसके गुनाहों को वास्तव में माफ़ कर देगी?
इश्वर के अस्तित्व की कल्पना अर्थात उसके अस्तित्व को स्वीकार करना और उसकी आराधना करना दोनों प्रथक प्रथक कल्पनाएँ हैं।शायद इश्वर की कल्पना ने ही उसे पूजा करने की प्रेरणा प्रदान की होगी, ताकि मानव अज्ञात शक्तियों के प्रकोप से बचा रहे और उसकी कृपा पाने से उसके जीवन में सुख समृद्धि का अस्तित्व बना रहे। उसका अशांत,उद्वेलित,मन शांत हो सके। जीवन में आने वाली उलझनों से निजात पा सके। प्रत्येक धर्म ने अपने प्रथक प्रथक पूजा के नियम नियत किये हुए हैं ,और पूजा,अर्चना धर्म के प्रचार,प्रसार का माध्यम बन गया।
विज्ञान के शोधों द्वारा सिद्ध हो चुका है सभी पूजा पद्धतियां मानव स्वास्थ्य को भी लाभ पहुंचाती हैं। समस्त पूजा सामग्री एवं क्रियाएं मानव को शारीरिक एवं मानसिक लाभ पहुंचती है.पूजा से होने वाले अप्रत्यक्ष, लाभ इन्सान का इश्वर में विश्वास को दृढ कर देता है,वह सोचने लगता है की यह उसकी पूजा का फल है।और इस प्रकार धर्माधिकारियों एवं धर्मों का बर्चस्व बना रहता है।

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