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सबकी ख़ुशी में अपनी ख़ुशी का प्रदर्शन करें

jara sochiye
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मानव समाज में सामान्य प्रथा है की समाज में,परिवार में अथवा विश्व में मानव के दुःख से हम सब लोग विचलित हो जाते हैं,दुखी व्यक्ति या व्यक्तियों से सहानुभूति रखते हैं,और यथा संभव उसका दुःख दूर करने का प्रयास करते हैं।यह बात अलग है की जितना करीब का रिश्ता उस व्यक्ति के साथ होता है उतनी ही सहानुभूति एवं सहायता हम उस व्यक्ति को उपलब्ध कराते हैं। एक कहावत भी प्रचलित है की एक बार किसी के सुख में शामिल न हों परन्तु दुःख की घडी में अवश्य साथ देना चाहिए। एक अन्य कहावत है ‘दुखी के साथ सहानुभूति करते समय मित्र या शत्रु की पहचान नहीं करनी चाहिए’अर्थात सबके दुःख में शामिल होना चाहिए। मानव को मानव मात्र के कल्याण के लिए सोचना ही इंसानियत है।
परन्तु आज के युग में एक बात अक्सर देखने में आती है,की ‘हम अपने दुःख से कम दुखी होते है बल्कि दूसरों के सुख से अधिक दुखी होते है’इस ईर्ष्या के कारण आज इन्सान संवेदनहीन होता जा रहा है,और प्रत्येक इन्सान द्वेष वश दुसरे को नीचा दिखने के उपाए सोचने लगा है, ताकि उसकी अपनी आत्मसंतुष्टि हो सके। अर्थात उसके पतन में वह अपनी ख़ुशी ढूंढता है,और इसी द्वंद्व में वह अपने दुखों को दूर करने के प्रयास करना भी भूल जाता है। हमारे समाज में यह व्यव्हार आम प्रचलन में आ रहा है जो हमारे मानसिक तनाव का मुख्य कारण बनता जा रहा है। अपने दुखों और कष्टों के अतिरिक्त इस प्रकार के अवांछनीय व्यव्हार से उत्पन्न मानसिक तनाव हमारे दैनिक जीवन में मुख्य बाधा बनते जा रहे हैं। इस प्रकार की सोच, हमें बदलनी होगी तभी हमें वास्तविक रूप में प्रसन्नता मिल सकेगी,इससे हमारा लाभ ही होगा नुकसान तो बिलकुल भी नहीं। यदि संभव हो तो ऐसे प्रयास किय जाने चाहिए की अपने परिजनों,रिश्तेदारों और हितैषियों के चेहरे पर मुस्कान ला सकें। यदि हमारे सहयोग से किसी को लाभ मिलता हो अथवा ख़ुशी प्राप्त होती है तो हमें सहयोग देने से पीछे नहीं रहना चाहिए,फिर भले ही हमें कुछ धन हानि या शारीरिक कष्ट क्यों न सहन करना पड़े।इस प्रकार का अनुभव करने वाले जानते हैं,की उसके मन को कितनी शांति प्राप्त होती है। ख़ुशी का प्रदर्शन करने के विभिन्न पहलू हो सकते हैं,जो व्यक्ति से हमारी घनिष्ठता पर निर्भर करता है,जैसे ;-
अपने देश के दूर दराज के भागों में अथवा विदेश में घटित खुशखबरी के लिए सिर्फ अपनी भावनाएं व्यक्त करना ही काफी नहीं है,उसके लिए टेलीफोन अथवा SMS अथवा डाक द्वारा बधाई सन्देश भेज कर उनकी ख़ुशी या सफलता में शामिल हो सकते हैं।यदि अपने शहर की बात है तो उसके द्वारा आयोजित समारोह में उपस्थित हो कर प्रसन्नता व्यक्त कर सकते हैं,बधाई दे सकते हैं। घनिष्ठ व्यक्ति के साथ ख़ुशी माने के लिए तन मन से सहयोग कर उसकी ख़ुशी में चार चाँद लगाये जा सकते हैं और उसे सफलता के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।साथ ही उससे अपने संबंधों में प्रगाढ़ता विकसित की जा सकती है तथा उसे अपनेपन का अनुभव कराया जा सकता है।
यदि कोई ऐसा व्यक्ति जो आपका प्रतिद्वंद्वी अथवा शत्रु है तो भी उसकी ख़ुशी में औपचारिकता निभाने में संकोच नहीं करना चाहिए। कभी कभी तो आपके इस व्यव्हार से कटुता भी समाप्त हो सकती है,बिगड़े सम्बन्धों में सुधार आ सकता है। आपके ख़ुशी व्यक्त करने से आपके व्यक्तित्व में चार चाँद लग जाते हैं तथा आपका समाज में कद ऊंचा हो जाता है।
अनेको परिवार जहाँ लोग निरंकुश स्वभाव रखते है।घर के मुख्य सदस्य अर्थात बुजुर्ग परिवार के अन्य सदस्यों के साथ हमेशा सख्त व्यव्हार रखते हैं,जब वे खुश है तो सब सदस्य खुश होने को स्वतन्त्र है, परन्तु यदि उनका मूड ख़राब है अथवा असामान्य स्थिति में जब वे प्रसन्न नहीं होते तो किसी भी सदस्य के लिए खुश होना उनके लिए असहनीय होता है। ऐसे में घर के अन्य सदस्य घर में आते ही तनावग्रस्त हो जाते हैं।ऐसे परिवारों में आपसी सामंजस्य समाप्त हो जाता है और घर के सक्षम सदस्य घर के अतिरिक्त यार दोस्तों में अपनी खुशियाँ ढूंढने लगते हैं।परिवार एक धर्मशाला के रूप में परिवर्तित हो जाता है या फिर बिखराव की स्थिति आ जाती है।
यदि हम अपने घर के सदस्यों को खुश देखना, सहन नहीं कर सकते तो समाज का क्या हाल होगा सहज ही समझा जा सकता है।अतः हमें सबकी ख़ुशी में खुश होने की आदत डालनी चाहिए। सभी की भावनाओं को सम्मान देना चाहिए तभी हम अपने सम्मान की भी आशा कर सकते है। इस प्रयास से देश और समाज की उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। सबकी उन्नति से हमारी उन्नति व् ख़ुशी भी निश्चित है।कभी आजमा के तो देखिये।(SA-103B)
– सत्य शील अग्रवाल, शास्त्री नगर मेरठ

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