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कानून को ठेंगा दिखाते अपराधी

jara sochiye
jara sochiye
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आज देश में अनेक सक्षम कानून होते हुए भी नित्य प्रति अपराधों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है.आखिर क्यों इतनी तेजी से अपराधों की की बाढ़ आ गयी है.लगता है अपराधियों को कानून से डर ही नहीं रहा.अपराधी बेधड़क होकर अपराध करते जाते हैं,देश के कानूनों,शासन,प्रशासन और न्यायप्रणाली को ठेंगा दिखाते रहते है,और जनता हर बार निस्सहाये सी सब कुछ सहन करती रहती है.हत्या लूट,अपहरण,हफ्ता बसूली,बलात्कार,राहजनी,धोखाधड़ी जैसे अपराध जनता के नसीब बन गए हैं,वह असुरक्षा,और भय में जीने को मजबूर है.हर बार नेता बड़े बड़े वायदे कर चुनाव जीतते हैं, और जनता को हर बार आश्वासनों का झुनझुना ही हाथ लगता है.चुनावों के पश्चात् यदि भला होता है तो जीतने वाले नेता का ,उनके रिश्तेदारों का,और चंद चमचों का जो अपने भ्रष्ट आचरणों से जनता को लूटते है और अपने खजाने भरते हैं।
आखिर क्यों अपराधी निडर होकर अपराध कर रहे हैं और सरकार कुछ नहीं कर पा रही है ?क्यों देश के सारे कानून प्रभावहीन होते जा रहे हैं?किसी भी समाज में,देश में अपराधों को रोकने के लिए सक्षम कानून की आवश्यकता होती है,तत्पश्चात अपराधी को सजा दिलाने की एक प्रक्रिया होती है,जिसके अंतर्गत अपराधी को पकड़ना,अपराधी के अपराध के अनुसार कानून की धाराएँ नियत कर आवश्यक सबूत एकत्र करना,फिर उसे न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर उचित सजा दिलाना और न्यायालय के आदेश के अनुसार उसे सजा का कार्यान्वयन करना। शायद पूरी न्याय प्रक्रिया ही गड़बड़ा गयी है जो अपराधी को सजा दिला पाने में अक्षम है और अपराधी निडर हो गए हैं।न्याय प्रक्रिया लम्बी चलती है जो कभी कभी तो अपराधी की सजा निर्धारित होते होते बीस वर्ष इससे भी अधिक समय लग जाता है,अनेकों बार इस दौरान अपराधी या पीड़ित और गवाह दुनिया से कूच कर गए होते हैं. सजा याफ्ता अपराधी जेल में अपने पैसे के दम पर सारी सुविधाएँ प्राप्त कर लेता है, यहाँ तक की उसे मोबाइल से हफ्ता वसूली का मौका भी मिल जाता है.और अपने धंधे को सुचारू रूप से जेल से चलाता रहता है और अपने चमचों के माध्यम से रकम उगाहता रहता है.अतः उसके लिए जेल भी, उसकी गतिविधियों पर कोई अंकुश लगा पाने में अक्षम साबित होती है.
भ्रष्टाचार का प्रताप; अपराधी पर अंकुश लगाने की पहली कड़ी होती है पुलिस,उससे पहले से सेटिंग होती है अतः अपराध करने के पश्चात् पुलिस कोई कार्यवाही नहीं करती.साथ ही पीड़ित को ऍफ़ आई आर न लिखने को मजबूर किया जाता है ,उसे डराया धमकाया जाता है.पुलिस का यह व्यव्हार भी अपराधियों उकसावा देता है.  यदि अपराधी पकड़ा भी गया तो या तो किसी उच्च अधिकारी की सिफारिश के कारण या घूस लेकर उसे छोड़ दिया जाता है. न्याय प्रक्रिया की अगली कड़ी होती है पकडे गए अपराधी को उसके द्वारा किये अपराध के अनुसार उचित धारा लगाकर उसका चालान किया जाय.परन्तु यदि अपराधी पुलिस की जेब गरम कर देता है तो उस पर इतनी हलकी धाराएँ लगायी जाती हैं, केस को इतना कमजोर कर अदालत में पेश किया जाता है की उसे सजा मिले ही न,यदि मिले तो अपराध के मुकाबले बहुत ही कम. सजा मिले.
यदि पीड़ित किसी हाई प्रोफाइल से सम्बंधित है, किसी बड़े अधिकारी से सम्बंधित है,या राजनैतिक हैसियत वाला होता है, और समाज या मीडिया के दबाव में अपराधी पर धाराएँ गंभीर लग जाती हैं, तो उन अपराधों को सिद्ध करने वाले सबूतों को नष्ट कर दिया जाता है या गवाह को डरा धमका कर,उसे लालच देकर अपने पक्ष में कर लिया जाता है और इस प्रकार केस कमजोर होने के कारण अपराधी बाइज्जत बरी हो जाता है,अदालतों की मजबूरी है की उसे अपराधी के अपराध के विरुद्ध प्रयाप्त सबूत न होने के कारण छोड़ना पड़ता है,वहां पर भावनाएं और सत्यता काम नहीं कर सकती सिर्फ सबूत ही सजा दिल सकते हैं.
अक्सर अपराधी, केस को दिन प्रतिदिन आगे बढाकर अंतिम निर्णय में वर्षों का विलम्ब कर देता है, जिस कारण पीड़ित को समय पर न्याय नहीं मिल पाता। और अपराधी को अन्य अपराधो को करने की छूट मिल जाती है ,कभी कभी पीड़ित के हौसले पस्त करने के लिए उसे डराया धमकाया जाता है उसे केस को वापस लेने के लिए दबाव बनाया जाता है.यदि अपराधी राजनैतिक ताकत रखता है तो पूरे प्रशासन,न्याय तंत्र को अपने लाभ के लिए प्रभावित करता है,और अपराध मुक्त हो जाता है
उपरोक्त तथ्यों से विदित है की पुलिस में ऊपर से नीचे तक व्याप्त भ्रष्टाचार अपराधों को रोक पाने में असमर्थ बना हुआ है और दूसरी तरफ सत्ताधारी नेता स्वयं अनेक अपराधों में संलिप्त रहते हैं,उनका जीवन इतिहास अपराधिक छवि वाला रहा है, तो वे अपराधों को रोकने के प्रयास भी क्यों करेंगे?अधिकतर चुनाव जीत कर आने वाले नेता अपराधियों के बल पर अपनी जीत को सुनिश्चित करते रहे होते हैं. अतः उन अपराधियों को संरक्षण देना उन नेताओं की मजबूरी बन जाती है. इसीलिए आसाराम,नित्यानंद स्वामी,निर्मल बाबा जैसे संत अपने कारोबार को दिन दूना और रात चौगुना बढ़ाते जाते हैं,जो अध्यात्म की आड़ में जनता की धार्मिक भावनाओ का मजाक बनाते है और अन्दर खाने अपराधों को अंजाम देते चले जाते हैं,बड़े से बड़े नेताओं को धमकाने की हिमाकत भी करते है.जब रक्षक ही भक्षक होगा तो अपराधी को अपराध करने से कौन रोकेगा?

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