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हिंदी साहित्य का हिंगलिश स्वरूप कितना उचित ?(कांटेस्ट)

jara sochiye
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आज कल हिंदी ब्लोगिंग के लिए एक सॉफ्टवेयर प्रचलन में है जो अंग्रेजी के की बोर्ड से हिंदी में लिखने की सुविधा प्रदान करता है.अर्थात रोमन लिपि को देवनागरी या अन्य भारतीय भाषाओँ की लिपि में परिवर्तित कर देता है,इस लिप्यान्तरण के सॉफ्टवेर के माध्यम हिंदी में टाइप न कर पाने वालों को हिंदी में लिखने की सुविधा मिल जाती है. हिंदी में टाइप करने के लिए(हिंदी टाइप रायटर से ) विशेष योग्यता की आवश्यकता होती है, और अंग्रेजी की भांति आसान भी नहीं है.इस सॉफ्टवेयर ने प्रत्येक व्यक्ति के लिए कम्प्यूटर द्वारा अंग्रेजी के अक्षरों के माध्यम से हिंदी में लिखना संभव बना दिया।जो हिंदी ब्लोगिंग का लिए वरदान बन गया है.यह भी निश्चित है की हिंदी ब्लोगिंग हिंदी साहित्य के विकास के लिए मील का पत्थर साबित होगा।जो सोफ्टवेयर अंग्रेजी की बोर्ड के माध्यम से हिंदी ब्लोगिंग के लिए हिंदी लिखने का साधन उपलब्ध कराता है उसे हिंगलिश का नाम दिया गया है.
हिंगलिश का शाब्दिक अर्थ है ऐसी हिंदी जिसमें अंग्रेजी के शब्दों का भरपूर प्रयोग होता हो,वह हिंगलिश के नाम से जाना जाता है.कुछ हिंदी साहित्य के विद्वान् एवं शुभचिंतक हिंदी में अन्य भाषा के शब्दों के प्रयोग को अनुचित मानते हैं.उनके विचार से इस प्रकार से अन्य भाषा के शब्दों के प्रवेश से हिंदी साहित्य की मौलिकता को खतरा बन जायेगा,हिंदी साहित्य का विकास रुक जायेगा। अतः खिचड़ी हिंदी पर रोक लगाये जाने की आवश्यकता है.मेरे विचार से किसी भी भाषा में अन्य भाषा के शब्दों के प्रवेश करने से भाषा समृद्ध होती है,उसकी मौलिकता पर कोई आंच नहीं आती.जो शब्द आम आदमी के बोल चाल के प्रचलन में आ चुके हों.उन शब्दों को अपना लेने से साहित्य कोष में वृद्धि होती है,और भाषा समृद्ध होती है.विश्व में कोई भी भाषा ऐसी नहीं है जिसमें अन्य भाषों के शब्दों को न अपनाया हो.कोई भी भाषा अपने आप पूर्ण नहीं होती,समय के अनुसार उसमें परिवर्तन आते रहते हैं.नित्यप्रति उसमें नए शब्दों के संग्रहण बढ़ता रहता है नए शब्दों में अन्य भाषा के शब्द भी हो सकते हैं। जो भाषा आज अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रतिष्ठित है उस भाषा अंग्रेजी ने भी अनेक ग्रीक,लैटिन,जर्मन इत्यादि अनेक यूरोपीय भाषाओँ के शब्दों को अपनाया हुआ है.
अपने विचार को चंद उदाहरणों से स्पष्ट करना चाहूँगा;
यदि हम किसी रिक्शे वाले से कहें “त्रि चक्रिय वाहन स्वामी क्या हमें लौह पथ गामिनी विश्राम स्थल तक ले चलोगे?”तो शायद ही कोई रिक्शे वाला हमारी बात को समझ पायेगा और हमें अनुकूल उत्तर दे पायेगा।परन्तु जब हम उससे सीध सीधे कहें “रिक्शे वाले क्या हमें स्टेशन ले चलोगे “तो उसका तुरंत सार्थक उत्तर हमें मिल जायेगा।कोई भी भाषा हमारी अभिव्यक्ति का माध्यम होती है अर्थात हम अपनी जो बात किसी को कहना चाहें वह सामने वाला समझ सके वही भाषा सार्थक है,समृद्ध है। भाषा के क्लिष्ट होने से उसके विकास की सम्भावना कम हो जाती है.भाषा की आम आदमी तक पहुँच कम हो जाती है.यदि हम अपनी भाषा में क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग करते हैं तो उसको समझने वालों की संख्या कम हो जाती है,जिसको समझने में समय और ऊर्जा व्यर्थ होती है और उत्पादक कार्यों में क्षमता घटती है.भाषा की सरलता और सहजता ही उसे लोकप्रिय और सर्व सुलभ बनाती है,कठिन और क्लिष्ट भाषा का विकास भी कठिन होता है।
हमारे देश में सैंकड़ों वर्षों तक मुस्लिमों का शासन रहा है,जो अपने साथ अरबी और उर्दू भाषा लाये और उन्होंने हमारे यहाँ की बोलचाल में उर्दू और अरबी के शब्दों से प्रभावित किया और ये शब्द हमारी हिंदी भाषा के साथ रच बस गए,इसी प्रकार जब अंग्रेजों ने देश पर अधिपत्य जमा लिया तो वे अपने साथ अंग्रेजी भाषा लाये और अंग्रेजी के अनेक शब्द आम बोलचाल में घुलमिल गए. आज शायद आम आदमी को यह भी नहीं पता होता की यह अमुक शब्द वास्तव में अंग्रेजी का है, उर्दू का या अन्य किसी भाषा का,जिन्हें वह हिंदी के शब्द ही मानता है. परन्तु जब ये शब्द आम तौर पर प्रचलित हो गए हैं तो हिंदी भाषा का ही हिस्सा मान लेने में कोई परहेज नहीं होना चाहिए।
वर्तमान में विज्ञान और प्रोद्योगिकी के विकास के साथ नए उपकरण हमारे उपयोग का हिस्सा बने, जिनके नाम के रूप में नए शब्द चलन में आए. जिन्हें अनुवादित करना या तो संभव नहीं है या उनका आम प्रयोग में आना संभव नहीं हो पायेगा जैसे ,टी वी (दूर दर्शन),फ्रिज(शीतलन यंत्र) ,स्कूटर(द्वि चक्रीय स्व चालित वाहन),वाशिंग मशीन (वस्त्र शोधन यंत्र),कम्प्यूटर,इत्यादि।
अनेक ऐसे शब्द है जो अन्य भाषाओँ,अंग्रेजी,उर्दू,अरबी,पंजाबी,तमिल इत्यादि के शब्द हैं आम बोलचाल में इतना अधिक प्रचलित हो चुके हैं जिन्हें हम हिंदी ही मानते हैं जैसे,पैन,बेड रूम,बाथ रूम,टॉयलेट,स्कूल,कालेज,क्लास,इंटरनेट,रोड,बिजली कनेक्शन,बालकोनी,मुकदमा,वकील,दिक्कत,हिस्सा,कचहरी,इलाज,हकीम इत्यादि।

इस प्रकार के शब्दों को अपनी हिंदी भाषा में अपना लेने से हिंदी का शब्दकोश बढेगा ,हिंदी समृद्ध होगी और हिंदी को सर्वमान्य भाषा बनाने में आसानी हो जाएगी।जब कोई भाषा लोकप्रिय होती है तो उसकी साहित्यिक उन्नति भी तीव्रता से होती है.उससे हिंदी का स्वरूप बिखरने के स्थान पर निखर कर आयेगा।हिंदी के अस्तित्व पर कोई आंच नहीं आने वाली।अतः हिंदी ब्लोगिंग हो या अन्य कोई मीडिया हिंगलिश को अपनाने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए।

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