Menu
blogid : 855 postid : 613488

हिंदी पखवाड़े का औचित्य(कांटेस्ट)

jara sochiye
jara sochiye
  • 256 Posts
  • 1360 Comments

सितम्बर माह में प्रतिवर्ष देश में हिंदी पखवाड़े का आयोजन किया जाता है.हिंदी दिवस(14sept) और हिंदी पखवाडा आम जनता और साहित्यकारों,रचनाकारों,कवियों का ध्यान केन्द्रित करता है,चिंतन का अवसर देता है की, हिंदी को देश की राष्ट्र भाषा बनाने के लिए अभी क्या क्या करना बाकी है,और कैसे हिंदी साहित्य का विकास हो, उसे कैसे विश्व स्तर पर स्थापित  किया जाय. ताकि अपने देश में ही नहीं पूरे विश्व में यह जानी पहचानी जा सके, बोली और समझी जा सके.यों तो पूरे वर्ष ही हिंदी के उत्थान के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। परन्तु हिंदी पखवाडा एक हिंदी पर्व की भांति मनाया जाता है.जिस प्रकार हम अपने त्योहारों में सब काम काज छोड़ कर,समस्त परिजनों के साथ,समाज के साथ मिलजुल कर खुशिया मनाते हैं.उस समय हमारा ध्यान सिर्फ अपनी व्यक्तिगत जिंदगी पर टिक जाता है. इसी प्रकार हिंदी पखवाडा हमें एक अवसर देता है की हम सभी लोग मिल बैठकर सिर्फ अपने हिंदी साहित्य के विकास के बारे में सोचें,विकास के लिए आवश्यक प्रयास करें। उसको देश की सर्वमान्य भाषा बनाने के लिए शासन व्यवस्था को आवश्यकतानुसार नियम और कानून बनाने के लिए दबाब बनायें।सभी साहित्यकारों को हिंदी की अधिक से अधिक और उत्कृष्ट सेवा के लिए प्रोत्साहित करें।जिस प्रकार जागरण जंक्शन ने हिंदी पखवाड़े के अवसर पर प्रतियोगिता का आयोजन किया है,सभी रचनाकारों से उनके विचार जानने के लिए आमंत्रित किया है, अत्यंत सराहनीय प्रयास है. इस प्रतियोगिता के माध्यम से जनता को हिंदी के विकास के लिए अनेक प्रकार के सुझाव पढने को मिले।हिंदी सम्बन्धी अनेक तथ्यों की जानकारी मिली।
देश की अधिकतर क्षेत्रीय भाषाओँ जैसे बंगाली,मराठी,पंजाबी,तमिल,तेलुगु,इत्यादि और हिंदी की जननी संस्कृत है.अर्थात देश की सभी भाषाएँ संस्कृत का परिष्कृत रूप हैं,संस्कृत रुपी गंगा की धाराएँ हैं,परन्तु इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती की हिंदी से सरल, सौम्य,और वैज्ञानिक कोई भाषा नहीं है.और देश में सर्वाधिक ४१% बोली जाने वाली भाषा है.अतः हिंदी के अतिरिक्त राष्ट्र भाषा का विकल्प कोई नहीं हो सकता। देर सवेर हिंदी को राष्ट्रभाषा और सर्वमान्य भाषा का स्थान मिलकर ही रहेगा।

हमारा देश विविधताओं के देश है जहाँ अनेको धर्म,अनेकों पंथ, अनेकों सम्प्रदाय के लोग साथ साथ निवास करते हैं.यह भी हमारे देश की विलक्षणता है की प्रति सौ किलोमीटर के पश्चात् क्षेत्रीय भाषा अपना स्वरूप बदल देती है अर्थात बोली में अंतर आ जाता है.इसके अतिरिक्त पंजाबी मराठी,बंगाली,गुजराती,तमिल तलुगु,मलयालम,उड़िया,भोजपुरी इत्यादि ऐसी अनेक भाषाएँ हैं जिनके बोलने समझने वाले बहुत बड़ी संख्या में हैं,जिनका अपना समृद्ध साहित्य है ,अपनी लिपि है,विश्व स्तर पर भी अपनी पहचान है.यह भी सर्वविदित है प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मात्रभाषा से लगाव होता है,उसको अपनाने में उसे सर्वाधिक सुविधा का अनुभव होता है.यही एक भावनात्मक कारण है जो हिंदी को राष्ट्र भाषा बनने में समय लग रहा है.क्योंकि देश को एकता के सूत्र में पिरोय रखने के लिए क्षेत्रीय भाषाओँ की उपेक्षा नहीं की जा सकती,और क्षेत्रीय भाषा भाषियों पर कोई भाषा थोपी नहीं जा सकती। धीरे धीरे हिंदी को सर्वमान्य भाषा तो होना ही है.वैसे भी आज हिंदी साहित्य को,हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्विता अंग्रेजी से है,और देश के काले अंग्रेजों से है जो अपने को अंग्रेजी में पारंगत होने के कारण प्रतिभाशाली और उन्नत समाज का अंग मानते हैं। हमारी यही मानसिकता हिंदी के विकास में मुख्य बाधक बन रही है.ये काले अंग्रेज इतने प्रभावशाली हैं की सरकार को हिंदी का बर्चस्व बनाने के लिए पर्याप्त कदम उठाने से रोकते रहते हैं.अंग्रेजी सीखना समझना कोई गलत नहीं है परन्तु अंग्रेजी भाषी को हिंदी भाषी के मुकाबले अधिक विद्वान् मानना देश का अपमान है, राष्ट्र भाषा का अपमान है।
बीसवी शताब्दी के उत्तरार्ध में जिस प्रकार से हिंदी फ़िल्में लोकप्रिय हुई है,फिल्म इंडस्ट्री ने जाने अनजाने हिंदी भाषा का बहुत उपकार किया है.बोलीवुड की फिल्मो ने होलीवुड की अंग्रेजी फिल्मों से कड़ी टक्कर लेते हुए देश विदेश में अपना मार्किट बनाया है.फिल्मों की लोकप्रियता ने प्रत्येक देशवासी को और विदेशियों को हिंदी जानने समझने को मजबूर किया है.क्योंकि अपने देश में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी है अतः हिंदी फिल्मो का मार्किट अधिक होना स्वाभाविक था. इसी प्रकार से हिंदी धारावाहिकों,हिंदी टी वी कार्यक्रमों,हिंदी समाचार चैनलों, हिंदी समाचार पत्र, पत्रिकाओं का मार्किट भी बड़ा है,जो हिंदी के प्रचार प्रसार में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं.अब तो हिंदी ब्लोगिंग ने हिंदी के प्रचार प्रसार का बीड़ा उठाया है,सोशल मीडिया की भूमिका को भी नाकारा नहीं जा सकता। यही कारण है कि आज प्रत्येक देशवासी हिंदी को सीखने समझने को लालायित है,जो शीघ्र ही हिंदी के सर्वमान्य भाषा बनने की ओर संकेत करते हैं.इसी प्रकार जब देश विश्व के विकसित देशों की पंक्ति में खड़ा होगा तो हिंदी भी विश्व में अपना महत्त्व बना पायेगी,विश्व भर के लोग हिंदी को सीखने समझने में गर्व का अनुभव करेंगे क्योंकि हिंदी उनके लिए भारत से सम्पर्क बनाने,उनसे व्यापार करने के लिए सर्वाधिक सहज माध्यम होगा।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh