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वर्तमान युग की तेज रफ़्तार जिन्दगी में मानव को अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए,अपने जीवन स्तर की प्रतिस्पर्द्धा में स्वयं को बनाये रखने के लिए अनेकों समस्याओं से नित्य प्रति जूझना पड़ता है।यह संघर्ष उसे मानसिक रूप से उद्वेलित किये रहता है। जो मानसिक तनाव को जन्म देता है ,यही मानसिक तनाव बाद में मानसिक विकृतियों के रूप में परिलक्षित होता है।कृत्रिम खानपान,रहन सहन, प्रदूषण के कारण , मानसिक पोषण के तत्वों का अभाव आदि मानसिक विकारों के कारक बन रहे हैं।
10 अक्टूबर , का दिन प्रति वर्ष विश्व मानसिक दिवस के रूप में मनाया जाता है।इस अवसर पर सम्पूर्ण विश्व के देशों की सरकारों को,सामजिक संगठनों को भौतिक वाद की इस भाग दौड़ में बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक हो गया है।विकास की गति को बनाये रखने के लिए मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों के कारणों की पहचान कर यथा संभव कदम उठाने होंगे। साथ ही विकृत मानसिक स्थितियों के शिकार व्यक्तियों के उपचार के लिए एक आन्दोलन का रूप देते हुए कदम उठाने होंगे। ताकि मानव सभ्यता की उन्नति मानव समाज के लिए अभिशाप बन कर न रह जाये।
मानसिक तनाव के कारण;-
इन्सान जब बालपन में होश संभालता है तब से ही वह माता पिता या अभिभावक की उम्मीदों को साकार करने के दवाब के रूप में तनाव झेलना शुरू कर देता है।क्योंकि मा बाप बच्चे के उत्पन्न होते ही उसके सुनहरे भविष्य के लिए योजनायें बनाने लगते हैं।(अपने जीवन की असफलताओं को बच्चे की सफलता के रूप में देखना चाहते हैं)जो बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा के समय ही दबाव के रूप में उभरती दिखाई देने लगती है, बच्चे के वांछित स्कूल में प्रवेश के लिए जिद्दोजहद शुरू होती है। प्रवेश लेने से पूर्व ही बच्चे को साक्षात्कार के लिए महीनों तक पढाया जाता है। प्राथमिक स्तर पर ही प्रतिस्पर्द्धा में सफलता पाने की जिद्दोजहद उसे उद्वेलित करती है।स्कूली शिक्षा समाप्त होने के पश्चात् मनपसंद (अभिभावकों की पसंद )कोर्स में प्रवेश पाने के लिए प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है।जब वांछित कक्षा में प्रवेश पाने में सफलता नहीं मिल पाती तो वह कुंठा और मायूसी का शिकार होता है, जो कभी कभी उसे अवसाद में ले जाता है,और उसके मानस पटल पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। जिन्हें मन चाहे कोर्स में प्रवेश पाने का मौका मिल जाता है,उन्हें कोर्स पूरा होने के पश्चात् मनमाफिक जॉब पाने के लिए तनाव हो जाता है।क्योंकि अब उसे जॉब पाने के लिए भी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना होता है।सब कुछ मन वांछित होने के पश्चात् जीवन स्तर को प्रतिदिन ऊचाइयों तक ले जाने की जिद्दोजहद शुरू हो जाती है,जो जीवन पर्यंत चलती रहती है जिसका कोई अंत नहीं होता। कारोबारी को कारोबार में व्याप्त प्रतिस्पर्द्धा के चलते कारोबार बढ़ने या उसे यथास्थिति बनाये रखने की चिंता सताती रहती है। व्यापारी या कारोबारी को व्यापार के साथ साथ अनेक सरकारी विभागों से भी निपटना होता है,जो कभी कभी तो बहुत अधिक तनाव दे देते हैं। कारोबारी या व्यापारी को असामाजिक तत्वों का सामना करना होता है,जिनसे उलझने के पश्चात् उसका सारा सुख चैन ही नष्ट हो जाता है। उसका मानसिक संतुलन बुरी तरह से बिगड़ जाता है।
दैनिक कार्यों में अनेक प्रकार के तनाव झेलने पड़ते हैं।कभी कार्य पर जाते हुए रोड जाम में फंसने से तनाव,तो कभी बॉस की डांट फटकार ,कभी अपने अधीन स्टाफ से वाद विवाद से उत्पन्न तनाव,आदि आदि ।ये तनाव तो जीविकोपार्जन के लिए उत्पन्न तनाव हैं ,इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत समस्याएँ भी जैसे परिवार में किसी के रोग ग्रस्त होने से चिंता,कचहरी में चल रहे मुक़द्दमों से मुक्त होने की चिंता,परिवार की आर्थिक समस्याएं,संतान हीन को संतान पाने की चिंता, संतान वालों को संतान के हितों की चिंता इत्यादि।
व्याधियां ;
लगातार मानसिक दबाव या तनाव अनेक मानसिक विकारों को जन्म देता है,अनेक शारीरिक व्याधियों का शिकार बनता है।जैसे उच्च रक्तचाप ,मधुमेह,हृदय रोग, थायरोइड इत्यादि। बढ़ता वायु प्रदूषण,जल प्रदूषण,ध्वनी प्रदूषण,खान पान में गुणवत्ता का अभाव,अनेक प्रकार की मानसिक और शारीरिक व्याधियों को निमंत्रण दे रहे हैं। मानसिक व्याधियों का एक व्यापक रूप होता जा रहा है,जो पूरे परिवार का सुख चैन छीन लेता है। कोई भी व्यक्ति यदि लम्बे समय तक तनाव ग्रस्त रह कर जीता है, तो उसे शारीरिक और मानसिक व्याधियां घेर लेती हैं,ऐसी स्थिति में अनेक व्यक्ति अवसाद ग्रस्त रहने लगते हैं,कालांतर में ऐसे लोग आत्महत्या करते हुए देखे गए हैं। आज समृद्ध देशों में भी आत्महत्याओं का ग्राफ जिस गति से बढ़ रहा है वह यही सिद्ध करता है की जहाँ विकास अधिक है, लोग अवसाद ग्रस्त भी अधिक होते है।लाचार और विवश होकर आत्महत्या जैसे भयावह कदम उठा लेते हैं।अतः विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के इस अवसर पर हमें अपने विकास के साथ मिलने वाले मानसिक तनाव को रोकना होगा, ऐसी परिस्थतियों से बचने के उपाय निकलने होंगे।
सामाजिक विडंबना;
यह हमारे समाज की विडंबना ही है,की आधुनिक सोच विकसित होने के बावजूद मानसिक विकारों को मान्यता नहीं मिलती। सिर्फ पागल व्यक्ति को ही मानसिक रोगी का दर्जा प्राप्त है।अतः मानसिक चिकित्सकों से संपर्क साधने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पागल माना जाता है,जबकि पागलपन मानसिक विकारों का अंतिम पड़ाव है। सभी मानसिक विकृतियों को पागलपन करार देना उचित नहीं है।अधिकतर मानसिक विकृतियाँ उचित चिकित्सा सलाह एवं परिवार के सहयोग से दूर की जा सकती हैं। साथ ही मानसिक दबाव और तनाव पैदा करने वाले कारणों को नियंत्रित कर विकृतियों से बचा जा सकता है। जिसके लिए समस्त परिजनों समाज और देश के नेतृत्व के द्वारा सकारात्मक सहयोग आवश्यक है।
समाधान;
समाज में तनाव जनित मानसिक रोगों के सन्दर्भ में जाग्रति पैदा करने की आवश्यकता है,ताकि समाज प्रत्येक मानसिक रोगी को पागल समझ कर अपमानित न करे बल्कि उसे समुचित सहानुभूति एवं सहयोग दे। आवश्यकतानुसार बिना देरी किये उचित इलाज की व्यवस्था की जाये । प्रत्येक व्यक्ति को तनाव जनित परिस्थितियों से बचने के यथाशक्ति प्रयास करने चाहिए। सामाजिक वातावरण को निर्मल एवं प्रदूषण रहित बना कर इन्सान को तनावमुक्त रखने की व्यवस्था होनी चाहिए । मानसिक चिकित्सकों को विशेष सुविधाएँ प्रदान कर उनको समाज की बेहतर सेवाएं देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए । समाज में प्रत्येक व्यक्ति को योग साधना और व्यायाम के महत्व को समझना चाहिए।जो आज के प्रदूषित वातावरण और भाग दौड़ वाली जिंदगी में भी व्यक्ति को मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य प्रदान कर सकता है।
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