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धर्म की आड़ में पनपती सामाजिक विसंगतियां (THIRD PART)

jara sochiye
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चमत्कार बनाम धर्म

विश्व के सभी धर्मों में कभी न कभी चमत्कार की कल्पना की जाती है. उनके अनुसार संसार से सारे दुराचार एवं कष्ट को हरण करने के लिए ईश्वर अवतार लेते हैं और अपने चमत्कारों से हमारा जीवन खुशियों से भर देते हैं। अल्लाह की कृपा से आपके जीवन में छप्पर फाड़ खुशियां आयेंगी। क्रिसमस के पर्व पर गौड, सांताक्लाज के रूप में आकर सबकी इच्छाएं पूर्ति करेंगे। हनुमान जी अपनी गदा से दुश्मनों का नाश कर देंगे। परीक्षाओं में सफलता दिला देंगे।भूकम्प आने पर देवी की कृपा से पूरा समाज सुरक्षित बच जायेगा। ये सब चमत्कार की कल्पनाएं व्यक्ति की अपने धर्म में आस्था को दृढ़ करते हैं परन्तु धर्म एवं ईश्वर के चमत्कार की उम्मीद में व्यक्ति कर्महीन हो जाता है। अतः कहीं न कहीं धर्म द्वारा जगायी गयी उम्मीद व्यक्ति को निष्क्रिय, आलसी बनाने में सहायक साबित होती है। ईश्वर के द्वारा चमत्कार के भरोसे रहकर व्यक्ति का प्रयासहीन, उत्साहहीन हो जाना भी धर्म के दुरुपयोग की सूची में शामिल हो जाता है। बिना परिश्रम बिना अध्यवसाय, बिना मानसिक एवं शारीरिक प्रयास के कोई विकास सम्भव नहीं है। हम पूजा पाठ आदि इसीलिए करते हैं कि कोई चमत्कार हमारे दुःख दर्द का नाश कर देगा और हमें समृद्धशाली एवं खुशहाल बना देगा।

कोई भी कार्य नियम विरूद्ध अर्थात विज्ञान द्वारा स्थापित नियमों के विरुद्ध होता है तो चमत्कार कहलाता है उसी चमत्कार की आशा हमें अपने इष्ट देव से होती है। अर्थात हम अपने भौतिक संसाधन, भौतिक सुखों को आध्यात्म मार्ग अर्थात पूजा अर्चना, इबादत द्वारा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।जो यथार्थ से परे है. सीमित समय तक पूजा अर्चनाकर अपने मन को शांत करना मानव में ऊर्जा प्रदान कर सकता है। शायद शेष दिन अधिक उत्साह से कार्य को अंजाम दे सकता है. परन्तु सिर्फ इष्ट देव के भरोसे रहकर अपने क्रियाकलापों पर विराम लगा देना किसी भी प्रकार से उचित नहीं हो सकता। दैनिक कार्यों को अंजाम देना जीवन के लिए आवश्यक है और उन्नति के लिए परिश्रम एवं निरंतर प्रयास करना देश समाज-परिवार सबके हित में है।

यह निश्चित है की बिना खेत में मेहनत किये फसल नहीं हो सकती, सैनिक द्वारा शत्रु का डटकर सामना किये बगैर युद्ध नहीं जीता जा सकता। बिना मशीन चलाये और उसका विकास किये बिना उत्पादन ‘फैक्ट्री प्रोडक्ट’ सम्भव नहीं है। बिना डॉक्टर द्वारा उचित उपचार के मरीज के कष्टों का नाश सम्भव नहीं है। अपराधी को सजा दिलवाये बिना समाज में शान्ति की उम्मीद करना बेमानी है।

आतंकवाद और धर्म

कोई भी मानव अथवा जीव अपने जीवन को समाप्त करना नहीं चाहता,अपने जीवन के लिए पूर्ण संघर्ष करता है और अधिक से अधिक जीने की इच्छा रखता है। यही कारण है एक बस ड्राईवर के ऊपर भरोसा कर पचास-साठ लोग अपने जीवन का जोखिम उठाते हुए यात्रा करते हैं अर्थात अपने जीवन को उसके विश्वास पर खतरे में डालते हैं। इसी प्रकार कुछ क्रू सदस्य एवं पायलट के विश्वास पर सैकड़ों हवाई यात्रियों का जीवन दांव पर लगा होता है जिन यात्रियों में बड़े से बड़े नेता, उद्योगपति, व्यवसायी आदि भी होते हैं। छोटे से छोटा व्यक्ति अथवा जीव अपने जीवन से हाथ नहीं धोना चाहता यह जीव का एक विशेष गुण है। परन्तु आतंकवादी वह भी आत्मघाती अपना जीवन नष्ट कर कुछ अन्य व्यक्तियों का जीवन नष्ट करने के लिए कैसे तैयार हो जाते हैं। यह भी धर्म की कट्टरता के कारण सम्भव होता है। कोई व्यक्ति कैसे और क्यों आतंकवादी बनता है, उसकी क्या मजबूरियां होती हैं, उन कारणों में भिन्नता हो सकती है परन्तु उन सबमें मूल भावना जो काम करती है वह है ‘इस्लाम के लिए आत्मघाती हमले में अपनी जान देना जन्नत का पासपोर्ट बनवा लेना है’ अर्थात सच्चे मुसलमान को इस्लाम की भलाई के लिए कुर्बान हो जाना चाहिये। उनका मकसद पूरे विश्व को इस्लामिक बनाना है। आतंकवाद को इस्लाम और गैर इस्लाम की जंग का नाम दिया है। अतः धार्मिक कट्टरता ने ही पूरे विश्व को आतंक के साचे में जीने को मजबूर कर दिया है। जो मानव की सभ्यता के लिए कलंक बन चुका है। विश्व में वर्तमान आतंकवाद के लिए जिम्मेदार धर्म है, धर्म की कट्टरताहै, धर्म का दुरूपयोग है।

क्या आतंकवादी यह निश्चित रूप से कह सकते हैं कि उनके आत्मघाती हमले में सिर्फ गैर इस्लामी व्यक्ति निशाना बनते हैं। उनके हमले में क्या मुसलमान नहीं मारे जाते। दरअसल यह तो आतंकवादी बनाने के लिए उनकी बुद्धि को कुण्ठित करने के लिए इस्लाम का सहारा लेकर मोहरा बनाने की साजिश है। वे सिर्फ अपना भला चाहते हैं, अपना आधिपत्य बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें किसी धर्म, देश, व्यक्ति से कोई लगाव नहीं है। वे हिंसा का सहारा लेकर सत्ता के गलियारे तक पहुंचना चाहते हैं। वे इस्लामी कट्टरता, बदले की भावना, गरीबी व अन्य मजबूरियों का फायदा उठाकर आतंकवादी तैयार कर लेते हैं और अपना स्वार्थ सिद्ध करने में कामयाब हो रहे हैं। एक आम मुसलमान, अमनप्रिय मुसलमान, शिक्षित मुसलमान, इनके काले कारनामों के कारण संदेह के अंधेरे में जीने को मजबूर है। पूरे इस्लाम समुदाय को विश्व में अविश्वास के साथ रहना पड़ रहा है। वह अपना दर्द किसी को बता भी नहीं पा रहा है। धर्म की आड़ में मौत का घिनौना खेल खेलने वाले न तो स्वयं शांति से जीना चाहते हैं और न ही अन्य किसी को जीने देते हैं। यद्यपि यह भी सत्य है हिंसा में लिप्त व्यक्ति किसी धर्म का और मानवता का हितैषी नहीं हो सकता। वह सिर्फ इंसानियत का दुश्मन है वह सिर्फ हैवान है।

नकारात्मक मान्यताएं

प्रत्येक धर्म में कुछ ऐसी मान्यताएं विद्यमान हैं जिनका मानव पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उन्हें दुष्कर्म करने के लिए अपरोक्ष रूप से प्रेरित करते हैं। अब देखते हैं कैसे इस्लाम धर्म के अनुसार जीवन में कम से कम एक हज यात्रा मुसलमान को जन्नत के रास्ते तक ले जा सकती है। हिन्दुओं में जाप जैसे उपायों से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। अतः इंसान कितने भी दुष्कर्म कर ले उपरोक्त शार्टकट उपाय करने से सारे पाप माफ। प्रायः अन्य सभी धर्मों में भी किसी न किसी रूप में यह मान्यता, यह धारणा विद्यमान है। पूजा अर्चना, इबादत, प्रेयर सबकुछ दुष्कर्मों के अभिशाप से मुक्ति के साधन माने जाते हैं। उपरोक्त धारणाएं, मान्यताएं इंसान को परोक्ष रूप से असंगत कार्यों को करने की छूट प्रदान करती है। जो धर्म के मूल उद्देश्य से भटकाव है, मानवता के विरूद्ध है। किसी भी धर्म का उद्देश्य मानव कल्याण के अतिरिक्त कुछ नहीं हो सकता। अवश्य ही इन मान्यताओं को गलत ढंग से परिभाषित किया गया है। शायद धर्माधिकारियों ने अपने स्वार्थ के लिए ग्रन्थों में लिखित शब्दों को गलत ढंग से परिभाषित किया अथवा किवदंतियों द्वारा प्रचारित किया जिसने समाज को पथभ्रष्ट करने में योगदान दिया।किसी भी धर्म को मूल उद्देश्य इंसानियत के विरूद्ध हो ही नहीं सकता। ऐसी पूजा-इबादत करने से क्या फायदा जो व्यक्ति को अपने व्यवहार से इंसानियत के दायरे में न रख सके।

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