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दिल्ली के मुख्य मंत्री श्री अरविन्द केजरीवाल

jara sochiye
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हमारे देश के इतिहास में पहली बार व्यवस्था परिवर्तन,भ्रष्टाचार,काला धन महंगाई जैसे मुद्दों को लेकर समाज सेवी श्री अन्ना हजारे के नेतृत्व में आन्दोलन करने के पश्चात् कोई पार्टी (आप पार्टी) अस्तित्व में आयी और दिल्ली विधानसभा के चुनावों में हिस्सा लिया, और मात्र चौदह महीने के जीवन में ही चुनावों में अप्रत्याशित जीत प्राप्त की. आप पार्टी ने अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली विधानसभा की सत्तर सीटों में अठाईस सीटों पर कब्ज़ा जमा कर पूरे देश को आश्चर्य चकित कर दिया,जिसका शायद स्वयं आप पार्टी को आभास भी नहीं होगा. देश की सभी सत्तासीन पार्टियों में खलबली मच गयी. जिससे स्पष्ट है की जनता वर्तमान सभी पार्टीयों से त्रस्त थी और उनके विकल्प की तलाश में थी. जो उनकी समस्याओं को सुलझा सके,देश में व्याप्त महंगाई ,भ्रष्टाचार,एवं अव्यवस्था से छुटकारा दिला सके. अन्ना जी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार और अव्यवस्था के विरुद्ध चलाए गये आन्दोलन के दौरान मिले जनता के विशाल समर्थन से जनता में आक्रोश सर्वविदित हो गया था. और जनता की मंशा का आंकलन करते हुए श्री अरविन्द केजरीवाल ने आप पार्टी का गठन कर राजनीति में उतरने का निर्णय लिया.और प्रथम बार दिल्ली विधान सभा के लिए जी तोड़ महनत कर जनता को आश्वस्त किया की वे उनकी आकाँक्षाओं के अनुरूप विकल्प देने को तैयार हैं और जनता ने उन्हें चुनावों के माध्यम से विशाल समर्थन दिया. सभी भ्रष्ट राजनेताओं को एक सन्देश दे दिया की अब उनके दिन लदने वाले हैं.अब यदि जनता का नेतृत्व करना है तो भ्रष्ट आचरणों को त्यागना होगा.
विधानसभा में बहुमत प्राप्त करने के लिए,और सरकार बनाने के लिए छतीस विधायकों के समर्थन की आवश्यकता थी. अतः स्पष्ट बहुमत न मिलने के कारण केजरीवाल ने विपक्ष में अपनी भूमिका निभाते हुए जनता की सेवा करने का फैसला लिया.परन्तु भा.ज.पा के पास बत्तीस सीटें होते हुए भी सरकार बनाने में अपनी असमर्थता जाहिर की, वह भी आवश्यक बहुमत प्राप्त करने के लिए मात्र चार विधायक भी नहीं जुटा सकी. शायद उसे उम्मीद नहीं थी जोड़ तोड़ कर खरीदे गए विधायकों पर धन खर्च करना विपक्ष में आप पार्टी के रहते,बेकार जायेगा.और जनता के समक्ष भी गलत सन्देश जायेगा, जिसका खामियाजा उसे १०१४ के लोक सभा के आम चुनावों में भुगतना पड़ सकता है.अतः हमेशा सत्ता के लिए लड़ने वाली पार्टी ने सरकार बनाने में कोई रूचि नहीं ली और अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी.और गेंद आप पार्टी के पाले में डाल दी.भारत के इतिहास में यह पहली बार देखा गया की बहुमत के इतना करीब आने के बाद भी किसी पार्टी ने सत्ता सँभालने में असमर्थता दिखाई. अतः सबसे बड़ी पार्टी के न करने के पश्चात् दूसरी सबसे बड़ी पार्टी यानि आप पार्टी की सरकार बनाने की जिम्मेदारी थी. परन्तु स्पष्ट बहुमत के अभाव में केजरीवाल सरकार बनाने के इच्छुक नहीं थे. क्योंकि वे अपनी सरकार बनाने के लिए किसी पार्टी से समर्थन न लेने की निती पर कायम थे.परन्तु इस बीच कांग्रेस ने अपना पासा फैंकते हुए,जनता की सहानुभूति पाने के लिए,आप पार्टी को सरकार बनाने के लिए बिना शर्त समर्थन देने की पेशकश कर दी. अब दोनों पार्टियाँ केजरीवाल को जिम्मेदारी से भागने का आरोप भी लगाने लगीं. उनका कहना था ‘जनता को ऐसे सपने दिखाए गए हैं जिन्हें आप पार्टी पूरा नहीं कर सकती अतः सत्ता में आने से कतरा रही है.आप पार्टी जनादेश का अपमान कर रही है और जनता को एक बार फिर चुनाव में घसीट कर जनता पर आर्थिक बोझ डालना चाहती है.
इस प्रकार से आप पार्टी को दोनों पार्टियों ने अपने षड्यंत्र में फंसा दिया.अब केजरीवाल के पास एक ही विकल्प बचा था की वे कांग्रेस से मिल रहे बिना शर्त समर्थन से अपनी सरकार बनायें या फिर अपनी जिम्मेदारी से भागने का आरोप झेलें और चुनावों का सामना करें.यद्यपि पार्टी मुखिया अरविन्द केजरीवाल भी दोबारा चुनाव कराकर स्पष्ट बहुमत पाने के पश्चात् सरकार बनाने के पक्ष में थे.अप्रत्याशित समर्थन देने वाली पार्टी कांग्रेस की बदनियत को भांपते हुए उन्होंने कांग्रेस को अपने कार्यक्रम की अट्ठारह सूत्री लिस्ट भेजी, जिन कार्यक्रमों को उसे समर्थन देना होगा.जब कांग्रेस की ओर से सकारात्मक संकेत मिले तो उसने जनता से जनमत संग्रह कर जनता की राय मांगी,क्या उन्हें सरकार बनानी चाहिए. जब जनता की ओर से पर्याप्त समर्थन मिल गया तो वे अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए जनता की आकाँक्षाओं को पूरा करने के लिए सरकार बनाने को तैयार हुए. केजरीवाल जी जानते हैं की कांग्रेस पार्टी कभी भी अपना समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा सकती है,परन्तु कांग्रेस पार्टी कानूनी बाध्यता के चलते एक बार समर्थन देने के पश्चात् छः माह से पहले समर्थन वापिस नहीं ले सकती. अतः श्री केजरीवाल के लिए परीक्षा की घडी है की वे मात्र छः माह में या इससे पूर्व ही जनता की उम्मीदों को पूरा करने का प्रयास करें.लोकसभा के होने वाले २०१४ के आम चुनावों में जनता का दिल जीतने के लिए अपनी नयी राजनीती का उदाहरण भी प्रस्तुत करना होगा.
उपरोक्त घटना क्रम से स्पष्ट है की आप पार्टी सत्ता की लालची नहीं है बल्कि वह यह आरोप भी नहीं झेलना चाहती की पार्टी अपने वायदे पूरे करने से बच रही है.अर्थात उसने अव्यवहारिक वायदे कर चुनाव जीता है. इन्ही परिस्थितियों को देखते हुए उसने सरकार बनाने का मन बनाया. विरोधी मानसिकता के लोग तो उनके प्रत्येक कदम का विरोध ही करेंगे,और अरविन्द केजरीवाल को मौका परस्त साबित करने का प्रयास करेंगे. परन्तु आप पार्टी ने सिर्फ जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार बनाने का कदम उठाया है,न की अपनी या अपनी पार्टी की महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए.अब क्योंकि जनता की राय लेकर केजरीवाल ने सरकार बनाने का निर्णय लिया है.और यह भी सर्व विदित है की केजरीवाल ने किसी पार्टी से समर्थन नहीं माँगा या पाने का प्रयास किया. अतः जनता में सत्ता के लालची होने का सन्देश जाने का कोई कारण नहीं रह गया है. उन्होंने हालातो के अनुसार जो भी कदम उठाया है वह पूर्णतया उचित है. पार्टी या श्री अरविन्द केजरीवाल का स्वार्थ कहीं भी सिद्ध नहीं होता,परन्तु जिसे इस पूरे घटनाक्रम को अपने अतार्किक चश्मे से देखना है तो उसके लिए कुछ भी ठीक नहीं हो सकता.किसी भी न्याय प्रिय,ईमानदार नागरिक को श्री केजरीवाल का हौसला बढ़ने के प्रयास करने चाहिए और आशा करनी चाहिए, की आप पार्टी अपने मकसद में कामयाब हो और देश का कल्याण करे.

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