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क्या ईश्वरवाद काल्पनिक है ? (PART-3)

jara sochiye
jara sochiye
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अनेकों वैज्ञानिक एवं अवैज्ञानिक तर्कों ने यह पुष्ट किया है कि ईश्वर का अस्तित्व सिर्फ काल्पनिक है। प्रस्तुत हैं अनेक ठोस तर्क जो ईश्वर के अस्तित्व को सन्देहास्पद बनाते हैं।

आतंकवाद और धर्म

आज धर्म की आड़ में  आतकं वाद फलने फूलने लगा है। समाज के दुश्मन धार्मिक  कटटरवादी लोग  उनके बहकावे में  आ जाते हैं और  मुस्लिम  आतकंवाद को धार्मिक जिहाद  का नाम दे दिया जाता है और धर्म की सेवा  समझकर आतकंवादियों  का साथ देने  लगते हैं। आतकं वादी अपने प्रभाव क्षेत्र में शरियत काननू लागू कर जनता को अटठ्रहवी सदी के बबर्र कानून के अनुसार  जीने को मजबूर  करते हैं। प्रस्तुत  है उनके अमानवीय कानून के कछु उदाहरण—- पुरुषों को दाढी़ रखना अनिवार्य है, महिलाओं  को शिक्षा वजिर्त है उन्हें  घर से बाहर  पति अथवा पिता के अतिरिक्त किसी के साथ निकलने की इजाजत नहीं है, किसी विवाद का निपटारा अदालत न करके आतकंवादी ही करेंगे, रेडियो टी वी देखना वर्जित है,गाने सुनना वर्जित है, सी.डी. डी.वी.डी. नहीं देख सकते इत्यादि इत्यादि।उपरोक्त नियमों का उल्ल्नाघन करने पर मौत की सजा या कोड़े खाने पड़ते हैं। अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों में ऐसे कानून आज भी लागू हैं और स्थानीय जनता कट्टरवाद को भुगतने को मजबूर है। मुस्लिम आतंकवाद ने मुस्लिमों के लिए पूरे विश्व में संदेह के बीज बो दिये हैं। आम मुस्लिम का जीवन अनेकों कठिनाइयों भरा होता जा रहा है। क्या यह धर्म की दुर्गति नहीं है?जिसने समाज को शांति प्रदान करने के स्थान पर जीवन को ही संकट में डाल दिया है। क्योंकि धर्म के असली मकसद को पीछे छोड़ दिया गया है। इस प्रकार धर्म के द्वारा समाज की सेवा के स्थान पर असामाजिक तत्वों को बढ़वा दिया जा रहा है। आतंकवाद एक धार्मिक बहकावा है। इस बात से भी समझा जा सकता है, वे अपने लक्ष्य सिर्फ अन्य धर्मों के मठों पर ही नहीं मस्जिदों पर भी निशाना बनाते हैं। अपने देश में भी हमले करते हैं, विस्फोट करते हैं जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोग भी हलकान होते हैं। पुलिस टेªनिंग सेन्टर पर हमला कर अपने धर्म अनुयायियों को बंधक बनाने का प्रयास करते हैं और अन्धाधुन्ध गोलियाँ बरसाकर अनेक मुस्लिमों की जान ले लेते हैं। सही मायने में आतंकी और अपराधी, गुंडे का कोई धर्म ही नहीं होता। वे तो सिर्फ मानवता के दुश्मन हैं, इंसानियत का खून करना ही उनका धर्म है। समाज के विकास के दुश्मन हैं। आज  मुस्लिम बनाम आतंकवादियों ने जेहाद के नाम पर पूरी दुनिया को लपेट लिया है। जब कोई भी धर्म इंसानियत को छोड़ देगा तो दुनिया के लिए तांडव ही सिद्ध होगा जिसमें भला किसी का भी नहीं हो सकता।

सामाजिक दुर्बलता बनाम अध्यात्मवाद

सामाजिक दुर्बलता को अध्यात्मवाद फलने फूलने का कारण माना जाता है , अक्सर देखने में आता है कि साधु-संन्यासी, तान्त्रिक, पीर बाबा, ज्योतिषी, पादरी, समाज की दुर्बलता का फायदा उठाते हुए अन्धविश्वास और भय दिखाकर अपने आर्थिक स्वार्थ सिद्ध करते रहते हैं। उनके चंगुल में फंसने वाले अधिकतर अशिक्षित, अल्पशिक्षित और निर्धन वर्ग के लोग होते हैं। आध्यात्मवाद का मूलाधार भय है। भय को दिखाकर (काल्पनिक) समाज को धार्मिक कर्मकाण्डों अथवा अनुष्ठानों के लिए मजबूर किया जाता है। आधुनिक युग में इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी यही नुस्खा अपनाने लगी है। कभी एक माह में दो ग्रहण बताकर अनिष्ठ की आशंका बताई जाती है, तो कभी शनि का प्रकोप दिखाकर दर्शको को भयभीत किया जाता है या फिर प्रलय की आशंका दिखाकर अधिक से अधिक दर्शकों को आकर्षित कर अपनी टी.आर. पी. बढ़ाते हैं। जिससे ज्योतिषियें की जेबें भरती हैं और दुर्बल समाज के व्यक्ति भयभीत होकर पण्डितों और पीर  बाबाओं से उपाय बताने के लिए मिन्नते करते हैं। फिर उनके द्वारा दिये सुझावों  से धर्माधिकारियों को आर्थिक लाभ मिलता है। पीड़ित व्यक्ति को और अधिक डराकर अपनी आर्थिक आवश्यकताएं पूर्ण करना ही उनका ध्येय है।  मैंने अपने जीवन में अनेकों भविष्यवाणियाँ सुनी हैं। बात 1963 की है जब अष्टग्रह का प्रकोप दिखाया गया और जनता इतनी भयभीत हो गयी थी उन दिनों प्रत्येक मौहल्ले में अनेकों रामायण पाठ और गीता पाठ, भगवती जागरण आदि कराये गये सभी लोग   धार्मिक हो चुके थे। 1975 में कलयुग की समाप्ति और सतयुग का आगमन बताया गया। साथ ही कहा गया सिर्फ भक्त अथवा आध्यात्मिक लोग सतयुग देख पायेंगे। इसी प्रकार अन्य प्रकार के भय समय-समय पर दिखाये गये, कभी पूर्ण सूर्यग्रहण, कभी स्काई लैब टकरा जाने की आशंका, अन्य ग्रहों के पृथ्वी के करीब आकर टकराने का भय, सन् 2000 में एक बार फिर सतयुग के आगमन की कल्पना करके समझाया गया की सभी पापी लोग समाप्त हो जायेंगे और सतयुग में शेष रह जायेंगे सिर्फ सदाचारी और धार्मिक आस्था वाले लोग. इस प्रकार  आम जनता को समय समय पर  भयभीत और उद्वेलित किया गया. परिणाम स्वरूप मन्दिरों, मस्जिदों में दुआ मांगने (अपनी सलामती की) के लिए जनता पंक्तिबद्ध खड़ी रही।अभी गत वर्ष यानि दिसंबर 1012  में सारी सृष्टि के समाप्त हो जाने की आशंका जताई गयी , जिसके लिए भविष्यवाणी गत तीन वर्षों से लगतार की जा रही थी,ताकि धर्म की दुकाने चलती रहें।हर बार आम व्यक्ति शंकित भाव से जीता रहा, परन्तु सभी आशंकाएँ  निर्मूल साबित हुईं। जो यह सिद्ध करती हैं कि जनता को आध्यात्मवाद का रास्ता दिखाने का माध्यम भय  ही रहा है .

उपरोक्त सभी भविष्यवाणियाँ अविकसित अथवा कम विकसित देशों से ही होती रही हैं जो इस कथन की पुष्टि भी करता है। पूरे विश्व में समृद्धता और सक्षमता आने पर धर्म भी प्रभावहीन हो जायेगा। अतः अज्ञानता, दबुर्लता, निधर्नता आध्यात्मवाद को फलने फूलने के लिए संजीवनी है.  इसीलिए अल्पविकसित समाज धार्मिक क्रिया कलापों में अधिक जकड़े हुए पाए जाते हैं .विकसित देशों में जिनमें यूरोपीय देश और खाड़ी देश जैसे यू.ए.ई. औमान, बहरीन, कतर आदि शामिल हैं, सब में धर्म विद्यमान हैं  यथा समय पूजा, इबादत करते हैं,परन्तु धर्म के नाम पर पागलपन नहीं है,जो वास्तव में मानव विकास को ही अवरूद्ध कर देता है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांगलादेश, ईरान, अफ्रीकी देश ऐसे ही उदाहरण हैं जो धर्म पर चलने की कट्टरता के कारण अपनी उन्नति पर लगाम लगाये बैठे हैं।

क्या भक्तजन सदैव मुसीबतों से मुक्त रहते हैं?

जैसा कि कहा जाता है जीवन में कष्टों से दूर रहने और सुखी जीवन जीने के लिए ईश्वर की उपासना करनी चाहिये। परन्तु क्या जो अपने इष्ट देव के परम भक्त हैं उनके मन में घनिष्ठ आस्था है, वे लोग अपने जीवन में कष्ट नहीं उठाते, क्या गरीबी उनका पीछा छोड़ देती है?क्या वे जीवन भर सम्पन्न-खुशहाल जीवन बिता पाते हैं? हकीकत यह है दुख और सुख आस्तिक और नास्तिक देखकर नहीं आता। दुर्घटना में दोनों समान रूप से मौत का शिकार होते हैं अथवा घायल होते हैं। सुनामी, जलजला, भूकम्प आदि प्राकृतिक विपदाएँ सभी को समान रूप से व्यथित करती हैं। नास्तिक लोग भी खुशहाल जीवन जीते हैं। सुख और दुःख किसी वर्ग विशेष से प्रभावित नहीं होते। अतः ईश्वर की आराधना सुख पाने अथवा दुखों से बचने का आधार है प्रासंगिक नहीं लगता। मानसिक शांति का कुछ स्तर बढ़ जाये यह अवश्य सम्भव है परन्तु यह भी कटु सत्य है अपने समाज हितों के खिलाफ जाने वाला, अपने देश की खुशहाली के विरूद्ध जाने वाला व्यक्ति विशेष रूप से कष्टों का, सजा का भागीदार बनता है। अतः इंसान का इंसानियत के दायरे में रहकर अपने क्रियाकलाप द्वारा अपनी जीवन यात्रा करना, धार्मिक होने से भी अधिक आवश्यक है।  दुर्घटना, कष्ट, असफलता, बीमारी सब जीवन के भाग हैं परन्तु इंसानियत के दायरे में रहकर समाज सेवा का भाव लेकर जीने से दुःखों की तीव्रता कम अवश्य हो जाती है और दुष्प्रवृतियों पर अंकुश भी लगता है। अनाड़ी भाषा में कहा जा सकता है जिस कार्य को करने के लिए समाज से छिपना पड़े, बचना पड़े वह गलत है, दोष है, धार्मिक भाषा में पाप है।

परिकल्पनाएं एवं स्वप्न

अक्सर सुनने में आता है की हमारे मित्र अथवा पड़ोसी को कोई स्वप्न दिखा जिसमें उसके इष्ट देव ने दर्शन दिये उससे बातें की, उसे आशीर्वाद दिया अथवा भावी जीवन के बारे में संकेत दिया। दर्शन प्राप्त कर आपका मित्र अत्यधिक प्रफुल्लित होता है और अपनी भक्ति को सफल मानता है। अपने को सौभाग्यशाली अनुभव करता है। आश्चर्य की बात है शिव के भक्त को शिवजी दर्शन देते हैं, हनुमान भक्त को हनुमान जी, मुस्लिम को अल्लाह मियाँ और ईसाई को पैगम्बर ईसा मसीह से वार्तालाप करने का अवसर मिलता है, जिसे चमत्कार की संज्ञा दी जाती है। सबसे मजेदार बात यह है कि उनके इष्ट देव उन्हीं की भाषा में उनसे बातें करते हैं। अंग्रेज को अंग्रेजी भाषा में, बंगाली को बंगाली भाषा में, मुस्लिम को उर्दू अथवा अरबी भाषा में जबकि मूल रूप से इंसान कोई भाषा लेकर पैदा नहीं हुआ और न ही होता है। भाषा का विकास इंसान ने अपने विचारों के आदान-प्रदान करने के लिए किया। इसीलिए स्थानीय तौर पर पृथक-पृथक भाषाओं का विकास हुआ। आदिम युग में इंसान अन्य जीवों  की भांति रोना, चीखना आदि हाव-भाव ही जानता था। यदि इष्ट देव आपकी अपनी भाषा में आपसे बातें कर रहे हैं, उससे स्पष्ट है आपके अचेतन मन में सुप्त पड़े विचार स्वप्न के माध्यम से उजागर होते हैं। स्वप्न में इष्ट देव का दिखना चमत्कार नहीं माना जा सकता। कभी-कभी ऐसी घटनाएँ घटती हैं, कोई व्यक्ति मरने के कुछ समय पश्चात् जी उठता है। मैडिकली शायद उसे मृत मान लेने में कहीं त्रुटि रह गयी होती है। यदि उस पुनर्जीवित व्यक्ति से पूछा जाये अपनी बेहोशी की हालत में क्या देखा तो वह अपनी मान्यता अनुसार अपने घटनाक्रम सुनायेगा, ‘‘वह यमदूतों के चंगुल में था अचानक एक  यमदूत बोला हमने गलत व्यक्ति को उठा लिया है अतः जब उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो मुझे वापस छोड़ गये और मेरी बेहोशी खत्म हो गयी।’’ ऐसा वाकया सिर्फ हिन्दू धर्म के अनुयायी सुनाते हैं, किसी ईसाई या मुस्लिम ने कभी ऐसी घटना नहीं सुनाई। क्या उन्हें मरने के बाद यमदूत लेने नहीं आते? क्या यमदूत हिन्दुओं को ही लेने आते हैं? क्या भगवान, अल्लाह, गौड ने अपने सेक्टर बाँटे हुए हैं। अतः अपने अनुयायियों के लिए अलग-अलग नियम बना रखे हैं। क्या वास्तव में ऐसा सम्भव है?

उपरोक्त सभी घटनाएँ उसकी मान्यता, सोच के अनुसार घटित होती हैं, उनमें सत्यता का नितान्त अभाव प्रतीत होता है।

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