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हिंदी के समर्थन के लिए अंग्रेजी की उपेक्षा घातक!

jara sochiye
jara sochiye
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हिंदी का उत्थान उसका प्रचार प्रसार ,उसकी समृद्धि,उसकी लोकप्रियता सभी देश वासियों के लिए गौरव की बात है।विदेशों में हिंदी को सम्मान मिलना,उसको एक भारतीय भाषा के रूप में सम्मान मिलना प्रत्येक भारतवासी का सम्मान है।अतः प्रत्येक देशवासी का कर्तव्य है की वह अपनी राष्ट्र भाषा का सम्मान करे उसके प्रचार प्रसार में अपना योगदान दे,आपसी बातचीत में नित्य व्यव्हार में लाये।हिंदी साहित्य का अध्ययन करे और उसे समृद्ध करने में सहायक बने।हिंदी भाषा ही पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोकर वार्तालाप का सुलभ माध्यम बन सकती है, प्रत्येक देशवासी को अपनेपन का अहसास करा सकती है।
सरकारी काम काज की भाषा हिंदी होने से देश का प्रत्येक नागरिक,सरकारी कानून,सरकारी आदेश,सरकारी सन्देश,एवं समस्त सरकारी गतिविधियों का लेखा जोखा आसानी से समझ सकता है।उसे देश के कानूनों का पालन करने में आसानी होती है।देश का प्रत्येक नागरिक चुनावों में उचित एवं योग्य उम्मीदवार को वोट देकर देश के विकास में अपना सार्थक योगदान दे सकता है।अतः यह तो निश्चित है,सर्वसाधारण द्वारा समझी जाने वाली भाषा ही देश के विकास में सहायक सिद्ध हो सकती है।समाज में शान्ति की स्थापना में सहायता मिल सकती है।किसी भी सरकार के लिए जनता से संपर्क बनाना और शासन व्यवस्था बनाये रखना आसान हो सकता है।
वर्तमान में हिंदी भाषी राज्यों में जनता दो वर्गों में विभाजित है,एक वर्ग बोलने में तो हिंदी का ही प्रयोग करता है परन्तु अपने कामकाज अंग्रेजी में करना अपनी शान समझता है,अपनी विद्वता की निशानी मानता है।उसके विचार से अंग्रेजी में कामकाज करना उसे आम व्यक्ति से ऊंचा करता है।इसलिए अंग्रेजी को छोड़ना नहीं चाहता,अंग्रेजी के पक्ष में अपनी आवाज को बुलंद करता है,वह हिंदी का समर्थन करने वालों को कम पढ़े लिखे या कम बुद्धिमान कह कर नकारता है।एक दूसरा वर्ग जो हिंदी समर्थक है अंग्रेजी को विदेशी भाषा बताकर उसका विरोध करता है,उसका हर संभव तिरस्कार भी करता है।शायद ये वो लोग हैं जो स्वयं को अंग्रेजी लिखने और पढने में असमर्थ पाते हैं।अतः अपनी अयोग्यता को ढकने के लिए यह वर्ग अंग्रेजी का विरोध करता है।यह वर्ग हिंदी भाषी राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश,बिहार, राजस्थान,इत्यादि में मिलता है,और यह भी सर्व विदित है ये सभी राज्य अन्य राज्यों से पिछड़े हुए भी हैं।शायद अंग्रेजी से दुराव भी उनकी गरीबी या बेरोजगारी का एक कारण हो।दक्षिण भारत के विद्यार्थी अपनी स्थानीय भाषा के साथ साथ,अंग्रेजी और हिंदी पर भी अपनी पकड़ बनाते हैं और राष्ट्रिय प्रतिस्पर्द्धा में आगे बढ़ जाते हैं।
वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में अंग्रेजी भाषा का अपना महत्त्व बढ़ गया है,वैश्विक स्तर पर किसी अन्य देश के व्यक्ति से संपर्क करने के लिए (व्यापार करते समय,विदेशों में कोई जॉब करते समय )वार्तालाप का माध्यम अंग्रेजी भाषा ही होती है जिसे लगभग सभी देश के पढ़े लिखे व्यक्ति समझते हैं बोलते हैं।अतः सिर्फ धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने वाला युवक बिना किस अन्य योग्यता के भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में जॉब पा लेता है,और अच्छी खासी जिंदगी जीने योग्य हो जाता है।अतः वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में अपने विकास के लिए अंग्रेजी को अपनाना अत्यंत आवश्यक हो गया है, इससे ही हमारी अपनी और देश की उन्नति निर्भर है।हिंदी भाषा को अपनाते हुए उसे पूर्ण सम्मान देता हुए, अंग्रेजी पर अपनी पकड़ बनाना कोई अपनी संस्कृति का अपमान नहीं है और न ही देश के सम्मान के साथ कोई खिलवाड़।
यदि हमें अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए,अपने व्यवसाय को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने के लिए,अपने समाज और देश को विकास की ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए ,अंग्रेजी को सीखना और समझना आवश्यक है तो इसमें बुराई क्या है।हिंदी को समर्थन देने का अर्थ यही नहीं हो सकता की हम अंग्रेजी को एक विदेशी भाषा होने के कारण नकार दें।अंग्रेजी की उपेक्षा करना स्वयं अपने साथ अन्याय होगा।वर्तमान दौर में हमारा देश विकासोन्मुख है,हमें विश्व स्तर पर अपनी योग्यता,अपनी कार्यक्षमता एवं गुणवत्ता साबित करनी है,विश्व में हमें विकसित देश के तौर पर अपनी पहचान बनानी है।जब हम अपने देश को विकसित देशो की श्रेणी में खड़ा कर लेंगे,तो अन्य देश वासियों को मजबूर कर सकेंगे की वे हमारी भाषा में हमसे व्यव्हार करें,जब हम अपनी शर्तों पर व्यापार कर सकेंगे। दुनिया हमारे सामने नत मस्तक होगी और हमारी भाषा को सीखने को मजबूर होगी। तब हम वास्तव में अंग्रेजी को नकार सकते हैं।अतः अभी अपने देश को अपने समाज को उन्नत बनाने के लिए अंग्रेजी का तिरस्कार करना आत्मघाती हो सकता है।

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