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इंसानियत की रक्षा के लिए विश्व मानवाधिकार आयोग

jara sochiye
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विश्व मानवाधिकार आयोग गठन के कारण

कहा जाता है-इस विषमता भरे विश्व में यदि कोई पाबन्दी न लगाई जाये तो एक इंसान दूसरे इंसान को इंसानियत के दर्जे से विमुख करने के लिए जानवर का दर्जा देने में जरा भी न चूकेगा। अर्थात मूल रूप से इंसान एक जानवर के समान व्यवहार करने वाला प्राणी है। अतः नियन्त्रण आवश्यक है। अक्सर देखा जाता है, इतिहास गवाह है जिसके पास शारीरिक ताकत है, आर्थिक ताकत है, अथवा ऊँचे पद की महिमा है, अन्य इंसान को जानवर की भांति व्यवहार करने में अथवा उन्हें जानवर स्वरूप मानने से नहीं चूकता। किसी भी देश का इतिहास उठाकर देखा जाये, राजाओं, महाराजाओं, जमींदारों, सरकारी नौकरों द्वारा किये गये अत्याचारों से भरा पड़ा है। धर्म जब चरमोत्कर्ष पर हुआ करते थे, सभी व्यक्ति धर्म का पालन करना अपना उद्देश्य मानते थे, तब भी अत्याचारों, अमानवीय व्यवहारों का कोई अन्त नहीं था। दौलत, ताकत के नशे में मानव अपने को सुपर मानव मानकर चलने लगता था। जब एक व्यक्ति के हाथ में लाखों लोगों का भविष्य होता था अर्थात राजा-महाराजा-जमींदार के मुखार बिन्दू से निकला एक शब्द कानून होता था। भले ही उसके उस आदेश से, उसके कानून से जनता के बहुत बड़े वर्ग को कष्ट में डाल दे, उनके जीवन को दांव पर लगा दे। जनता के कष्ट को समझने की आवश्यकता नहीं समझी जाती थी। कोई विरोध करने का साहस नहीं कर सकता था अन्यथा वह राजा का कोपभाजन का भागीदार होता था।शासित जनता के पास अमानवीय अत्याचारों को सहन करने की मजबूरी होती थी. खुलेआम राजा अथवा तानाशाह शासक अपने देश की जनता के बहुत बड़े वर्ग का कत्लेआम कर सकता था। वह गुनहगार (उसकी निगाह में गुनहगार) के हाथ कटवा सकता था, आँखें फोड़ सकता था ताकि वह तड़प-तड़प कर मर जाये, अपराधी के हाथ में कील ठोंक दी जाती थी। ऐसे अमानवीय कृत्यों के लिए इतिहास भरे पड़े हैं। यह सब तो अपराध की आड़ में होते थे परन्तु अनेक अत्याचार तो सिर्फ राजा अथवा रानी की अपनी इच्छा पूर्ति अपनी खुशी प्राप्त करने के लिए किये जाते थे जैसे रानियाँ अपनी सुन्दरता बरकरार रखने के लिए मानव रक्त में स्नान करती थीं, उसके लिए युवक युवतियों को स्नानागार में गोदकर उनके खून की निकली फुहार से स्नान करती थीं। या फिर इंसान को शेर, बैल आदि से लड़ाई करने के लिए छोड़ दिया जाता था और राजा महाराजा उसकी घबराहट, चीख से आनन्द लेते थे।
इसके अतिरिक्त अनेक प्रकार के अनगिनत अत्याचार इंसान द्वारा इंसान पर किये जाते रहे हैं।गुलाम प्रथा के अन्तर्गत इंसान को अपने गृहकार्य के लिए खरीद लिया जाता था उसे जानवरों की भांति बाँधकर रखा जाता था और खेती बाड़ी, गृहकार्य आदि में अथक परिश्रम कराया जाता था और खाने-पीने के लिए भी सीमित खुराक दी जाती थी और मनमाफिक कार्य न करने पर कोड़े मारे जाते थे, अथवा अन्य अमानवीय सजाएँ दी जाती थीं। महिलाओं पर हर युग में वीभत्स अत्याचार किये गये हैं, उन पर विभिन्न अत्याचारों के लिए आज भी अनेक स्थानों पर सामाजिक स्वीकृति प्राप्त है।
विश्वयुद्ध को विभीषिका हत्याओं का सैलाब, अत्याचारों की बाढ़, युद्ध अपराधियों के साथ दुर्व्यवहार ने विश्व के प्रबुद्ध, संवेदनशील व्यक्तियों को मजबूर कर दिया, एक ऐसी संस्था का निर्माण करने के लिए, जो पूरे विश्व के देशों को अपने दबाव बनाकर रोक सके, अमानवीय कृत्यों से सिर्फ दूसरे देश पर कब्जा करने की मंशा में हजारों निरपराधों को मौत की नींद सुला देना, लाखों लोगों को घायल अवस्था में छोड़कर कष्ट भरे जीवन के लिए मजबूर करना, युद्ध अपराधियों के साथ गुलामों जैसा व्यवहार होना या तीसरे दर्जे की यातनाएँ देने जैसे कार्यों से दुनिया को मुक्त किया जा सके। राजा किसी भी देश अथवा क्षेत्र का स्वयं भू एवं सर्वाधिकार सम्पन्न होता है, अतः एक ऐसी विश्व संस्था का निर्माण आवश्यक था जो किसी भी देश की जनता के साथ होने वाले अत्याचारों, अमानवीय व्यवहारों पर अंकुश लगा सके अर्थात मनमानी करने वाले तानाशाह को विश्व समुदाय के दबाव से नियन्त्रित किया जा सके।
उपरोक्त सभी मानवीय हिंसक कृत्यों के देखते हुए सभ्य एवं संवेदनशील समाज के लोगों ने मानवाधिकार आयोग के गठन की योजना बनायी और द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व मानवाधिकार आयोग का निर्माण हुआ।
विश्व को इंसानियत के अंतर्गत नियन्त्रण करने का आयोग का प्रयास


इंसान प्रकृति से अत्यधिक स्वार्थी और निष्ठुर होता है, यदि उसके क्रियाकलापों पर नियन्त्रण न किया जाये तो वह दूसरे व्यक्ति को असीमित यातनाओं का शिकार बना सकता है। यदि मानव को अनियन्त्रित छोड़ दिया जाये और उसे स्वेच्छाचारी बना दिया जाये तो वह मानव समाज को भी जंगलराज के रूप में परिवर्तित कर देगा, जहाँ प्रत्येक ताकतवर प्राणी अपने से कमजोर प्राणी को खा जाता है या मार डालता है या धमकाता है। धार्मिकता का प्रभाव क्षेत्रीय आधार पर सम्भव हो सकता है परन्तु एक धर्म का अनुयायी दूसरे धर्म को सहन कर सके यह भी सदैव सम्भव नहीं होता। अतः किसी भी देश का तानाशाह अपने धर्म का पालन करवाना चाहेगा और अपने धर्म के विरोधियों को कुचलने का प्रयास करता रहेगा। प्रत्येक समाज में अनेक प्रकार की विकृतियाँ भी पनपती रहती हैं जैसे लिंग भेद, रंगभेद, छुआछूत, हत्या, बलात्कार, बाल शोषण, नारी शोषण इत्यादि जिनसे समाज व्यथित रहता है जिनका लाभ उस देश का शासक अपने हितों के लिए उठाता है। विश्व संस्था मानवाधिकार आयोग प्रत्येक देश के शासकों की क्रूरता, अमानवीयता पर अंकुश तो लगाता ही है उसके राज्य में होने वाली अमानवीय घटनाओं, विपदाओं की जिम्मेदारी भी उस पर डाली जाती हैं। उन्हें प्रेरित किया जाता है; अमानवीय घटनाओं पर नियंत्रण करने के लिए, अपराधी को उचित दण्ड देने के लिए, उसके देश की जनता को प्राकृतिक आपदाओं के समय आवश्यक सहायता प्रदान करने और विश्व समुदाय के सहयोग से मानवता को सुरक्षित करने के लिए। जो शासक उचित मापदण्डों के अन्तर्गत कार्य नहीं करता उसे विश्व समुदाय से विलग करके, विश्व समुदाय की आलोचना का शिकार बनाकर और अंत में आर्थिक नाके बन्दी कर पूरे विश्व से सम्बन्ध काटकर, दण्डित किया जाता है.
मानवाधिकार आयोग के लिए सभी धर्म बराबर हैं,

वह किसी धर्म का पक्षपाती नहीं है और न ही विरोधी। उसका उद्देश्य सम्पूर्ण मानव जाति की सुख-शांति और कल्याण का है। वह अपराधी के प्रति भी पूर्णतया संवेदनशील है और उसके साथ भी मानवीयता का व्यवहार का पक्षपाती है। यही कारण है हत्या आदि के आरोपी को भी फांसी दिये जाने के खिलाफ है। आज अनेक देशों ने फांसी की सजा माफ कर दी है। आयोग के विचार में फांसी की सजा पाने वाले व्यक्ति को यातना का शिकार होना पड़ता है। जेलों में अपराधियों के साथ किये जा रहे व्यवहार पर लगातार निगरानी रखी जाती है। मानवाधिकार आयोग महिलाओं के प्रति भेदभाव, शोषण आदि का घोर विरोधी है। जिसका परिणाम विश्व स्तर देखने को मिल रहा है। महिलाएँ पुरुषों से कन्धे से कन्धे मिलाकर हर क्षेत्र में प्रवेश कर चुकी हैं। मानवाधिकार आयोग दुनिया के प्रत्येक देश में लोकतन्त्र अर्थात प्रजातन्त्र का पक्षपाती है। क्योंकि प्रजातन्त्र में मानवहितों का संरक्षण अधिक सम्भावित है। यही कारण है आज विश्व में सभी गुलाम देश स्वतन्त्र हो चुके हैं और राजा प्रथा, तानाशाह प्रथा धीरे-धीरे विश्व पटल से समाप्त हो रही है। मानवाधिकार आयोग द्वारा व्यक्त मानवीय संवेदनाओं ने इंसान द्वारा जानवरों के प्रति क्रूर व्यवहार का विरोध भी शुरू कर दिया है। अनेक देशों ने जीव संरक्षण नियम बनाये हैं, जो विलुप्त प्रजाति की हत्या पर अंकुश लगाते हैं और किसी जीव पर अत्याचार को नियन्त्रित करता है। हमारा देश भी वन्य जीव संरक्षण का हिमायती है। अनेक नेशनल पार्क बनाकर वन्य जीवों को अनेकों सुविधाएँ दी गई हैं। मुख्य तौर पर मानवाधिकार आयोग का उद्देश्य पूरे विश्व में इंसानियत के धर्म के साथ मानव कल्याण की भावना है। इंसान के सुखी, शांत एवं निर्वाध जीवन की कल्पना है। मानव का विकास बिना मानव सुरक्षा एवं शान्तिपूर्ण जीवन के सम्भव नहीं है। सभी धर्मों का मूल उद्देश्य भी मानव कल्याण है, परन्तु कभी-कभी निरंकुशता आ जाती है और उसकी कल्याण भावना अपने देश या धर्म अनुयायियों तक सीमित हो जाती है।
अतः मानवाधिकार आयोग का इंसानियत का धर्म सभी क्षेत्रवाद, देश, नस्ल, धर्मवाद से ऊपर उठकर पूरे विश्व में मानव मात्र के कल्याण का हिमायती है। मानव कल्याण के प्रति संवेदनशील है। क्योंकि यदि कोई भक्त मन्दिर, मस्जिद, चर्च में सब नियमों के अनुसार पूजा, इबादत अथवा प्रेयर करता है परन्तु देवालय से निकलकर अपने कर्मों से किसी का अहित करता है, किसी को धोखा देता है, हिंसा करता है तो उसका धार्मिक होना मात्र दिखावा है। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए लाभकारी नहीं हो सकते। अतः धर्म का अर्थ सिर्फ पूजा तक सीमित नहीं है, इंसानियत के दायरे में रहकर आचरण धर्म का पहला उद्देश्य है और इसी इंसानियत के धर्म को ही आयोग ने अपने मूलमंत्र के रूप में स्वीकारा है और उसी दिशा में विश्व कल्याण में कार्यरत है।
मानवाधिकार आयोग की हमदर्दी अपराधी के कर्मों के प्रति नहीं है, सिर्फ अपराधी एक मानव है और प्रत्येक मानव को न्याय मिलना चाहिये। यदि किसी चोरी के अपराधी को फांसी की सजा दी जाये अथवा उम्रकैद दी जाये या उसके हथ काट दिये जायें तो मानवाधिकार आयोग अपराधी का पक्ष लेने को तत्पर होगा परन्तु आयोग के अनुसार अपराधी को उसके अपराध की श्रेणी के अनुसार ही उसे सजा मिले, और उसे अपराध से विमुख होने के लिए प्रेरित किया जाये, उसे सुधारा जाये ताकि भविष्य में जीवन की मुख्य धारा में रहकर उत्पादन कार्यों अथवा उपयोगी कार्यों में संलग्न हो सके। जेलों में सजा के अतिरिक्त यातना, शोषण, प्राथमिक आवश्यकताओं के अभाव के प्रति आयोग अपना हस्तक्षेप करता है। आयोग अपराधी को अपराध की सजा से मुक्ति का पक्षधर नहीं है परन्तु उसके साथ अमानवीय व्यवहार के विरूद्ध है। अपराधी को मौत की सजा देना आयोग अमानवीय मानता है। बल्कि घोर अपराधियों को जीवन पर्यन्त जेल में रखा जाये और मानव की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित की जाये, तो उचित मानता है। अपराधी को सजा देना, समाज में भय का संदेश देने के लिए अत्यंत आवश्यक है। सजा का भय ही पूरे समाज पर नियन्त्रण बनाये रख सकता है।
जो देश मानवता के खिलाफ कार्य करते हैं या मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं उनकी आर्थिक नाकेबंदी की जाती है, उनके विरूद्ध विश्व जनमत को खड़ा कर दिया जाता है। जिससे उस देश के शासक पर पर्याप्त दबाव बनाया जा सके। उसके देश की जनता ही उसके विरूद्ध एकजुट होकर खड़ी हो जाती है। जन आक्रोश के सामने बड़े-बड़े तानाशाह भी नहीं टिक पाते।इस प्रकार से विश्व मानवाधिकार आयोग पूरे विश्व में मानवाधिकारों की रक्षा और इंसानियत की रक्षा के लिए प्रयासरत है,और पूरी मानव जाति का कल्याण ही इस संस्था का उद्देश्य है.

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