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वाराणसी में किसकी होगी जीत?—-केजरीवाल या फिर मोदी(जागरण जंक्शन फोरम )

jara sochiye
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भा.ज.पा. ने काफी विचार मंथन के पश्चात् मोदी जी को वाराणसी से लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए अपना प्रत्याशी घोषित किया है.गत दो वर्षों से अस्तित्व में आयी पार्टी आम आदमी पार्टी के मुखिया श्री अरविन्द केजरीवाल ने भी मोदी के विरुद्ध चुनाव लड़ने का मन बना लिया है,यद्यपि अभी औपचारिक रूप से इसकी घोषणा नहीं की गयी है.परन्तु पूरी सम्भावना है की वे मोदी के विरुद्ध वाराणसी से ही चुनाव लड़ने की तय्यारी में हैं.
दिल्ली विधानसभा के चुनावों में मिली अप्रत्याशित सफलता से उत्साहित अरविन्द केजरीवाल बड़े से बड़ा रिस्क लेने को तैयार हो रहे हैं.शायद वे लोकसभा के चुनाव को विधान सभा के चुनावों के समान मानकर चल रहे हैं.जहाँ विधान सभा के चुनावो में जनता की स्थानीय समस्याएं प्रभावित करती है तो लोकसभा के चुनावों में राष्ट्रिय समस्याएं मुख्य चुनावी मुद्दा बन कर उभरती हैं.अभी तक श्री केजरीवाल ने अपनी कोई राष्ट्रिय निति घोषित नहीं की है.जिससे उनकी लोकसभा चुनावो में निश्चित सिद्ध की जा सके.दूसरी बात यह भी की अभी उन्हें प्रदेश की सरकार चलाने का अनुभव भी पर्याप्त नहीं है.अब वे राष्ट्रिय समस्याओं को जनता के अनुरूप देश हित में हल करने में सक्षम होंगे,निश्चित रूप से कुछ भी कहना संभव नहीं होगा.अतः उनका लोकसभा का चुनाव लड़ना वह भी मोदी जैसे प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के विरुद्ध अभी जल्दीबाजी ही प्रतीत होता है.यदि वे दिल्ली में अपने की जनता की आकाँक्षाओं पर खरा उतर कर दिखाते और फिर अगले चुनावों में लोकसभा की ओर अपने कदम बढ़ाते तो अधिक कामयाब होने की सम्भावना बनती.और देश हित में जन कल्याण के अपने कार्यों को करने की आकांक्षा को पूरा कर पाते.
यदि वाराणसी से लड़ने वाले दोनों प्रत्याशियों यानि केजरीवाल और मोदी का व्यक्तिगत स्तर पर मूल्यांकन किया जाय तो चित्र निम्न रूप में उभर कर आता है
नरेंद्र मोदी ;
नरेंद्र मोदी एक अनुभवी एवं सफल राजनेता हैं, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का आशीर्वाद प्राप्त हैं.उनकी प्राशासनिक क्षमता गुजरात का विकास मोडल जनता के समक्ष एक उदहारण के रूप में मौजूद है,वहां पर लगातार तीन बार चुनाव जीत कर सिद्ध कर दिया है की उन्हें गुजरात की जनता का प्यार लगातार मिलता रहा है.विरोधी पार्टियाँ अक्सर २००२ में हुए दंगों के कारण उनकी छवि को साम्प्रदायिक रूप देती रहती हैं परन्तु यह भी कटु सत्य है २००२ के बाद एक बार भी गुजरात में कोई दंगा नहीं हुआ और वहां का मुसलमान अन्य राज्यों के मुकाबले अपने को अधिक सुरक्षित अनुभव करता है, और समृद्ध शाली है.क्योंकि वहां भेदभाव रहित प्रशासनिक व्यवस्था है. गुजरात की विकास दर देश के सभी राज्यों से अधिक होना एक बड़ी उपलब्धि है जिसका श्रेय मोदी जी को ही जाता है.क्योंकि उनके कार्यकाल में होने वाला तीव्र आद्योगिक विकास उनकी दूरदर्शिता ,कर्मठता और मेहनत का परिणाम है. जो उनके द्वारा प्रदेश में कारखानों और मिलों को लाने में स्वयं को सेल्समैन की भांति प्रस्तुत करने के कारण संभव हो पाया है.क्योंकि जहाँ कारखानों ,मिलों का विकास होना है क्षेत्रीय जनता की खुशहाली भी होती है. गुजरात में उनके मुख्यमंत्री के रहते देखा जा सकता है की उनमे निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता है.उनके भाषणों से जग जाहिर है देश के विकास के लिए जो दूर दृष्टि उनके पास है वह किसी अन्य नेता के पास नहीं है.यही वजह है की उनकी लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है.वाराणसी का इतिहास बताता है की यह लोकसभा क्षेत्र भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रहा है, और पूरे देश में जिस प्रकार से मोदी जी के पक्ष में लहर बनी हुई है, मोदी जी को वहां से चुनाव जीतने की शत प्रतिशत सम्भावना बनती है.
अरविन्द केजरीवाल
केजरीवाल मात्र दो वर्ष पूर्व अस्तित्व में आयी पार्टी यानि आम आदमी पार्टी के मुखिया हैं.और उनका राजनीति में आगमन अन्ना द्वारा किये गए भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन एवं अनशन के कारण हुआ.और पहली बार दिल्ली विधान सभा के चुनावों में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी और अप्रत्याशित विजय पाई और विषम हालातों में भी सरकार बनाकर जनता को अपनी प्रशासनिक क्षमता का आभास कराया और यह भी दिखा दिया की वे सत्ता के भूखे नहीं हैं,उन्होंने धनार्जन के लिए राजनीती में पदार्पण नहीं किया है.बल्कि जनता की समस्याओं के प्रति संवेदनशील हैं,और जनता सेवा एवं जनकल्याण ही उनका उद्देश्य है.
यह बात बिलकुल सत्य है की लगातार तीन बार से दिल्ली की सत्ता पर काबिज मुख्य मंत्री को हरा देना कम आश्चर्य जनक नहीं है.परन्तु यह इस कारण संभव हो पाया की दिल्ली की जनता ने कुछ समय पूर्व ही अन्ना जी का भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन को देखा था और यह भी देखा था किस प्रकार कांग्रेस सरकार के घमंड में चूर मंत्रियों ने उनके साथ व्यव्हार किया उन्हें लगातार धोखा दिया.दिल्ली की जनता ने ही अन्ना के आन्दोलन को सर्वाधिक समर्थन दिया था.और जनता का रोष कांग्रेस के विरुद्ध अपने वोट के रूप में निकल कर सामने आया.परन्तु लोकसभा चुनावो में इसी प्रकार जन समर्थन जारी रहेगा कहना मुश्किल है.
निष्कर्ष यही निकलता है की यदि अरविन्द केजरीवाल वाराणसी से चुनाव लड़ने का फैसला लेते है तो यह उनके लिए, उनकी वर्तमान छवि के लिए,और देश के भविष्य के लिए उचित नहीं होगा.क्योंकि जनता को उनसे बहुत सारी आशाएं है.अतः उनके लिए प्रत्येक कदम को बहुत सोच समझा कर उठाना चाहिए,जल्दी बाजी,या भावावेश में उठाया कदम उनके लिए,और उनकी पार्टी के लिए घातक हो सकता है,और देश के भविष्य के लिए भी उचित नहीं होगा.

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