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व्यापारी आज भी गुलाम?

jara sochiye
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व्यापारी आज भी आजादी के पूर्व की भांति ही गुलाम है.उसकी जिम्मेदारी सिर्फ सरकारी खजाने को भरने की है बदले में उसे जलालत अपमान और तनावग्रस्त जिन्दगी ही नसीब होती है.उसके भविष्य को लेकर कोई भी चिंतित नहीं होता जैसे वह कोई कीड़ा मकोड़ा हो, जो इसलिए पैदा हुआ है की वह महनत कर सबके पेट भरे और उनकी निरंतर सेवा करता रहे और जब वह विपत्ति में हो तो सबके द्वारा उसे उपेक्षित कर दिया जाय. किसी को उसके लिए सहानुभूति नहीं होती उसके लिए कोई फिक्रमंद नहीं होता.सरकार में बैठे नेता यदि अपने स्वार्थ के अतिरिक्त सोचते है, तो सिर्फ सरकारी कर्मचारियों के लिए, उसका भी मुख्य कारण है सरकारी कर्मचारियों के संगठन मजबूत हैं, प्रभावकारी हैं, उनके संगठन के पदाधिकारी योग्य एवं विद्वान् हैं. अतः वे अपने हितों को उचित तरीके से साध सकते हैं.
दूसरा मुख्य कारण है नेताओं में व्याप्त भ्रष्टाचार,क्योंकि भ्रष्टाचार के लिए नौकर शाही का सहयोग आवश्यक होता है अतः उन्हें(सरकारी कर्मियों को) खुश रखे बिना उनकी स्वार्थपूर्ति असंभव है.परन्तु व्यापारी तो सरकार की तिजोरी के साथ साथ नेताओं की तिजोरियां भी भरता है,क्योंकि सत्ताधारी नेताओं को खुश करे बिना उसका अस्तित्व खतरे में पड़ने की पूरी सम्भावना होती है,और उनके बिना सहयोग के उन्नति के बारे में सोचना तो निरर्थक ही है. क्योंकि हर स्तर पर संस्तुति के लिए मंत्रियों के आशीर्वाद की आवश्यकता होती है. वह सिर्फ उन्हें खुश करके ही मिल सकता है.अब घोडा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या? यदि व्यापारी के भविष्य को सुरक्षित कर दिया जायेगा तो वह नेताओं के स्वार्थ की पूर्ती कैसे करेगा क्यों करेगा? व्यापारिक संगठन के नेता भी अपना स्वार्थ सिद्ध करना जानते हैं और करते हैं,वे अपने नेता पद का लाभ उठाते हुए अपनी उन्नति के द्वार खोलकर अपनी सात पुश्तें सुरक्षित कर लेते हैं,क्योंकि पदाधिकारी होने के कारण उनके अपने सारे व्यापारिक कार्य फ्री में या फिर बहुत कम खर्च में हो जाते हैं,उन्हें आम व्यापारी की पीड़ा की क्यों चिंता हो? आम व्यापारी जिसे छोटा व्यापारी भी कहा जा सकता है, अपने कार्य में इतना व्यस्त होता है,की उसे इन सब बातों को सोचने के लिए समय नहीं होता.वह अपेक्षाकृत शिक्षित भी कम होता है. जब कभी उसे किसी दुर्घटना का शिकार होना पड़ता है(चोरी,डकैती,आगजनी,अपहरण,या व्यापारिक विशाल घाटा)तब उसको स्वयं ही वहन करना पड़ता है, साथ के व्यापारी सिर्फ सहानुभूति व्यक्त कर, विधि का विधान मान कर,उसे हालातों से समझौता कर फिर से उठ खड़े होने को प्रेरित करते हैं और पीड़ित व्यापारी परिस्थितियों के समक्ष नत मस्तक हो जाता है, और कष्टकारी जीवन जीने को मजबूर होता है और दोबारा से अपने परिवार की जीविका चलाने के उपाय करता है
व्यापारी की शोचनीय स्थिति पर निम्न लिखित ज्वलंत प्रश्न आज भी मुहं बाय खड़े हैं?;- .
 क्या व्यापारी सिर्फ सरकारी खाजने को भरने के लिए व्यापार करता है.यही उसका दायित्व,कर्तव्य है.
 क्या व्यापारी नौकरशाही और नेताओं की जेबें भरने के लिए ही दिन रात मेंहनत करता है और दुनिया भर के खतरों का सामना करता है.उसका अपना कोई अस्तित्व ही नहीं है वह सिर्फ मजदूर है.जीवन भर जीविका अर्जन ही उसका मुख्य उद्देश्य है.हाँ यदि वह नेतागिरी करे तो उसकी बल्ले बल्ले.
 क्या व्यापारी आजादी के सरसठ वर्ष बाद भी गुलाम नहीं है.उससे राजस्व की बसूली अमीनों द्वारा होती है,यदि उनकी पेट पूजा न की जाय तो वे उनके (व्यापारी के) शोषण की सारी हदें पार कर देते है, उनके लिए व्यापारी एक बकरे के समान है जिसे तो कटना ही होगा.बड़े से बड़े व्यापारी का भी जरा सी देर में चतुर्थ श्रेणी का सरकारी कर्मचारी(राजस्व वसूली करने वाला) अपमान कर देता है, चाहे व्यापारी ने बकाया राजस्व पहले से जमा कर दिया हो, परन्तु उसे सिद्ध करने के लिए कुछ समय की आवश्यकता हो.या उसे लगता है की उससे वसूल नाजायज हो रही है,परन्तु अमीन तो कमीन बन जाता है आखिर सरकारी कारिन्दा जो ठहरा.उसे किसी भी सम्मानित व्यापारी का अपमान करने की पूरी छूट है.
 यदि व्यापारी सरकारी नियमों के अनुसार टेक्स जमा नहीं करता या कम करता है तो सरकार की निगाह में, कानून की निगाह में वह चोर हो जाता है. परन्तु यदि वह इमानदारी से पूरा टेक्स जमा करता है तो उसे नौकरशाही अपमानित करती है उसका कोई भी काम आसानी से नहीं होता.अतः व्यापारी हर समय दुविधाग्रस्त रहता है.
 किसी भी व्यापार को शुरू करने ,किसी उद्योग को लगाने से पूर्व विभिन्न सरकारी विभागों से अनुमति प्राप्त करनी होती है,अपने कारोबार के दौरान भी उसे उसके कारोबार की प्रकृति के अनुसार अनेक सरकारी विभागों जैसे सेल्स टेक्स,कस्टम ड्यूटी,एक्सायिस ड्यूटी, सेनेटरी, सप्लाई विभाग,श्रम विभाग,पुलिस, अग्नि शमन, आय कर विभाग, मनोरंजन विभाग इत्यादि के नियमों का पालन करना होता है.जिनके नियमों का पूर्णतया पालन कर पाना व्याहारिक नहीं होता,यदि सारे सरकारी कानूनों और नियमों का पालन करे तो उसे व्यापार करने का समय भी शायद ही मिले,वह तो विभिन्न विभागों के नियमों की खाना पूर्ती के लिए अनेक प्रकार के रजिस्टर पूरे करने में ही व्यस्त रह जायेगा.अतः क्लिष्ट नियमावली बना कर व्यापारी को मजबूर किया जाता है की वह नौकर शाही के आक्रोश से बचने के लिए भ्रष्टाचार की दल दल में फंसे.
 सरकारी विभागों का पक्षपात देखिये हर स्तर पर व्यापरियों से वसूली आम व्यक्ति से अधिक की जाती है जैसे बिजली विभाग घरों के लिए और व्यापारिक प्रतिष्ठान के लिए दरें अलग अलग रखता है,व्यापरियों से अधिक कीमत वसूली जाती है,जल कर,भवन कर इत्यादि भी व्यापारिक प्रतिष्ठानों से अधिक वसूला जाता है.यहाँ तक की खाना पकाने वाली गैस की कीमत भी अधिक ली जाती है.आखिर ऐसा अन्याय क्यों? क्या व्यापरिक प्रतिष्ठान में बिजली कुछ विशेष गुणवत्ता लिए होती है,पानी अधिक म्रदुल होता है या गैस अधिक गर्मी पैदा करने वाली होती है,भावार्थ यह है की हर स्तर पर व्यापारी से लूट मार की जाती है,उसके लाभ कमाने में सब भागीदार हैं परन्तु उसकी विपत्ति के समय कोई विभाग उसके साथ उदार नहीं होता.
व्यापारी को स्वयं उपरोक्त मुद्दों पर विचार करना होगा और संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए आगे आना होगा. आखिर वे भी स्वतन्त्र देश के नागरिक हैं,सरकार को राजस्व बढाने में अपना योगदान करते हैं,अपने परिiवार और समाज की सेवा करते हैं.उन्हें भी सुरक्षित जीवन जीने का पूरा पूरा अधिकार है. (SA-147C)

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