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आज के भौतिकवादी युग में धन ही सर्वोपरि हो गया है.धन की और धनी व्यक्ति की ही पूजा होती है. बड़े बड़े विद्वान् व्यक्ति एक अनपढ़, दुष्ट, अन्यायी पूँजी पति के समक्ष नतमस्तक होने को मजबूर हैं. उनको अनेक बार अपमानित भी होना पड़ता है. जबकि अन्यायी और दुराचारी पूँजीपति को भी सम्मान प्राप्त होता है. हम यह भी भूल जाते हैं की धनवान व्यक्ति जिसको हम सम्मान दे रहे हैं, उसको महिमा मंडित कर रहे हैं,वास्तव में उसने धन वैधानिक और नैतिक नियमों को अपनाते हुए एकत्र किया है अथवा अन्याय,शोषण,बेईमानी ,धोखा धडी से धन कमाया है. क्या ऊंचे पद पर विराजमान होने मात्र से व्यक्ति सम्माननीय हो जाता है? क्या एक भ्रष्टाचारी उच्च सरकारी पद पर आसीन व्यक्ति सम्मान का पात्र हो सकता है? क्या एक महनतकश इन्सान जो कठोर परिश्रम कर, इमानदारी से अपने परिवार का पालन पोषण करता है,इसलिए असम्मान्नीय है क्योंकि वह एक मेहनतकश इन्सान है? क्या उसको हेय द्रष्टि से देखा जाना चाहिए क्योंकि वह ईमानदारी और महनत से अपनी जीविका कमाता है,परन्तु सामाजिक द्रष्टि से छोटे स्तर का कार्य करता है? क्या छोटे कार्य करने से कोई व्यक्ति असम्मानीय हो जाता है?
• अपमान का हक़दार वह है जिसने चोरी बेईमानी धोखाधड़ी या भ्रष्टाचार के सहारे धन कमाया है और धनवान बन गया है.बड़े सरकारी पद पर आसीन है(नेता हो या नौकरशाह) परन्तु अपने अवैध कार्यों से टेक्स से प्राप्त जनता की गाढ़ी कमाई को चूना लगाता है.
• अपमान का हक़दार वह है जो महनत न कर चोरी डकैती धोखाधड़ी के माध्यम से अपनी जीविका चलाता है. इंसानियत के विरुद्ध जाकर हिंसा और अपराध के सहारे समाज में अशांति और अन्याय फैलाता है.
• अपमान का हक़दार वह है जो किसी की जायदाद गलत हथकंडों से हड़प कर धनवान बन जाता है.
• अपमान का हक़दार वह है जो अपने दैनिक जीवन में अन्याय, अत्याचार, दुराचार,धोखाधड़ी,बेईमानी के बल पर धन अर्जन की सीढ़ी अपनाता है
सम्मान का वास्तविक हक़दार वह है जो इमानदारी, महनत, न्याय, वैधानिक तरीकों से अपनी जीविका चलाता है और धनवान बनता है. सम्मान का हक़दार वही है जो इंसानियत के सिद्धांतों को अपनाकर अपने व्यवसाय को आगे बढाता है.
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