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इतिहास गवाह है हमारा देश करीब आठ सौ वर्ष तक विदेशियों का गुलाम रहा है.जब देश पर मुगलों ने शासन किया तो इस्लाम धर्म को फ़ैलाने के प्रयास हुए और जब अंग्रजों ने देश को अपने अधिपत्य में ले लिया, तो ईसाई धर्म को फलने फूलने के पर्याप्त अवसर मिले.हमारे देश में सदियों से चली आ रही जातिवाद प्रथा जिसके अंतर्गत शूद्रों को पद-दलित कह कर उनका शोषण होता रहा. उन्हें सदियों तक समाज से अलग थलग रखा गया और उन्हें छुआ छूत का शिकार बनाया गया,उन्हें शिक्षा ग्रहण करने से वंचित कर दिया गया,उनके लिए रोजगार भी सीमित कर दिए गए,उन्हें सिर्फ निम्न श्रेणी के कारोबार करने की इजाजत दी गयी,जो मानवता के विरुद्ध परम्परा थी. अतः धर्मान्तरण द्वारा समाज के शोषित वर्ग को सम्मान से जीने का अवसर मिल रहा था और इस्लाम धर्म और ईसाईयों को अपने धर्म को फ़ैलाने का मौका. विदेशी ताकतें तो हमेशा से ही हमारी सांस्कृतिक संरचना को छिन्न भिन्न कर देना चाहती थीं. और उन्होंने हमारे समाज में व्याप्त विषमताओं का भरपूर लाभ उठाया. अतः उन दिनों अधिकतर धर्म परिवर्तन करने वाले समाज के गरीब और शोषित जातियों से ही थे. कुछ अन्य लोगों को भी बहला कर फुसला कर या शासन का दबाव बनाकर भी धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर किया गया.
कहा जाता है आज हमारे देश में विद्यमान अधिकतर मुसलमान ऐसे ही हैं जिनके पुरखों ने धर्म परिवर्तन कर लिया था, अर्थात वे आज भी हिन्दू मूल के व्यक्ति ही हैं,जिनकी विचार धारा हिन्दू ही है. अतः यदि उन्हें घर वापसी का मौका दिया जाता है और वे अपने पुरखों द्वारा मजबूरी में उठाए गए कदम को सुधारना चाहते हैं.यानि अपने वास्तविक घर अर्थात हिन्दू धर्म को स्वीकार करना चाहते हैं, तो इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है.कुछ समय पूर्व तक तो हिन्दू धर्म किसी अन्य धर्मावलम्बी को अपने धर्म में प्रवेश करने की इजाजत भी नहीं देता था अर्थात धर्म परिवर्तन अवांछनीय था.परन्तु अब हिन्दू धर्म भी सबको अवसर प्रदान कर रहा है की कोई भी धर्म का अनुयायी हिन्दू धर्म को स्वीकार कर सकता है.उनका यही बदला हुआ आचरण मुस्लिम और ईसाई धर्म को रास नहीं आ रहा,उन्हें हिदुओं का यह व्यवहार साम्प्रदायिक लग रहा है.जब वे सदियों से यही कार्य करते आ रहे थे तो वह साम्प्रदायिक नहीं था
कुछ दिनों पूर्व आगरा में आयोजित घर वापसी अर्थात धर्मान्तरण का मुद्दा देश भर के समाचार पत्रों और मीडिया की सुर्ख़ियों में छाया हुआ है, जिसमें ५७ मुस्लिम परिवारों को हिन्दू धर्म अपनाने को प्रेरित किया गया था. इस विवादित मुद्दे का लाभ उठाते हुए देश की गैर सत्ता धारी(विपक्षी) पार्टियों को वर्तमान सरकार पर आरोप जड़ने और उसे बदनाम करने का अवसर मिल गया. वे इस मुद्दे का राजनैतिक लाभ उठाना चाहती हैं.इसीलिए गत शरद कालीन संसदीय सत्र के कामकाज को भी नहीं चलने दिया,और वांछित कार्य अधूरे छोड़ कर संसद सत्र का अवसान करना पड़ा, और अनेक महत्वपूर्ण बिल पास होने से रह गए.
हमारे देश के संविधान द्वारा घोषित धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की धारणा के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को अपनी आस्था और पूजा पद्धति को चुनने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है. उसे किसी प्रलोभन या दबाव से किसी भी धर्म या आस्था को मानने को मजबूर नहीं किया जा सकता.अर्थात उसे पूर्णतयः धार्मिक स्वतंत्रता है की वह किसी भी धर्म को अपनाये या किसी भी धर्म को न माने. मात्र जन्म के आधार पर भी किसी को धर्म मानने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.परन्तु फिर भी ईसाई और मुस्लिन धर्म लगतार प्रलोभन और कभी जोर जबरदस्ती धर्मान्तरण के मिशन चलाये हुए हैं. मुस्लिम धर्म में आज भी मान्यता है यदि कोई युवती किसी मुस्लिम युवक से निकाह करना चाहती है तो उसे मुस्लिम धर्म अपनाना पड़ेगा.यह बाध्यता कहीं न कहीं धर्मांतरण का वीभत्स रूप है और किसी के व्यक्तिगत विचारों पर कुठाराघात है.सन २००० में सुप्रीम कोर्ट ने पांच युवतियों द्वारा दायर की गयी,विवाह के लिए धर्म परिवर्तन की याचिका को ख़ारिज कर दिया था और इस प्रकार से धर्म परिवर्तन को कानून के विरुद्ध माना गया.
धर्म जागरण समिति के मुखिया राजेश्वर सिंह ने अपना संकल्प व्यक्त किया है की २०२१ तक देश में सभी हिन्दू बन जायेंगे.उनका संकल्प एक हिन्दू धर्म के प्रति कट्टर वादी सोच को व्यक्त करता है जो एक खतरनाक विचार है और संविधान के विरुद्ध भी.जिसमें देश को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया है.दूसरी ओर हिन्दू धर्म की मूल भावनाओं के विरुद्ध भी है जिसमें सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता प्रमुख है.हिन्दू धर्म की उदारता पूरे विश्व में विख्यात है. विश्व हिन्दू परिषद् के प्रमुख नेता श्री अशोक सिंघल का कथन है की हम दिल जीतने निकले हैं न की किसी पर कोई दबाव बनाने का कोई इरादा है.वहीँ आर.एस.एस.के मुखिया मोहन भागवत कहते हैं की हम लोगों को घर वापसी के आमंत्रण दे रहे हैं.परन्तु कुछ अन्य हिन्दू वादी संगठनों के बयान हिन्दू कट्टरवाद का प्रदर्शन करते नजर आते हैं जो मोदी सरकार और देश की साम्प्रदायिक छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
तथाकथित धर्मान्तरण पर रोक लगाने का प्रस्ताव भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आघात करता है यह सर्वथा बेबुनियाद और अनुचित है.धर्मान्तरण पर रोक एक प्रकार से उसे जन्म के आधार पर उसे धर्म को मानने को मजबूर करना है.कोई भी व्यक्ति किसी धर्म की संपत्ति,या गुलाम नहीं हो सकता.जन्म से पूर्व उससे नहीं पूछा जाता की उसे किस धर्म में जन्म लेना है अथवा उसकी किस्में आस्था है.अतः जन्म के आधार पर उसके विचारों और आस्था पर अंकुश लगाना तर्कसंगत नहीं हो सकता.
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