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(यह लेख एक तरफ तो अभिभावकों और माता पिता को अपने बच्चों के प्रति उनके कर्तव्यों का बोध कराता है दूसरी तरफ सफल हुए बच्चों को उनकी सफलता के पीछे उनके माता पिता के योगदान का अहसास कराता है )
चाहे संतान कुछ भी सोचे यदि कोई व्यक्ति सफल है, तो अवश्य ही उसके माता पिता या उसके अभिभावकों की बहुत बड़ी भूमिका रही होती है।उसके पालन पोषण में उनकी आर्थिक स्थिति के साथ साथ उनके निवास के आस पास का वातावरण बहुत अधिक प्रभाव डालता है।साथ ही माता पिता (या अभिभावक)की समझ ,उनके दिशा निर्देशन की सक्षमता के साथ ही उनका अपना चरित्र और अनुभव भी बच्चे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
बिना सहज वातावरण,आवश्यक न्यूनतम आर्थिक सहयोग,उचित दिशा निर्देश के किसी भी बच्चे की सफलता संभव नहीं है,जिसमे उसका शारीरिक विकास और मानसिक विकास महत्वपूर्ण होता है .बिना शारीरिक विकास के मानसिक विकास का कोई महत्त्व नहीं रह जाता।अनेक अवसर ऐसे भी आते हैं जब परिवार आर्थिक संकट से घिर जाता है उस समय परिवार के बच्चे ही उसे अपने सहयोग (श्रम )से सम्भालने का दायित्व उठाते हैं,जिससे कभी कभी उनकी अपनी पढाई भी प्रभावित हो जाती है शायद वे मेधावी होते हुए भी अपने लक्ष्य में बहुत पीछे रह जाते है।
यदि बच्चे का शारीरिक विकास सही नहीं हो पाता तो जीवन में कुछ भी संभव नहीं है, उसके लिए सामान्य जीवन जीना ही कष्टकारक हो जाता है।बच्चे के शारीरिक विकास के लिए माता पिता या अभिभावक का योगदान ही काम करता है,यदि कोई बच्चा स्वस्थ्य नहीं है ,बलिष्ठ नहीं है तो उसकी सफलता हमेशा संदिग्ध रहती है।यहाँ तक की बिना शरीरिक शौष्ठव के व्यक्ति के लिए मजदूरी (न्यूनतम आर्थिक स्रोत) करना भी संभव नहीं होता,किसी सम्मान्निये स्थिति तक पहुंचना तो बहुत दूर की कौड़ी है।अतः माता पिता का प्राथमिक कर्तव्य है की बच्चे के स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए यथा संभव प्रयास करें और बचपन से ही उसके स्वास्थ्य को बनाने के प्रयास करते रहें, ताकि वह पूरे जीवन स्वस्थ्य रह सके।
इसी प्रकार यदि अभिभावक नहीं चाहते की उनका बच्चा पढ़ लिख कर कामयाब हो तो उनके सहयोग के अभाव में सफलता की डगर बहुत मुश्किल हो जाती है और सफलता संदिग्ध रहती है।परन्तु यदि माता पिता बच्चे को सफल बनाने के लिए उसकी आवश्यकताओं को समझते हुए परिश्रम करते हैं, अपना शरिरिक और आर्थिक सहयोग देते है,तो बच्चे की सफलता की राह आसान हो जाती है।
यदि कोई बच्चा ऐसे वातावरण में निवास करता है जहाँ के लोग पढाई कर जीवन की सफलताओं को पाने के लिए संजीदा नहीं हैं,या फिर चरित्रवान नहीं हैं ,यही भी कह सकते है चरित्र हीन हैं (शराबी हैं,जुआरी हैं,अपराधी हैं इत्यादि )तो बच्चे को अपने लक्ष्य पाने में,जीवन में कुछ कर गुजरने में अनेकों व्यवधान झेलने पड़ सकते है अथवा वह अपने लक्ष्य से भटक सकता है।जो उसके लिए जीवन भर अभिशाप सिद्ध होता है।कभी कभी तो वह सिर्फ कुँए का मेंडक बन कर रह जाता है।उसे पता भी नहीं होता की दुनिया में क्या क्या चल रहा है।वह अपने सीमित दाएरे में ही जीवन व्यतीत कर देता है।शायद अभिभावक भी नहीं समझते की कैसे वे अपने बच्चे को जीवन की ऊंचाईयों तक पहुँचाने में अपना योगदान दे सकते हैं।उसके भावी जीवन को भव्य बना सकते हैं।
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