हमारे देश में ब्रिटिश शासन की मानसिकता आज भी विद्यमान है. यही कारण है, सरकारी विभाग के अधिकारी आज भी स्वयं को शासक आम जनता को शासित समझते हैं,उनकी इस मानसिकता का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है व्यापारी वर्ग पर. उसका शोषण आज भी अंग्रेजो के समय के अनुसार होता रहता है,यद्यपि आज का व्यापारी बहुत जागरूक हो चुका है,वह पहले से अधिक शिक्षित है, वह कानूनों की जानकारी भी रखता है. वह आज अनेक व्यापारिक संगठन बनाकर सरकारी कर्मियों के दुर्व्यवहार का जबाव दे पाने में सक्षम हो चुका है.परन्तु सरकारी कर्मी की मानसिकता में आज भी कोई विशेष अंतर नहीं दिखाई देता. वह आज भी व्यापारी की अपमानित करने का कोई भी मौका नहीं चूकता. वह रिश्वत लेकर आम आदमी को कानूनों को तोड़ने की पूरी आजादी दिला देता है,. परन्तु जब कोई कानूनी कार्यवाही का मौका आता है तो उसे ही फंसा दिया जाता है. उसे बेईमान या अपराधी बता कर बदनाम किया जाता है और जुर्माना भरने को मजबूर किया जाता है.सरकारी विभाग के अधिकारीयों इस व्यव्हार से सर्वाधिक व्यापारी ही प्रभावित होता है. यदि कोई व्यापारी सही प्रकार से कानूनों का पालन करता है तो उसे अनेक कानूनी दांव पेचों में फंसा कर परेशान करने का प्रयास किया जाता है.क्योंकि उसके सही राह पर चलने से अधिकारीयों की जेब खाली रह जाती है. अतः व्यापारी का शोषण हर प्रकार से किया जाता है.सही कार्य करने और सही टेक्स भुगतान करने की सजा विभाग के अधिकारी देते हैं तो गलत कार्य की सजा कानून देता है. सरकारी खजाने में धन संग्रह का अधिकतम स्रोत व्यापारी वर्ग ही होता है.आज भी सरकारी कर्मी या अधिकारी इस बात को हजम नहीं कर पा रहा है, की अब देश पर जनता का शासन है और वे जनता के नौकर हैं, जनता के सेवक हैं.यदि वे जनभावनाओं के विपरीत चलेंगे तो आज नहीं तो कल जनता सजा अवश्य देगी. सरकार के नियम भी व्यापारी से टैक्स की उगाही के लिए तो बनाये गए हैं, उसके या उसके परिवार के कल्याण के लिए न कभी सोचा गया और न ही कोई कानून या नियम बनाया गया.अभी तक की सभी सरकारों द्वारा सारे नियम कायदे कानून सिर्फ सरकारी कर्मियों के हितों को सोच कर बनाये जाते रहे हैं. सरकार या नेताओं की निगाह में उनकी जिम्मेदारी नौकरशाहों तक ही सीमित है.क्या व्यापारी,उद्योगपति या व्यवसायी भी इस देश के नागरिक नहीं हैं? क्या वे भी देश की सरकार से आर्थिक सुरक्षा पाकर अपने भविष्य को सुरक्षित करने के हक़दार नहीं है? व्यापारी और उद्योगपति तो बिना सरकार से कुछ महन्ताना प्राप्त किये उसकी सेवा करता है, जनता से टैक्स एकत्र कर राजकोष में जमा करता है. वह अपनी जीविका चलने के लिए वह जीवन का सर्वाधिक समय खर्च करता है और राजकोष बढ़ाने में योगदान करता है, जिससे देश के सारे विकास कार्य संभव होते है और सरकार के सारे प्रशासनिक खर्चे पूरे होते हैं.यदि यह भी कहा जाय की सरकारी कर्मी का वेतन भी निजी कारोबारी द्वारा जमा किये गए धन से ही आता है तो गलत न होगा. फिर अपने कारोबार करने वाले के साथ इतना अन्याय क्यों.व्यापारी और उद्योगपति अथवा अपना निजी कारोबार करने वाला कोई भी व्यवसायी जीवन भर अनेक प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ता है.कभी उसकी दुकान या प्रतिष्ठान में आग लग जाती है तो कभी उसे चोरी डकैती का दंश भुगतना पड़ता है,कारोबार का उतार चढाव तो उसकी नियति है. कभी कभी तो मंदे की मार,कर्जे में पूजी का विनाश,गुंडा गर्दी या अपराधी के चंगुल में आ जाने पर या अन्य किसी प्रकार से इतना घाटा उठाना पड़ता है की वह सड़क पर आ जाता है उसे घर की साधारण आवश्यकताओं को पूर्ण करना भी संभव नहीं होता. क्या इस लोकतान्त्रिक देश में व्यापारियों के कल्याण एवं आर्थिक सुरक्षा के लिए सरकार को कोई नियम या कानून नहीं बनाना चाहिए. किसी भी व्यापारी या कारोबार को अपने कारोबार को प्रारंभ करने पर या उसे जारी रखने के लिए अनेक सरकारी विभागों इजाजत लेनी होती है और सरकार द्वारा बनाये गए नियमों का पालन करना पड़ता है. अनेक सरकारी कानून इतने उलझन भरे,अप्रासंगिक,अव्यवहारिक होते हैं जिन्हें निभाना एक कारोबारी के लिए लगभग असंभव होता है,यदि वह सभी सरकारी नियमों का अक्षरशः पालन करे तो वह अपना कारोबार ही नहीं कर पायेगा, उसके पास कारोबार करने के लिए समय ही नहीं बचेगा.और न ही वह कोई कमाई कर पायेगा अतः उसे मजबूर होना पड़ता है की वह सरकारी कर्मियों की जेबे भरे और अपने व्यापार को सुचारू रूप से चला पाए. जो यह सिद्ध करता है की हमारे देश में कानूनों का जंगल खड़ा किया हुआ है, वह भी अधिकांश ब्रिटिश शासन के कानूनो से प्रेरित हैं. अतः यदि सभी कानूनों को तर्कसंगत आसान और प्रासंगिक बना दिया जाय तो भ्रष्टाचार की रीढ़ को तोडा जा सकता है और व्यापारी वर्ग को रहत मिल सकती है.निजी कारोबारी के हितों और भावी आर्थिक सुरक्षा का ध्यान रखते हुए,उनके लिए पेंशन इत्यादि के कानून बनाये जाए,सरकारी कर्मियों को व्यापारी समेत आम आदमी का सम्मान करना सिखाया जाय और उसे अहसास कराया जाय की वे मूलतः जनता के प्रति जबाबदेह हैं न की अधिकारियों के,या राजनेताओं के.
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