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अदृश्य शक्ति (ईश्वर) पर विश्वास के कारण

jara sochiye
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विज्ञान के अपने  विकास शिखर पर पहुंचने के बावजूद आज भी अनेकों रहस्य अनसुलझे रह गये हैं और उन रहस्यों से पर्दा उठने की सम्भावना भी नहीं लगती। जो आज के वैज्ञानिक युग में भी मानव को अदृश्य शक्ति पर विश्वास करने को मजबूर कर रही हैं। वर्तमान वैज्ञानिक युग में जबकि विज्ञान ने प्रकृति के हर क्षेत्र में हस्तक्षेप कर अनेक अविष्कार किये हैं, अनेकों प्राकृतिक नियम प्रतिपादित किये हैं, फिर भी आज इन्सान किसी अदृश्य शक्ति अथवा ईश्वर पर विश्वास करने को मजबूर क्यों  है?

अनेकों प्रश्नों के उत्तर आज भी मानव को नहीं मिल पाये हैं, जिनका विज्ञान के पास आज भी कोई हल नहीं है जैसे;-

अनेकों जीव एवं वनस्पतियों की उत्पत्ति एवं विकास, आज भी यक्ष प्रश्न बना हुआ है। कैसे एक बीज मिट्टी, पानी, वायु एवं सूर्यकिरणों के सहयोग से पहले पौधे और बाद में पेड़ के रूप में स्वयं ही विकसित हो जाता है। कैसे विकास प्रक्रिया के तहत पहले पौधे में कली फिर फूल और तत्पश्चात फल आता है। क्यों एक आम का बीज, आम के पेड़ के रूप में ही  विकसित होता है, सन्तरा या अन्य कोई नहीं? क्यों तोरई, खीरा, करेला का पौधा बेल के रूप में पनपता है, पेड़ के रूप में नहीं उगते। जबकि आम का पौधा बेल का रूप न लेकर पेड़ बनता है। क्यों तरबूज, खरबूजे भी आम या पपीते की भांति पेड़ पर नहीं लगते। इसी प्रकार विभिन्न जीवों का विकास है जो नर एवं मादा के सहयोग से वही जाति का जीव पैदा होता है, वही नस्ल वही जातीय गुण उसमें विकसित होते हैं। जन्म के समय बहुत छोटे शिशु होते हैं और फिर अपने माता-पिता के बराबर विकसित होकर पूर्ण जीव का रूप ले लेते हैं और विकास रूक जाता है. फिर अगली पीढ़ी तैयार करने लगते हैं। एक ही जलवायु में पैदा होने वाले पौधे अपने बीज प्रजाति के गुण के अनुसार जमीन से भिन्न विटामिन, मिनरल ग्रहण कर फल फूल तैयार होते हैं। जैसे अंगूर में आयरन, केले में कैल्शियम, गाजर में कौपर और आयरन, सेब में पौटेशियम सेलीनियम आदि होते हैं। विभिन्न फलों में विभिन्न पौष्टिकता के गुण होते हैं जबकि जमीन की मिट्टी वही है। प्रत्येक पौधे के पेड़ के डीलडौल के अतिरिक्त पत्तियाँ भी प्रत्येक जाति के पौधे की अलग-अलग रूप लिये होती हैं। अभी तीन लाख से अधिक पौधों की जातियां पाई गयी हैं। जो बिल्कुल भिन्न भिन्न गुण लिए हुए हैं।वनस्पतियों के अतिरिक्त जीवों की प्रजातियाँ भी लाखों में हैं जो अदृश्य बैक्टीरिया से लेकर विशालकाय व्हेल मछली तक विश्व पटल पर विद्यमान हैं। सभी जीव एक-दूसरे के भोजन के रूप में उपलब्ध हैं। यह भी अनउत्तरित प्रश्न है, क्यों वनस्पति एवं विभिन्न जीव (मानव समेत) उत्पन्न होते हैं और क्यों फिर मर जाते हैं। मानव द्वारा  विकसित विज्ञान इन प्रश्नों के उत्तर आज भी नहीं ढूंढ पाया है। वास्तव में यह आश्चर्यजनक विषय है कि पौधे स्वतः उपयुक्त जलवायु में पेड़ का रूप ले लेते हैं और फिर बरसों तक बिना किसी खाद पानी के बने रहते हैं और फल उत्पन्न करते रहते हैं। प्रत्येक जीव के आंख, नाक, कान स्वतः बनते हैं और उचित स्थान पर ही बने होते हैं। किसी मानव शिशु के आँखें पीछे नहीं पायी गयीं और नाक, पैर अथवा टांग में लगी हुई नहीं पैदा हुई। सभी परिन्दों के पंख-चोंच, टांगे अपने माता- पिता के समान ही बनते हैं सृष्टि का होना   भी अपने आप में एक विकट प्रश्न है। इस सृष्टि  का आशय क्या है, मानव  इस संसार में आकर सुख और दुःख भोगता है, और फिर समाप्त हो जाता है, इस दुनिया से चला जाता है। ये सब आश्चर्यजनक प्रश्न ही मानव को अदृश्य शक्ति पर विश्वास करने के लिए मजबूर करते हैं, ताकि अज्ञात कारणों का जिम्मेदार उसे बनाया जा सके और मानव अपने सुख और दुखों का कारण उसे समझ कर मानसिक अशान्ति से बच सके. इस  प्रकार से वह  अपने जीवन को आसान बना लेता है, परन्तु सब कुछ विश्वास करने पर निर्भर है। सभी जीवों में सिर्फ मानव ही ऐसा जीव है जो सोचने समझने की क्षमता रखता है। अतः उसका जिज्ञासू मन प्रत्येक कारण का उत्तर चाहता है, जब उसे अपने विज्ञान से अपने अनुभव से, अपने पूर्व इतिहास से अपनी उत्सुकताओं के उत्तर नहीं मिलते, तो एक अदृश्य शक्ति पर विश्वास कर अपनी जिज्ञासा शांत कर लेता है। अर्थात यह कहा जा सकता है कि अपनी उत्सुकताओं का तर्क संगत उत्तर न मिल पाने के कारण उसकी मजबूरी बन जाती है कि वह किसी अदृश्य शक्ति की कल्पना पर विश्वास कर ले। यद्यपि सभी लोग इन कल्पनाओं पर विश्वास नहीं कर पाते हैं। सौर मण्डल-आकाश गंगा का अस्तित्व ही एक अनसुलझा प्रश्न उत्पन्न करता है। सौर मण्डल अर्थात सूर्य, पृथ्वी, शुक्र, ब्रहस्पति, शनि आदि उसके समस्त ग्रह कैसे अस्तित्व में आये और क्येां? पृथ्वी पर ही सृष्टि सुलभ वातावरण क्यों उत्पन्न हुआ और क्यों, पृथ्वी पर सृष्टि का सृजन हुआ? इन सब प्रश्नों का उत्तर, धर्म द्वारा ईश्वर की कल्पना कर दिया जाता है। परन्तु ईश्वर का अस्तित्व कैसे हुआ उसका क्या उद्देश्य है? सौर मण्डल बनाने का क्या उद्देश्य है? हमारे सौर मण्डल जैसे आकाश गंगा में स्थित अनेकों सौर मण्डलों का क्या मकसद है? पृथ्वी पर अनेक जीव जन्तु-पेड़-पौधे और मानव जाति की उत्पत्ति का, क्या मतलब हो सकता है मानव जैसे बुद्धिमान जाति के अस्तित्व का? विज्ञान द्वारा अभी तक कोई तर्कसंगत उत्तर उपरोक्त प्रश्नों का नहीं ढूंढा जा सका है। अतः तर्कसंगत उत्तरों के अभाव में सिर्फ विश्वास के भरोसे धर्म निभाना मजबूरी बन जाती है, और इंसान अपने इष्ट देव के देवालय (मन्दिर, मस्जिद, चर्च, पगोडा आदि) बनाकर उसकी पूजा अर्चना कर अपने मन को शांत करने का उपाय कर लेता है। यह विश्वास उसे अनेक जीवन के दुखों में धैर्य बनाये रखने में सहायक होता है। यदि मन शांत होता है, तो अनेक दुर्लभ कार्यों में भी सफलता की सम्भावना बढ़ जाती है। सफलता मिलते ही उसका ईश्वर पर विश्वास भी दृढ़ होता जाता है।

बहुत सारे प्रश्न ऐसे हैं जिनको सोचकर भी इंसान की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है जिनका उत्तर इंसान की बुद्धिमत्ता के परे है। जैसे प्रारम्भ में इंसान एवं विभिान्न अन्य जीवों का अस्तित्व कैसे हुआ। प्रथम इंसान, प्रथम जीव वह भी विभिन्न प्रजातियों में (लाखों में), प्रथम वनस्पति पौधा अथवा बीज वह भी लाखों प्रकार के कैसे उत्पन्न हुए परन्तु उस प्रारम्भिक रूप में अब नई आबादी क्यों नहीं होती। अब कोई नई प्रजाति अस्तित्व में क्यों नहीं आती। पृथ्वी पर विभिन्न गैसें ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन आदि कैसे आयी, पानी एवं अन्य द्रव पदार्थ कैसे आये। लोहा, सोना, चांदी, कॉपर, जैसी अनेक धातुएं खानों में कहाँ से आ गई। इसी प्रकार अनेकों कैमिकल्स, ऑर्गेनिक्स का आगमन कैसे हुआ। प्रत्येक गृह में आकर्षण शक्ति का उद्भव कैसे हुआ जिसने अपने से छोटे अस्तित्व वाले गृह को परिकृमा करने को मजबूर किया।

विज्ञान के नियम के अनुसार यदि गृह परिकृमा न करें तो अपने से बड़े गृह से टकराकर नष्ट हो जायेंगे। उपरोक्त ऐसे प्रश्न मानव मन को उद्वेलित कर देते हैं। विज्ञान के सहारे आगे भी इन सब प्रश्नों के उत्तर मिलने की सम्भावना नहीं है। अन्त में निरूत्तर होकर पूर्वजों द्वारा बताये आध्यात्मिक रास्ते पर चलने को मजबूर हो जाता है। वह भयभीत हो जाता है कि यदि वास्तव में ईश्वर अल्लाह, गौड हुआ अर्थात कोई दिव्य शक्ति हुई तो मेरे पूजा पाठ न करने पर दण्ड मिल सकता है। अतः धर्माचरण के रास्ते पर चलना ही उसकी मजबूरी बन जाती है। उसके मन में उठे कौतूहल के तूफान शांत करने का माध्यम आध्यात्म ही रह जाता है।

यही कारण है आधुनिक युग में भी जब मानव ने इतना वैज्ञानिक विकास कर लिया है, ईश्वर की कल्पना की सत्यता पर विश्वास बना हुआ है। अनेकों प्राकृतिक घटनाएं अथवा आपदाएं जैसे भूकम्प का अनुभव, ज्वालामुखी का फटना, बिजली चमकना, अतिवृष्टि, अल्पवृष्टि, तूफान, समुद्री तूफान, ज्वार भाटा, ओलावृष्टि आदि ऐसी अप्रत्याशित घटनाएं जिनका उत्तर वैज्ञानिक खोजों से जान लिया गया है परन्तु आज भी सभी लोग शिक्षित नहीं है अथवा शिक्षित हैं तो विज्ञान के बारे में अनभिज्ञ हैं। उनके लिए उपरोक्त प्राकृतिक घटनाएं आज भी विधि की विडम्बना ही हैं, जो उनकी धार्मिक आस्था को दृढ़ बनाते हैं और ईश्वरीय सत्ता को स्वीकार करते हैं। कुछ ऐसे भी व्यक्ति हैं जो विज्ञान के अच्छे जानकार हैं परन्तु धार्मिक आस्था को वैज्ञानिक तर्कों की कसौटी से तोलने को तैयार नहीं होते और परम्परागत तरीके से धार्मिक आचरण निभाते हैं और ईश्वरीय अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। इक्कीसवीं सदी के विकसित प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान के बावजूद धार्मिक वातावरण में कोई विशेष परिवर्तन परिलक्षित नहीं होता। सभी धार्मिक गतिविधियां कुछ संशोधित होकर आज भी विद्यमान हैं।(SA-106D)

–    सत्य शील अग्रवाल,शास्त्री नगरमेरठ

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