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क्यों न कृषि उत्पादन भी कॉर्पोरेट क्षेत्र के अंतर्गत किया जाय?

jara sochiye
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कृषि पेशा हमेशा से ही अनिश्चितता के वातावरण के साथ चलता रहा है समय समय पर अतिवृष्टि,अल्पवृष्टि आंधी तूफ़ान खेती के लिए चुनौती प्रस्तुत करते रहे हैं.जो किसान को भयानक अकाल का सामना करने को मजबूर करते रहे हैं.परन्तु वर्तमान समय में आधुनिक तकनिकी के होते हुए,आजादी के इतने लम्बे अरसे के बाद भी हमारे देश का किसान आत्महत्या करने को मजबूर होता है तो यह देश के लिए शर्म की बात है.यह संकेत है कि कही न कहीं हमारे देश के प्रबंधन, और नीतियों में दोष विद्यमान है.
हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ पर आज भी 65% लोगो की जीविका कृषि पर ही आधारित है,अतः देश की कृषि पर आयी आपत्ति देश की जनता के लिए विनाशकारक सिद्ध होती है. अधिकतर किसानो के पास छोटे छोटे खेत होने के कारण वे पर्याप्त आधुनिक कृषि उपकरण नहीं जुटा पाते और आवश्यकतानुसार मौसम की मार से बचाव के उपाय नहीं कर पाते हैं. इसी कारण आज भी हमारे देश में कृषि क्षेत्र मौसम की मेंहरबानी पर निर्भर है.मौसम में होने वाली थोड़ी सी भी अनियिमतता कृषि वयवस्था को पंगु बना देती है. इस वर्ष देश के उत्तरी क्षेत्रों में गत महीनों से हो रही लगातार बरसात ने रबी की फसलों को बहुत बड़े पैमाने पर नुकसान पहुँचाया है. जिसके परिणाम स्वरूप देश के अनेक किसान आत्म हत्या करने को मजबूर हो रहे हैं,जबकि कुछ किसान अपने खेत की बर्बादी को देख कर होने वाली निराशा और हताशा के कारण दम तोड़ रहे हैं.जब एक छोटा किसान अपनी कमाई के एक मात्र सहारे को नष्ट होते हुए देखता है, वह उसके जीवन का सर्वाधिक ह्रदय विदारक समय होता है, यदि उस पर पहले ही कर्ज का बोझ है, तो आत्महत्या ही उसे एक मात्र रास्ता नजर आने लगता है.यद्यपि सरकारी स्तर पर किसानो के कष्टों को कम करने के प्रयास किये जाते हैंi,अब भी मुआवजा दिया जा रहा है और अब परन्तु सरकारी उपाय किसानों के कष्ट को मात्र मरहम ही साबित होते हैं,उसके नुकसान की भरपाई में सक्षम नहीं होते.परन्तु इस प्रकार से सरकार द्वारा की गयी भरपाई इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं है. समय समय पर होने वाले किसानों के आन्दोलन उनकी हताशा का प्रदर्शन है.क्या हमारा देश कभी किसान की इन समस्याओं से उभर पायेगा? क्या पर्यावरण में निरंतर आ रहे बदलावों के कारण होने वाले उपद्रवो का कोई सटीक उपाय निकाला जा सकता है? या फिर हमारे देश का किसान यूं ही लुटता पिटता और मरता रहेगा? हमारे देश में कृषि उद्योग को हर स्तर पर वरीयता दी गयी है.किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए बहुत सारे उपाय भी किये जाते रहे हैं,जैसे कृषि से होने वाली आय को आय कर रहित किया गया है, उसे मुफ्त या रियायती दरों पर पानी बिजली उपलब्ध करायी जाती है,कृषि के लिए आवशयक खाद,और कीटनाशक रसायनों को सब्सिडी के साथ उपलब्ध कराया जाता है, उन्हें कृषि उपकरण खरीदने के लिए रियायती दरों पर कर्ज उपलब्ध कराये जाते हैं इत्यादि. फिर भी किसान अनिश्चित्तता की स्थिति से निकल पाने में अक्षम है.जिसका मुख्य कारण जो स्पष्ट तौर पर नजर आता है, वह है हमारे देश में किसान आज भी अशिक्षित है, उसे कृषि में हो रहे नए नए अनुसन्धान और आधुनिक कृषि उपकरण की जानकारी नहीं है,उसके पास खेती का रकबा बहुत छोटा है और निरंतर बटवारे के कारण उसका क्षेत्रफल घटता जा रहा है,जिसके कारण वह आधुनिक कृषि उपकरणों को खरीदने में समर्थ नहीं हो पाता. आधुनिक शैली में खेती करने के लिए किसान के पास बड़े बड़े खेत होना आवश्यक है.(आज के दौर में अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए आधुनिक शैली अपनाना आवश्यक है) जो छोटे किसान के लिए संभव नहीं हो पाता. अतः वह मौसम के उतार चढाव का सामना नहीं कर पाता,जब कोई गंभीर अनियमितता मौसम में आती है, तो हमारे देश की कृषि व्यवस्था चरमरा जाती है.
उपरोक्त सभी समस्याओं का एक निदान किया जा सकता है. यदि देश की जनता और सरकार एक क्रांतिकारी बदलाव लाने को सहमत हो सकें, तो शायद यह उपाय(निम्न लिखित) देश के कृषि उद्योग के लिए लाभकारी हो सकता है,और किसानों की दुर्दशा को रोका जा सकता है.
कृषि उत्पादन को कॉर्पोरेट सेक्टर के अंतर्गत लाकर संगठित कर दिया जाय ताकि एक बड़े पैमाने पर सभी आवश्यक उपकरणों और तकनीकी ज्ञान के साथ कृषि पैदावार की जा सके. सभी स्थानीय किसानों की जमीनों को संगठित कर एक सिंडिकेट बनाया जाय, जो सरकार के नियंत्रण में कॉर्पोरेट सेक्टर द्वारा संचालित हो. जिसमें सभी किसानों की (जिनकी जमीने शामिल की गयी हैं) भागीदारी उनके जमीन के क्षेत्रफल के अनुरूप नियत की जाय, ताकि उसी अनुपात में उन्हें  कृषि से प्राप्त आय वितरित की जा सके.संस्थान में कार्यकर्ताओं की नियुक्ति  भागीदार किसानो में से ही प्राथमिकता और योग्यता के अनुसार सुनिश्चित हो.संस्थान को चलाने के लिए आवश्यक धन सरकार स्वयं उपलब्ध कराये और आवश्यकतानुसार कृषि विशेषज्ञों और प्रबंधकों की नियुक्ति करे. इस प्रकार से कृषि के लिए बहुत बड़ा रकबा एक जगह उपलब्ध हो सकेगा और मौसम की अनियमितताओं से जूझने में सुविधा होगी,उच्च तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकेगा,आधुनिकतम उपकरणों का उपयोग संभव हो सकेगा,नए नए अनुसन्धान भी किये जा सकेंगे, जिससे पैदावार की गुणवत्ता और मात्रा में iवृद्धि हो सकेगी.इस कदम से होने वाले अतिरिक्त लाभ निम्न हैं;

  • भागीदार किसानों को उनकी योग्यता अनुसार रोजगार भी मिल सकेगा, साथ ही पैदावार में हिस्सा नियमित रूप से मिलता रहेगा.
  • संस्थान को बड़े पैमाने पर खाद, बीज, कीटनाशक,कृषि उपकरण की खरीदारी होने के कारण सस्ते में उपलब्ध हो सकेगे.
  • बिजली पानी की व्यवस्था भी स्वतः के बलबूते पर नियमित रूप से उपलब्ध की जा सकेगी.
  • संस्थान द्वारा उत्पादित कृषि उत्पाद को पब्लिक ट्रांसपोर्ट या स्वयं के ट्रकों द्वारा पास और दूर दराज के इलाकों में जाकर उचित मूल्यों पर बेचा जा सकेगा.और यदि संभव हो और आवश्यक हो तो विदेशों को भी मॉल भेजा जा सकता है.
  • संस्थान द्वारा उत्पादित कृषि उत्पादों को करीब में इंडस्ट्री लगाकर और प्रसंस्करण कर मूल्यवान खाद्य पदार्थों में परिवर्तित किया जा सकता है,जिससे संस्थान को अतिरिक्त लाभ हो सकता है.
  • संस्थान द्वारा अन्य कृषि उत्पाद,या कृषि कार्य सम्बंधित उद्योग लगाया जा सकता है.
  • कृषि उत्पादों को संग्रह करने के लिए गोदाम या कोल्ड स्टोर की व्यवस्था के जा सकती है,और मार्किट में कीमत बढ़ने पर उन्हें बेचकर अतिरिक्त लाभ कमाया जा सकता है.

इस प्रकार किसान की समस्याओं का निदान हमेशा के लिए हो सकेगा.किसान सुविधा संपन्न होगा देश को अधिक और गुणवत्ता सहित कृषि उत्पादन मिल सकेंगे.अधिक पैदावार होने पर विदेशों को भी निर्यात किया जा सकेगा.देश समृद्धि की ओर बढ़ सकेगा.

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