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विज्ञापन नियामक (रेगुलेटर अथौरिटी)बनाने की आवश्यकता

jara sochiye
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गत कुछ दिनों से सुर्खियाँ बनी खबर ने आम जन को हिला कर रख दिया है.खबर थी मेग्गी नूडल्स के नमूने की जाँच फेल होने से सम्बंधित, जिसमे पाया गया की इसमें उपस्थित कुछ अवयव इन्सान की सेहत के लिए खतरनाक है.मेगी नूडल्स में एम्.एस.जी.और लेड नामक तत्व मानक मात्रा से अधिक पाए गए हैं.एम्.एस.जी.नामक रसायन(जो उत्पाद का स्वाद बढ़ने के लिए मिलाया जाता है) विशेष तौर पर बढ़ते बच्चो के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, उनकी हड्डियों की बढ़त पर नकारात्मक प्रभाव डालता है,चिकित्सकों के अनुसार इन रसायनों का सेवन अस्थमा और गाउट के मरीजों के लिए अमान्य है और लेड किडनी सम्बंधित बीमारियों को पैदा कर सकता है.लेब की जाँच में ये तत्व स्वास्थ्य मापदंडों के अनुसार कही अधिक मात्रा में पाए गये हैं. अब जो खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है उसे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक बताकर विज्ञापनों द्वारा जनता को भ्रमित किया जाय, तो यह जनता के साथ अन्याय है,उसके जीवन से खिलवाड़ है. मेग्गी की खबर सुर्ख़ियों में आने के पश्चात् मेग्गी का का विज्ञापन करने वाले सितारों एवं अन्य उत्तरदायी विज्ञापन एजेंसियों को भी लक्षित किया गया है, उन्हें नोटिस भेजे गए हैं.क्या विज्ञापन करने वालों सितारों के पास उत्पाद की गुणवत्ता नापने का कोई साधन होता है या उन्हें कोई उत्पाद सम्बंधित तकनिकी ज्ञान होता है,उन्हें तो सिर्फ कम्पनी (विज्ञापन दाता) द्वारा उपलब्ध करायी गयी जानकारी को जनता के समक्ष रखना होता है.इस प्रकार की प्रतिक्रिया कहीं न कहीं सरकारी कमियों को छिपाने का प्रयास भर है.

विज्ञापन जगत में सिर्फ मेग्गी के उत्पाद ही एक मात्र गुणवत्ता की कमी के कारण उपभोक्ता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ नहीं कर रहे, बल्कि अन्य अनेक कम्पनियों के उत्पाद भी इसी श्रेणी में आते है,जिनके विज्ञापन से जनता को भ्रमित किया जा रहा है और अनेक प्रकार की बीमारियों को निमंत्रित किया जा रहा है.पहले भी अनेक उत्पादों पर प्रश्न चिन्ह खड़े होते रहे हैं.क्योंकि वर्तमान में मेग्गी के सेम्पल लिए गए और लेब में फेल हो गए,इसलिए मीडिया में चर्चा का विषय बन गए.सरकार का ध्यान भी इस ओर गया है और प्रयास किये जा रहे हैं की सभी खाद्य पदार्थों विशेष तौर पर पैक्ड खाद्य पदार्थ को स्वास्थ्य की दृष्टि से कैसे नियंत्रित किया जाय ताकि जनता के स्वास्थ्य के साथ कोई खिलवाड़ न कर सके.

उपरोक्त विसंगतियों को देखते हुए अब आवश्यकता का अहसास हो रहा है की सिर्फ विज्ञापन से सम्बंधित नियम या कानून बना देने भर से काम नहीं चलने वाला, देश में विज्ञापन एजेंसीस को रेगुलेट करने के लिए एक रेगुलेटर अथौरिटी की व्यवस्था होनी चाहिए. जिससे विज्ञापन में दिए गए सन्देश को उत्पाद की गुणवत्ता के अनुरूप पाये जाने पर रेगुलेटर अथॉरिटी द्वारा पास होने के पश्चात् ही उन्हें प्रकाशित या प्रसारित किया जा सकें. इस रेगुलेटर अथौरिटी द्वारा इलेक्ट्रोनिक एवं प्रिंट मीडिया में समान रूप से नियमों का कडाई से पालन कराया जाना चाहिए.विज्ञापन में विद्यमान सन्देश की सत्यता को प्रमाणित किये बिना किसी को भी प्रसारित,या प्रचारित,विज्ञापित करने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए.रेगुलेटर से पास होने के पश्चात् भी यदि कोई गड़बड़ी पाई जाती है,तो इसकी गुणवत्ता(क्वालिटी कंट्रोल) की जिम्मेदारी सिर्फ उत्पादक पर नियत की जाय और दोषी पाए जाने पर सजा की व्यवस्था की जाय.

अब मेरे ब्लॉग jarasochiye.com पर भी पढ़ सकते हैं.धन्यवाद

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