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दहेज़ को रोकने के लिए अनेक प्रकार के कानून बनाये गए, क्या दहेज़ प्रथा पर अंकुश लग पाया ?जैसे जैसे दहेज़ सम्बन्धी कानून सख्त होते गए दहेज़ के रेट बढ़ते गए.न दहेज़ लेने वाले रुके और न दहेज़ देने वाले रुक पाए.पहले दहेज़ खुलेआम दिया जाता था अब सब कुछ अन्दर खाने अर्थात नंबर दो में होने लगा.देश में काले धन को प्रश्रय मिला.
दहेज़ हत्याओं पर अंकुश लगाने के लिए बहुत ही सख्त कानून और धाराएँ बनायीं गयीं परन्तु दहेज़ को लेकर होने वाली हत्याओं पर तो अंकुश नहीं लग सका, बल्कि वधु पक्ष द्वारा इन कानूनों का दुरूपयोग किया जाने लगा. समाज में विवाह नाम की संस्था पर ही शक के बदल गहराने लगे.दहेज़ विरोधी कानून एक सामाजिक शोषण का माध्यम बन गया.परिवारों में अविश्वास का वातावरण बनने लगा.नववधु पति परिवार के लिए आतंक का पर्याय बन गयी.
देश में लिंग अनुपात को बिगड़ने से रोकने के लिए अल्ट्रा साउंड के समय लिंग की पहचान बताना अवैध कर दिया गया ताकि कन्या भ्रूण हत्या पर नियंत्रण किया जा सके. परन्तु इस कानून बनने से न तो डॉक्टर बाज आये और न ही पुत्र की चाहत रखने वाले दंपत्ति अपनी हरकतों से बाज आये.सिर्फ पैथोलॉजी डॉक्टर को अधिक धन मिलने लगा और सब कार्य जस का तस चलता रहा. अनेक राज्यों में बेटियों की संख्या अप्रत्याशित रूप से घटने लगी.
बलात्कार को रोकने के लिए अनेकों सख्त से सख्त कानून बनाये गए क्या बलात्कार की घटनाएँ कम हुईं? जिन पुरुषों की परवरिश ही गलत वातावरण में हुई हो उन्हें आगे पीछे सोचने की समझ ही नहीं होती, ऐसे दरिन्दे समाज के लिए कोढ़ हैं. जिन्हें कानून बनाकर नियंत्रित नहीं किया जा सकता. नित्य बढती बलात्कार की घटनाएँ बताती है की हमारे समाज में कितनी विकृतियाँ आ गयी हैं, जिसके लिए हम सभी अभिभावक जिम्मेदार हैं, जो बच्चो को अच्छे संस्कार नहीं दे पा रहे हैं.जिनके मन में महिला सिर्फ एक भोग्य वस्तु के रूप में पैठ बना चुकी है. महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना उत्पन्न नहीं कर पा रहे हैं.
बिहार में शराब बंदी की गयी परन्तु क्या लोगो ने शराब पीना बंद कर दिया? राज्य सरकार ने शराब की बिक्री पर पाबन्दी लगा दी जो एक बहुत ही सराहनीय कदम था, परन्तु शराब पीने की लत नहीं छूट सकी और शराब के गुलाम दोगुने या चार गुने दाम देकर अपनी प्यास बुझाने लगे. शराब बिक्री का अवैध धंधा फलने फूलने लगा शराब की तस्करी के अनेक तरीके खोजे जाने लगे,परन्तु शराब पीने वालों की आदतों पर नियंत्रण नहीं किया जा सका.
उपरोक्त सभी उदाहरणों से सिद्ध होता है की कोई भी कानून जनता के मध्य व्याप्त बुरायियों को समाप्त नहीं कर सकता है.कानून का महत्व तब ही प्रभाव शाली हो सकता है जब जनता को भी उन बुराईयों से जागरूक किया जाय उसमें नैतिकता का भाव पैदा किया जाय.किसी भी सामाजिक बुराई को योजना बद्ध तरीके से जन जागरण किया जाना आवश्यक है और उक्त बुराई को लेकर आम व्यक्ति की समस्याओं का निराकरण किया जाना भी अति आवश्यक है.जनता के प्रत्येक व्यक्ति का नैतिक उत्थान किया जाना आवश्यक है तत्पश्चात ही किसी भी सामाजिक बुराई को नियंत्रित किया जा सकता है, तब ही सम्बंधित कानून अधिक प्रभावी रूप से समाज के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकेगा.(SA-196B)
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